इंदौर : बुधवार 28 सितंबर को विश्व रेबीज दिवस मनाया गया। इस दौरान रेबीज के बारे जानकारी देने के साथ उससे बचाव और उपचार के बारे में जानकारी दी गई।
अवर लाइव इंडिया. कॉम ने इस रोग को लेकर एमजीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ. वीपी पांडे से चर्चा की।
विषाणु जनित रोग है रेबीज।
डॉ. पांडे ने बताया कि रेबीज एक विषाणु जनित संक्रमण है जो स्तनपायी प्राणियों में पाया जाता है।अगर इस संक्रमण से ग्रसित जानवर मनुष्य को काट लें तो यह रोग उसमें भी फैल जाता है। मुख्यतः यह बीमारी श्वानोंं के काटने से होती है। इसके अलावा बिल्ली, नेवला, बंदर, सियार, तेंदुआ, सुअर, घोड़ा, और गाय के काटने या खरोंच से भी रेबीज फैल सकता है।
7 दिन से 20 वर्ष तक कभी भी उभर सकते हैं लक्षण।
डॉ. पांडे ने बताया कि श्वान या किसी अन्य स्तनपायी जानवर के काटने के बाद अगर वह रेबीज के संक्रमण से ग्रसित है तो मनुष्य में भी रेबीज होने की संभावना बढ़ जाती है। अगर समुचित उपचार न कराया जाए तो सामान्यतः 7 दिन से लेकर 20 वर्ष तक रेबीज के होने की संभावना बनीं रहती है।
ये हैं रेबीज के लक्षण :-
डॉ. पांडे ने बताया कि रेबीज के लक्षणों में उत्तेजना, सिर में भारीपन, गले में खराश होना, आंखों का लाल होना, पानी पीने में परेशानी होना, पानी से डर लगना आदि हैं। कई बार इंसान बेहद उत्तेजित होकर इधर – उधर भागने लगता है। इसे वाइल्ड रेबीज कहा जाता है। हालात इतने खराब हो जाते हैं कि पानी पीने पर उसकी सांस नली में चला जाता है। धीरे – धीरे वह लकवाग्रस्त हो जाता है। ऐसी स्टेज जिसमें इंसान को पानी से डर लगने लगे, उसे हाइड्रोफोबिया कहा जाता है। रेबीज की इस स्टेज का कोई इलाज नहीं होता। इसमें मृत्यु लगभग तय मानी जाती है।
श्वान या अन्य स्तनपायी के काटने पर कराएं समुचित उपचार।
डॉ. पांडे ने बताया कि जानवरों के काटने पर घाव को साबुन और बहते पानी से तुरंत धोएं व स्प्रिट/अल्कोहल या घरेलू एंटीसेप्टिक का इस्तेमाल करें। उसके तुरंत बाद अस्पताल पहुंचकर एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाएं। डॉ. पांडे ने बताया कि पहले जानवर के काटने पर 14 इंजेक्शन पेट में लगवाना पड़ते थे,जो बेहद कष्टदायक होते थे पर अब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि 3 से 5 इंजेक्शन के डोज में व्यक्ति का रेबीज से बचाव हो जाता है।
इसे एक्टिव इम्यूनाइजेशन कहा जाता है। ये इंजेक्शन एक, तीन, पांच, सात और चौदहवे दिन लगाए जाते हैं। इससे दो से तीन हफ्ते में रेबीज के विषाणु के खिलाफ शरीर में इम्यूनिटी डेवलप हो जाती है। दूसरा तरीका पैसिव इम्यूनाइजेशन का है। इसमें एक ही इंजेक्शन जानवर के काटे गए स्थान पर लगाया जाता है, यह रेबीज के विषाणु को फैलने से पहले ही नष्ट कर देता है।
पालतू जानवरों का कराएं टीकाकरण।
डॉ. पांडे ने कहा कि रेबीज के अधिकांश मामले स्ट्रीट डॉग के काटने से सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि घरेलू ( पालतू ) जानवरों का समय समय पर टीकाकरण जरूर करवाना चाहिए, जिससे रेबीज की आशंका नगण्य हो जाती है। स्ट्रीट डॉग्स की नसबंदी के साथ उनके टीकाकरण का अभियान भी नगर निगम व अन्य एजेंसियां चलाएं तो रेबीज से काफी हद तक बचा जा सकता है।