इंदौर : मप्र की शिवराज सरकार प्रदेश में निवेश लाने के लिए लालायित रहती है। निवेशकों को आकर्षित करने के लिए लाल कालीन बिछाती है पर प्रदेश की नौकरशाही का रुख उद्योग विरोधी ही नजर आता है। जो उद्योगपति पहले से मप्र में निवेश कर उद्योग- धंधे चला रहे हैं, सैकड़ों- हजारों लोगों को रोजगार दे रहे हैं, उनकी कोई सुध नहीं ली जाती है। उल्टे नियम- कानूनों के मकड़जाल में उलझाकर उन्हें परेशान किया जाता है। जिस उद्योगपति की अधिकारियों से पटरी नहीं बैठती, उसे बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया जाता है।
दरअसल, मप्र में, खासकर मालवा में गेंहूँ के बाद सोयाबीन ही मुख्य फसल मानी जाती है। सोयाबीन की अच्छी पैदावार होने से सोया आधारित कई उद्योग इंदौर व आसपास के जिलों में स्थापित किए गए। सोया तेल व अन्य उत्पाद स्वास्थ्यवर्धक होने से उनपर मप्र सरकार सब्सिडी भी देती थी। इसी के चलते इंदौर निवासी एक उद्योगपति ने सोया प्लांट डाला था। अच्छा चल भी निकला था पर सेल्स टैक्स अधिकारियों की वक्र दृष्टि उनपर ऐसी पड़ी की वे आज पूरीतरह बर्बाद हो चुके हैं।
छूट के बावजूद थोप दिया मनमाना टैक्स।
इस उद्योगपति का नाम है दिनेश अग्रवाल। इनका कहना है कि उनका परिवार पूर्वजों के जमाने से ही कृषि उपज मंडी में आढ़त का धंधा कर रहा है। सीताराम श्रीनारायण अग्रवाल फर्म के नाम से वे कारोबार करते थे। 1997 में उन्होंने सीताश्री फ़ूड प्रोडक्ट के नाम से इंदौर में फैक्ट्री शुरू की। उसके बाद 2008 में साल्वेंट प्लांट लगाने के लिए साढ़े 31 करोड़ का आईपीओ लेकर आए, जिसे अच्छा प्रतिसाद मिला। साल्वेंट प्लांट के लिए हमने बरलाई में जमीन भी खरीदी। प्लांट संचालित करने के लिए एसबीआई व अन्य बैंकों से लोन भी लिया गया। 2010 में प्लांट का काम शुरू होकर 2012 में करीब 130 करोड़ का यह प्लांट बनकर तैयार हो गया। इस प्लांट में सोया तेल के अलावा वैल्यू एडेड हाई प्रोटीन सोया उत्पाद का प्रोडक्शन किया जा रहा था। दिनेश अग्रवाल के मुताबिक उन्हें मप्र सरकार की ओर से प्रवेश कर और प्रदेश के बाहर से लाए जाने वाले माल पर मंडी टैक्स की छूट मिली हुई थी। हम जो हाई प्रोटीन सोया उत्पाद बना रहे थे वो भी कर मुक्त थे पर सरकार ने 2013- 14 में हाई प्रोटीन सोया उत्पादों पर टैक्स लगाकर हमपर करीब 5 करोड़ की टैक्स रिकवरी (VAT) निकाल दी। इसके खिलाफ सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन, जिसमें 32 सदस्य थे, ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, वहां से स्थगन भी मिल गया था। अग्रवाल का आरोप है कि कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बाद भी सेल्स टैक्स के तत्कालीन अधिकारियों ने टैक्स सेटलमेंट को लेकर डिमांड रखी। जब उनकी डिमांड उन्होंने नहीं मानी तो उनके घर, दफ्तर और फैक्ट्री पर छापे मारे गए। उसमें भी उन्हें कुछ नहीं मिला तो 14 जुलाई 2016 को सेल्स टैक्स के अधिकारियों ने दैनिक भास्कर के व्यापार परिशिष्ट में उनके प्लांट की नीलामी का विज्ञापन छपवा दिया। इससे हमारी वित्तीय साख पर बेहद बुरा असर पड़ा। बैंक सहित सभी लेनदार सक्रिय हो गए। नतीजा ये हुआ कि दिसंबर 2016 में हमारा खाता भी एनपीए हो गया। सेल्स टैक्स के इस बर्ताव के खिलाफ उन्होंने पीएम, सीएम हेल्पलाइन सहित हर फोरम पर शिकायत की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
महज 27 करोड़ में नीलाम कर दी फैक्ट्री।
उद्योगपति दिनेश अग्रवाल का कहना है कि फैक्ट्री पर बैंक का लोन होने से सेल्स टैक्स विभाग ने बैंक को लेटर जारी किया कि सीताश्री फैक्ट्री पर उसका 67 करोड़ लेना बकाया है। इसके बाद भी बैंक ने फैक्ट्री महज 27 करोड़ में नीलाम कर दी। जबकि उसकी असेसमेंट रिपोर्ट में फैक्ट्री का मूल्य 92 करोड़ आंका गया था। नीलामी में भी एक ही व्यक्ति ने भाग लिया। बैंक को केवल साल्वेंट प्लांट के लिए 44 करोड़ का ऑफर दिया गया था। इसके अलावा हमने अपनी ओर से बैंक को 72 करोड़ का ऑफर देकर वन टाइम सेटलमेंट का भी प्रयास किया पर हमारी बात नहीं मानी गई। मूल फैक्ट्री के साथ हमारी एक अन्य फैक्ट्री व दूसरी अचल संपत्तियां भी बैंक ने नीलाम कर दी और कुल 47 करोड़ रुपए वसूल किए। अग्रवाल के मुताबिक 2017 में कोर्ट का फैसला भी उनके पक्ष में आया पर तब तक उनका सबकुछ चला गया और वे सड़क पर आ गए। दिनेश अग्रवाल का आरोप है कि यह सबकुछ सेल्स टैक्स के अधिकारियों का उनके प्रति दुराग्रह और बदनीयती के चलते किया गया। वे पूरीतरह बर्बाद हो गए।
बैंक से 67 करोड़ वसूलकर सरकारी खजाने में जमा करें सेल्स टैक्स विभाग।
दिनेश अग्रवाल ने मांग की है कि सेल्स टैक्स विभाग बैंक को दिए गए अपने नोटिस के मुताबिक उनपर बकाया बताए गए 67 करोड़ रुपए बैंक से वसूल कर सरकार के खजाने में जमा कर और उन्हें इस जंजाल से मुक्त करें।
( ये खबर उद्योगपति दिनेश अग्रवाल द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित है।)