देश की पहली महिला क्रिकेट कमेंट्रेटर थीं चंद्रा नायडू

  
Last Updated:  April 5, 2021 " 05:53 pm"

स्मृति शेष/चंद्रा नायडू :

पिता कर्नल सीके नायडू की लाड़ली रहीं ताउम्र।

जीडीसी में अंग्रेजी की प्रोफेसर थीं।

हिंदी में करती थीं क्रिकेट कमेंटरी।

तब शहर में न इतनी कारें थीं न ऐसा ट्रैफिक, सेल्फ ड्राइव करने वाली पांच महिलाओं को जानते थे लोग।

🔸कीर्ति राणा इंदौर 🔸

दशकों पूर्व शहर की सड़कों पर गिनीचुनी महिलाएं ही कार दौड़ाती नजर आती थीं, उनमें कैप्टन सीके नायडू की लाड़ली बिटिया चंद्रा नायडू इसलिए भी शहर में पहचानी जाती थीं कि कर्नल नायडू के स्वस्थ रहने तक वे ही हर फंक्शन में उनके साथ रहती थीं। कर्नल नायडू की लाड़ली बेटी इसलिए कि उनकी दिनचर्या से लेकर किससे मिलेंगे, कब, कहां जाएंगे यह सब वे ही तय करती थी।नायडू भी इसीलिए अन्य बच्चों की अपेक्षा चंद्रा को अधिक स्नेह करते थे।कर्नल नायडू का क्रिकेट भी उनके बच्चों में मैडम नायडू पर ही अधिक छाया। उन्होंने अपने पिता महान क्रिकेटर सीके नायडू पर ‘अ डॉटर रिमेम्बर्स’ नाम से किताब भी लिखी।

मोतीतबेला वाले गर्ल्स कॉलेज में वो थीं तो अंग्रेजी की प्रोफेसर, लेकिन क्रिकेट की पहली हिंदी महिला कमेंटेटर का खिताब उनके नाम रहा।इंदौर के ही सुशील दोषी के मुकाबले उनकी हिंदी कमेंटरी का वैसा स्तर तो नहीं रहा, कुछ समय बाद उन्होंने यह फील्ड छोड़ भी दी लेकिन आज जब उनके निधन की खबर चली तो उन्हें देश की पहली महिला क्रिकेट कमेंटेटर के रूप में ही याद किया गया।
जीडीसी मोतीतबेला में जब चंद्रा नायडू अंग्रेजी की प्रोफेसर थीं तब अशोक कुमट पोलिटिकल साइंस के जूनियर प्रोफेसर थे।बाद में जब कुमट सर दैनिक भास्कर के स्पोर्ट्स एडिटर बनें तब नायडू मैडम अकसर शाम को आफिस आती रहती थीं।महीन आवाज और मुस्कुराता चेहरा, उनसे टकराकर सुगंधित हुआ हवा का झोंका पूरे हॉल को खुशबूदार कर देता था।

कुमट सर बताने लगे 1972 में मैने जीडीसी ज्वाइन किया तब मैडम हमारी सीनियर थीं। प्राचार्य थीं विमला शर्मा, उन्होंने ड्यूटी लगा दी कि कॉलेज में लड़के न घुस पाए। मैडम के साथ हम कॉलेज परिसर में इस आदेश का भी पालन करते रहते।जीडीसी में उन्होंने अंग्रेजी नाटक भी करवाए।महिला क्रिकेट में उनका योगदान रहा, कमेंटेटर वो थीं ही और कर्नल की पुत्री-यही सारे कारण रहे कि वे बीते 15 वर्षों से एमपीसीए की मेंबर भी रहीं।

पहले मैं स्वदेश में स्पोर्ट्स जर्नलिज्म करता था, सत्यव्रत रस्तोगी संपादक थे। कई मित्र सलाह देते तुम कॉलेज में हो और संघ विचारधारा वाले अखबार में लिख रहे हो, नौकरी में परेशानी न बढ़ जाए।बाद में नवभारत और भास्कर से जुड़ गया, मैडम नायडू से संपर्क बना रहा लेकिन कुछ वर्षों से वे सबसे कट सी गई थीं।

कमेंटेटर-पद्मश्री सुशील दोषी ने उनके निधन पर अफसोस जाहिर करने के साथ ही कहा महिला क्रिकेट को इंदौर मेंस्थापित करने में उनका काफी योगदान रहा है।कवि सरोज कुमार का कहना था मैं डेढ़-दो साल से प्रयास कर रहा था चंद्रानायडू से मुलाकात करूं, वो वक्त ही नहीं दे रही थीं। मैंने सुशील दोषी को भी बताया, उन्होंने कहा था मैं बात करता हूं, साथ चलेंगे मिलने पर अब तो वह चले ही गईं।

🔹तब शहर छोटा था इसलिए चर्चा में रहीं।

फर्राटे से कार दौड़ाने वाली ये महिलाएं।

दशकों पूर्व इंदौर छोटा था, न इतनी कारें थीं और न ही इतना ट्रैफिक, ऐसे में फर्राटे से कार दौड़ाने वाली महिलाएं सबकी नजर में आ जाती थीं।एक तो चंद्रा नायडू थी ही, दूसरी थीं कवियत्री चंद्रकांता महाजन ‘अकेली’ (दैनिक भास्कर में रहे अनिल महाजन की मां), तीसरी हमीदा वली मोहम्मद जो यशवंत क्लब के सेक्रेटरी रहे जेडी मेहता की दोस्त के रूप में अधिक पहचानी जाती थीं।बाद में वे मुंबई शिफ्ट हो गईं, आकाशवाणी मुंबई में कार्यक्रम देने लगीं, श्रीमती रानडे के नामसे वे लेखन क्षेत्र में सक्रिय हो गईं।कैप्टन नरेंद्रसिंह भंडारी की पत्नी विजया भंडारी और दिगंबर जैन समाज इंदौर के अध्यक्ष भरत मोदी की माताजी-सर सेठ हुकमचंद की पुत्री चंद्रप्रभा मोदी। सेल्फ ड्राइव करने वाली इन पांचों महिलाओं को शहर के अधिकांश लोग इसलिए भी जानते थे क्योंकि ये महिलाएं सामाजिक कार्यक्रमों, गोष्ठियों खेल गतिविधियों में भी सक्रिय रहती थीं।

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