कीर्ति राणा, इंदौर : जो लोग कोरोना संक्रमण की गंभीरता को अब भी नहीं समझ पा रहे हैं वे सुभाष नगर निवासी-हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव मनीष यादव पर हुए वज्राघात को समझ लें।एक पखवाड़े में उन्होंने अपनी मां प्रमिला, बहन प्रीति और पिता रमेश यादव (जगत काका) को खो दिया है।ये तीनों जीवन के लिए जब अलग अलग अस्पतालों में संघर्ष कर रहे थे, तब मनीष इनकी सांस चलती रहे इस भागदौड़ में लगे रहे।जिद्दी कोरोना पर न दवा का असर हुआ न दुआओं का, एक एक कर तीनों ने दम तोड़ दिया और बेटा हाथ मलता रह गया।
सावित्री कला मंदिर की पूर्व शिक्षिका प्रमिला यादव घुटनों में तकलीफ के चलते पिछले 15 वर्षों से बेड पर ही थी, पहले वो कोरोना संक्रमित हुईं, उनके बाद पति रमेश यादव और फिर बेटी प्रीति पति सतीश रतोला । इन तीनों को पहले लक्ष्मी मेमोरियल हॉस्पिटल में भर्ती किया।एक दिन बाद प्रमिला यादव को कुशवाह नगर स्थित ट्रू केयर हॉस्पिटल में, 28 मार्च को रमेश यादव को बॉंबे हॉस्पिटल में और प्रीति को गुर्जर हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा। पंद्रह सालों से पत्नी की सेवा में लगे रमेश यादव को यह जानकारी नहीं दी गई कि 28 को उनकी पत्नी चल बसी हैं।उनकी पुत्री प्रीति रतोला (एनसीसी में लेफ्टिनेंट भी रहीं और आईपीएस कॉलेज में विंग कमांडर थीं) का निधन हो गया। उनका एक पुत्र है और पति सतीश रतोला सियाराम कंपनी इंदौर में मैनेजर हैं।15 अप्रैल को रमेश यादव ने भी दम तोड़ दिया।मनीष और उनकी पत्नी भी संक्रमित हो गए थे लेकिन अब स्वस्थ हैं।
चुनाव लड़ने से इंकार कर उप मुख्यमंत्री यादव से भल्लू यादव को टिकट देने की सिफारिश की थी।
कांग्रेस की राजनीति में जितने सुभाष यादव अर्जुन सिंह के प्रति समर्पित थे उतने ही रमेश यादव उप मुख्यमंत्री रहे सुभाष यादव के विश्वस्त थे। यादव जब भी इंदौर आते उनका बेग, कागजात आदि रमेश यादव को सौंप कर निश्चिंत हो जाते थे।इंदौर में यादव समाज का कांग्रेस में वर्चस्व कायम रहे इस गणित से सुभाष यादव ने रमेश यादव के सम्मुख विधानसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा था, लड़ते तो जीत भी जाते लेकिन यादव ने इंकार करने के साथ ही क्षेत्र क्रमांक एक से रामलाल यादव भल्लू को लड़ाने का सुझाव दिया, और भल्लू भैया चुनाव जीते भी।
नगर निगम कर्मचारी महासंघ अध्यक्ष के रूप में कैलाश व्यास की तूती बोलती थी लेकिन काछी मोहल्ला निवासी रामलाल (रम्मू) यादव जब जब व्यास को निपटाने की चाल चलते, रमेश यादव चट्टान बन कर खड़े हो जाते।बाद में वे कर्मचारी महासंघ के और नगर निगम पेढ़ी के अध्यक्ष भी रहे।निगम कर्मचारी संघ का जो भवन, निगम परिसर में है उसके निर्माण में भी उनका सहयोग रहा।पद पर नहीं रहने के बाद भी वे निगम कर्मचारियों के हितों के लिए सक्रिय रहे।
ज्यादातर लोग उन्हें काका कहा करते थे जबकि पूर्व मंत्री सज्जन वर्मा उन्हें कप्तान शायद उनके क्रिक्रेट प्रेम के कारण ही कहते थे।स्व महेश जोशी से उनकी मित्रता रही। श्रमिक क्षेत्र से पार्षद चुनकर गए कैलाश विजयवर्गीय, रमेश मेंदोला भी उनके प्रति आदर भाव रखते थे।मप्र के पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, उनके भाई विधायक सचिन यादव भी उन्हें काका कह कर ही पुकारते रहे।
जब इंदौर में हर दो-चार महीने में दंगे होते रहते थे तब नयापुरा में भड़के तनाव में उनके परिवार के सदस्य की हत्या कर दी गई थी, कुछ दिन कर्फ्यू भी लगा। उस दौरान रमेश यादव ने संयम नहीं रखा होता और बदला लेने को आतुर समाजजनों को समझाया नहीं होता तो नफरत की आग और भड़क सकती थी।मेरी पत्रकारिता में हर उतार चढ़ाव के साक्षी रहे और अकसर पीड़ा जाहिर करते हुए कहते थे रेस का घोड़ा तांगे में जुता है।महू में ससुराल और योगेश यादव के मौसा होने के कारण वहां भी कांग्रेस में उनका प्रभाव था, ऐसे जमीनी नेता वाली पीढ़ी कांग्रेस में कम होती जा रही है।