हास्य – व्यंग्य से भरपूर नाटक के चुटीले संवादों को खूब मिली दर्शकों की दाद।
इंदौर : सोशल मीडिया का दायरा इतना व्यापक हो गया है कि हर कोई इससे जुड़ना चाहता है। दुनिया को इसने करीब ला दिया है पर इसका दूसरा और दु:खद पहलू ये भी है कि इस आभासी दुनिया से जुड़े लोग अपनों से ही दूर होते जा रहे हैं। यही नहीं सोशल मीडिया ब्लैकमेलिंग का भी माध्यम बन गया है। ऐसे में यह जरूरी हो चला है कि इसका उपयोग सीमित रूप से और सावधानी से किया जाए। यही संदेश देने का प्रयास संस्था पथिक द्वारा रवींद्र नाट्यगृह में पेश किए गए हास्य – व्यंग्य से भरपूर नाटक ‘गुम है किसी के प्यार में’ किया गया।
नाटक का कथानक एक सुखी मध्यमवर्गीय परिवार से जुड़ा है। वैदेही और रोमांचक अपनी छोटी सी दुनिया में खुश हैं। सोशल मीडिया से उनका कोई नाता नहीं है। घर में लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करते हैं। इसके उलट रोमांचक का दोस्त जिमी रात – दिन सोशल मीडिया में विचरण करता रहता है और अलग – अलग मोबाइल का उपयोग कर नित नई लड़कियों से दोस्ती गांठता रहता है। एक दिन वैदेही का बचपन का मित्र सुमित अमेरिका से सोशल मीडिया पर उसे ढूंढते हुए अचानक उसके घर पहुंच जाता है। वह वैदेही के लिए उपहार में आई फोन लेकर आता है। यहीं से कहानी नया मोड़ लेती है और गफलतों व गलतफहमियों का सिलसिला शुरू हो जाता है।रोमांचक को जब यह पता चलता है कि सोशल मीडिया के जरिए पुराने बिछड़े लोग मिल जाते हैं, तो उसके मन में भी जिज्ञासा जागती है अपनी बचपन की साथी नीलम से मिलने की। वह वैदेही से छुपाकर स्मार्ट फोन खरीदकर लाता है और दोस्त जिमी की मदद से सोशल मीडिया पर नीलम को ढूंढने की कोशिश करता है।इसी कवायद में रोमांचक नीलम नाम की किसी और लड़की के जाल में फंस जाता है। वह लड़की मार्फिंग कर रोमांचक के फर्जी आपत्तिजनक फोटो बना लेती है और उसे ब्लैकमेल करने लगती है। वह उसके घर भी आ धमकती है। रोमांचक को लड़की के साथ देखकर वैदेही बेहद गुस्सा होती है और रोमांचक को सबक सिखाने के लिए खुद भी अफेयर करने की बात कहती है। ब्लैकमेलर नीलम से पिंड छुड़ाने और खुद को वैदेही के सामने निर्दोष साबित करने के प्रयास में रोमांचक के सामने कई नाटकीय मोड़ आते है। यहां तक कि वैदेही का बचपन का मित्र सुमित भी गलतफहमियों का माध्यम बन जाता है। हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि रोमांचक खुदकुशी करने पहुंच जाता है। हालांकि बाद में रोमांचक पुलिस के पास जाता है, ब्लैकमेलर लड़की पकड़ी जाती है और सारी गलतफमियां दूर होकर नाटक का सुखद अंत होता है।
असल में पूरा नाटक साइबर क्राइम के बढ़ते खतरे के प्रति सचेत करता है। नाटक में हास्य – व्यंग्य के साथ चुटीले संवाद दर्शकों का मनोरंजन करते हुए सोचने पर भी मजबूर करते हैं। कई संवाद तो वाकई काबिले तारीफ थे जैसे….
- वर्तमान में हमारे फोन तो स्मार्ट हो गए हैं पर हम स्टुपिड हो गए हैं।
- आजकल बच्चे प्ले ग्राउंड नहीं, प्ले स्टोर जाते हैं।
- सोशल मीडिया के कारण बच्चे बड़े नहीं हो रहे, जवान हो रहे हैं।
- हाथों की मेंहदी कब बालों तक पहुँचगई पता ही नहीं चला।
- जब बात करने का कोई मतलब ना हो तो खामोशी को ही चीखने देना चाहिए ।
संजय झा लिखित इस नाटक में पति – पत्नी के केंद्रीय पात्र वैदेही और रोमांचक की भूमिका श्रीमती सारिका आप्टे और मिलिंद शर्मा ने निभाई। जिमी की भूमिका में थे नीलमाधव भुसारी, सुमित बनें रूपेश आप्टे और नीलम के किरदार को निभाया श्रीमती शोभना विस्पुते ने। नेपथ्य संजीव दिघे का था।पार्श्व संगीत शशिधर पेंडसे ने दिया। वेशभूषा स्वाति श्रोत्री की थी। कथानक के अनुरूप प्रकाश योजना नंदकिशोर बर्वे की थी। रंगभूषा और नाटक का निर्देशन सतीश श्रोत्री ने किया। बैक स्टेज सहयोगी थे राहुल प्रजापति और अभिजीत वडनेरे। नाटक निर्मिती अविनाश मोतीवाले की थी। कुल मिलाकर यह नाटक सोशल मीडिया के खतरों से आगाह करने में सफल रहा।