कोरोना त्रासदी ने जीवन को अनेक अकल्पनीय स्मृतियाँ प्रदान की हैं जो सदैव मन मस्तिष्क में जीवंत रहेंगी। इन्हीं अकल्पनीय स्मृतियों में सुशांत और सिद्धार्थ जैसे अनमोल युवा प्रतिभाकारों का खोना भी है, जिन्होने स्वयं के प्रयत्नों से एक नई ऊंचाई का मुकाम हासिल किया, परंतु जीवन के सत्य को कोई भी झुठला नहीं सकता। दौलत, शोहरत, काया और पहुँच कुछ भी मृत्यु की नियति में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। जीवन का सबसे कड़वा सच मृत्यु है। हमारा सम्पूर्ण जीवन अनिश्चितताओं से भरा हुआ है, परंतु मृत्यु अटल सत्य है।
सुशांत, सिद्धार्थ जैसे प्रतिभाशाली कलाकार अपने अथक प्रयासों से सफलता के सोपान पर पहुंचे, परंतु उनकी शीघ्र मृत्यु ने उनके सारे स्वप्नों को क्षण भर में धूमिल कर दिया। उनकी असमय मृत्यु हम सभी के लिए यह संदेश है कि मनुष्य को सदैव मृत्यु का सच याद रखना चाहिए। काया और माया की अंधी दौड़ में जीवन को क्षय होने से बचाएं। सफलता की चकाचौंध में तनाव हम पर हावी न होने पाए। जीवन की खुशियाँ आनंद के क्षणों में निहित हैं। यह आनंद के क्षण व्यक्ति विशेष, परिस्थिति और सुंदर कायाकल्प से भी परे हैं। तुलनात्मक जीवन को कभी भी जीवन में स्थान न दे। किसी भी प्रकार की अति जीवन को दुर्गति के मार्ग पर ले जा सकती है। सुशांत सिंह और सिद्धार्थ का असमय चले जाना उनके परिवार, प्रशंसकों और शुभचिंतकों के लिए सच में हृदय विदारक घटना है।
सपनों की सीढ़ी पर नित नवीन सफलता के आयाम रचना और फिर एक याद बनकर शेष रह जाना, हम सभी को यह याद दिलाता है कि जीवन नश्वर एवं क्षणभंगुर है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी हमें मन से सन्यासी होना चाहिए। अर्थात सुख-दु:ख में समभाव के विचार रखने चाहिए। संघर्ष करके सम्मान, सफलता और अर्थ हासिल करना, पर आत्मिक शांति को खो देना कदापि उचित नहीं है। काया और माया की चकाचौंध के कारण अंतर्रात्मा की प्रतिदीप्ति को न्यून नहीं करना है। समय-समय पर संवेदनाओं को अभिव्यक्ति भी जरूरी है। कामयाबी की अंधी दौड़ में स्वयं को कुर्बान होने से बचाएं। अंतरात्मा की आवाज को कभी भी महत्वहीन न समझे।
हमारी धार्मिक विरासत तो सदैव ईश्वर के संघर्ष को भी दर्शाती है। सभी महापुरुष बाधाओं को चीरते हुए अपनी उत्कृष्टता के लिए आजीवन प्रयासरत रहें। धैर्य ही जीवन की सबसे बड़ी कुंजी है एवं उत्तम स्वास्थ्य और आत्मिक शांति ही सच्ची अमूल्य पूँजी है। सफलता के सोपान को तय करते समय जीवन के अन्य पहलुओं को अनदेखा न करें।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)