एमवायएच की ओपीडी में स्थापित स्टोमा केयर क्लिनिक का डॉ. निशांत खरे ने किया शुभारंभ।
क्लिनिक के जरिए मरीजों को लगाए जा सकेंगे हाईटेक स्टोमा बैग।
इंदौर : एमवाय अस्पताल की ओपीडी के सर्जरी विभाग में पेट रोग से जुड़ी परेशानियों के निदान के लिए स्टोमा केयर क्लिनिक की स्थापना की गई है। गुरुवार को आयोजित गरिमामय समारोह में युवा आयोग मप्र के अध्यक्ष (कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त) डॉ. निशांत खरे ने फीता काटकर इस क्लिनिक का शुभारंभ किया। डॉ. राजकुमार माथुर कार्यक्रम के विशेष अतिथि थे। एमवायएच के अधीक्षक डॉ. पीएस ठाकुर और सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ.अरविंद घनघोरिया भी इस दौरान मौजूद रहे।
एमवाय अस्पताल में संसाधनों की कमी दूर करेंगे।
डॉ. निशांत खरे ने इस मौके पर ourliveindia.com से चर्चा करते हुए कहा कि एमवायएच जैसे बड़े अस्पताल जहां हजारों मरीज इलाज के लिए आते हैं, संसाधनों की कमी महसूस होती है सरकार अपनी ओर से संसाधनों के लिए बजट मुहैया कराती है पर सरकार के साथ मानवसेवी संस्थाएं, कॉरपोरेट घराने और दानदाता मिलकर समाज के प्रति अपने दायित्व को समझते हुए संसाधन उपलब्ध कराने का प्रयास करें तो अधिकतम मरीजों को इसका लाभ मिल सकेगा। उन्होंने आउटसोर्स के जरिए संसाधन जुटाने को भी सही ठहराया।
स्टोमा क्लिनिक से मरीजों को होगा लाभ।
डॉ. खरे ने कहा कि कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों के चलते कई बार मरीजों को पेट से मल द्वार बनाने की जरूरत पड़ती है। ये मरीज के साथ परिवार के लिए भी असुविधा और झिझक का सबब बन जाता है। एक बड़ी कंपनी कोलोप्लास्ट ने ऐसे बैग का निर्माण किया है जो स्टोमा के मरीजों के लिए बेहद सुविधाजनक साबित होंगे। स्टोमा केयर क्लिनिक के जरिए इन्हें मरीजों को न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध कराया जाएगा। डॉ. खरे ने कहा कि समाजसेवी संस्थाएं आगे आएं तो स्टोमा के ऐसे मरीज जो ये बैग खरीदने की हैसियत नहीं रखते, को इन्हें नि:शुल्क उपलब्ध कराया जा सकता है।
आंतों में खराबी आने से स्टोमा की पड़ती है जरूरत।
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. अरविंद घनघोरिया का कहना था कि जब आंतों में इन्फेक्शन, अल्सर, कैंसर अथवा टीबी होने से आंतें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तो मल उत्सर्जन में परेशानी खड़ी हो जाती है। ऐसे में वैकल्पिक मल द्वार पेट के रास्ते बनाया जाता है, जिसे स्टोमा कहा जाता है। मरीज की जान बचाने के लिए ऐसा करना आवश्यक होता है।अब ऐसे हाईटेक बैग बन गए हैं जिन्हें स्टोमा में लगाने से मल उत्सर्जन में आसानी हो जाती है।
दूषित पानी के सेवन से खराब होती है छोटी आंत।
डॉ. घनघोरिया ने कहा कि पेट रोगों का सबसे बड़ा कारण दूषित पानी है। दूषित पानी पीने से टाइफाइड हो जाता है, जिसका सीधा असर छोटी आंत पर पड़ता है। छोटी आंत में इन्फेक्शन होने के साथ वह फट जाती है, ऐसे में सर्जरी कर मल त्याग के लिए पेट के रास्ते नया द्वार बनाया जाना जरूरी हो जाता है।
न्यूनतम शुल्क में लगाए जाएंगे स्टोमा बैग।
डॉ. घनघोरिया ने बताया कि स्टोमा के बढ़ते मरीजों को देखते हुए एमवायएच की ओपीडी में स्टोमा केयर क्लिनिक की शुरुआत की गई है। क्लिनिक में कोलोप्लास्ट कंपनी ने 100 हाईटेक स्टोमा बैग उपलब्ध कराए हैं।ये मरीजों को नि:शुल्क लगाए जाएंगे। आगे भी कंपनी ने ये बैग रियायती दरों पर देने का वादा किया है जिन्हें मरीजों को लागत मूल्य पर ही उपलब्ध कराया जाएगा।
बैग की सफाई का रखे ध्यान।
डॉ. घनघोरिया के अनुसार स्टोमा बैग की सफाई हर एक घंटे में की जानी चाहिए। उसमें लगी टोटी के जरिए उत्सर्जित मल बाहर निकाला जा सकता है। सफाई का ध्यान रखा जाए तो एक बैग 15 दिन से एक माह तक चल सकता है।
उबालकर पिए पानी।
डॉ.घनघोरिया ने बताया कि स्टोमा से बचने का सबसे कारगर इलाज, बचाव है। छोटी आंत को इन्फेक्शन से बचाने के लिए साफ पानी ही पिएं। या तो आरओ का फिल्टर किया पानी हो अथवा पानी को उबालकर पिएं जिससे इन्फेक्शन और आंत के खराब होने की आशंका न के बराबर हो।