शिक्षा नीति में बदलाव के समर्थन की दिलाई गई शपथ।
इंदौर : अहंकार चाहे सत्ता का हो, शक्ति और सौंदर्य का हो या संपत्ति का, मनुष्य को पतन के मार्ग पर ले जाता है। काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसे विकारों से कोई बच नहीं सकता। ये सब नर्क के द्वार हैं, यह जानते हुए भी हम सब इनकी चपेट फंसे हुए हैं। क्रोध किसी शॉपिंग मॉल या जनरल स्टोर पर नहीं मिलता। गीता का मनन और मंथन करने वाला सत्य की अभिव्यक्ति से दूर नहीं रह सकता। गीता जीवन को दिव्य दृष्टि प्रदान करने वाला ग्रंथ है।
अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने गीता भवन में गत 2 दिसम्बर से चल रहे 65 वे अ.भा. गीता जयंती महोत्सव के समापन समारोह में अध्यक्षीय उदबोधन देते हुए उक्त प्रेरक बातें कहीं। इसके पूर्व धर्मसभा में डाकोर के वेदांताचार्य स्वामी देवकीनंदन दास, भीकनगांव के पं. पीयूष महाराज, पानीपत की साध्वी ब्रह्मज्योति, वाराणसी के पं. रामेश्वर त्रिपाठी, गोंडा के पं. प्रहलाद मिश्र रामायणी, उदयपुर के माणकराम महाराज, जोधपुर के रामस्नेही संत हरिराम शास्त्री ने भी अपने प्रेरक और प्रभावी विचार व्यक्त किए।
प्रारंभ में गीता भवन ट्रस्ट की ओर से राम ऐरन, रामविलास राठी, मनोहर बाहेती, टीकमचंद गर्ग, महेशचंद्र शास्त्री, दिनेश मित्तल, हरीश माहेश्वरी, पवन सिंघानिया, प्रेमचंद गोयल, राजेश गर्ग केटी एवं सत्संग समिति की ओर से जे.पी. फड़िया, श्याम अग्रवाल (मोमबत्ती), प्रदीप अग्रवाल, रामकिशोर राठी, अरविंद नागपाल आदि ने संत-विद्वानों का स्वागत किया।
धर्मसभा के बाद समापन समारोह में अध्यक्ष राम ऐरन एवं मंत्री रामविलास राठी ने महोत्सव में पधारे हुए सभी संत- विद्वानों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उन्हें अगले वर्ष 66वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव में पधारने का न्यौता दिया। गीता भवन ट्रस्ट एवं गीता भवन अस्पताल की गतिविधियों का ब्यौरा देते हुए उन्होंने महोत्सव में सहयोग देने वाले सभी बंधुओं के प्रति आभार व्यक्त किया। समापन की श्रृंखला में आचार्य पं.कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में चल रहे विष्णु महायज्ञ की पूर्णाहुति भी जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज के सान्निध्य में यज्ञ देवता के जयघोष के बीच संपन्न हुई।
शिक्षा नीति में बदलाव के समर्थन की ली शपथ।
जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने गीता जयंती महोत्सव के समापन अवसर पर धर्मसभा में मौजूद हजारों भक्तों को शिक्षा नीति में बदलाव के समर्थन की शपथ दिलाई। अपने उदबोधन में उन्होंने कहा कि भारत के गौरवशाली इतिहास को दरकिनार कर अब तक हमारे बच्चों को पाठ्यपुस्तकों में हमलावरों और आतंकियों के जीवन चरित्र के पाठ पढ़ाए जा रहे हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि इतने बरसों बाद भी हमें देश पर आक्रमण करने वालों की गौरवगाथा के पाठ पढ़ाए जा रहे हैं। विश्व गुरू और सोने की चिड़िया कहा जाने वाला देश इन हमलावरों के जीवन वृत्त को क्यों पढ़े। अब यदि एक बार फिर से नया इतिहास लिखने और शिक्षा नीति में बदलाव की बात हो रही है तो हमें इसका खुलकर समर्थन करना चाहिए। हमारी शिक्षा नीति वैसे भी बेरोजगारी और नौकरीपेशा मानसिकता वाली बन गई है। इसमें बदलाव कर सरकार को गुरूकुल पद्धति से संस्कार आधारित शिक्षा की व्यवस्था लागू करना चाहिए।
इस अवसर पर गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, महामंत्री रामविलास राठी, न्यासी मडल के मनोहर बाहेती, टीकमचंद गर्ग, महेशचंद्र शास्त्री, हरीश माहेश्वरी, दिनेश मित्तल, प्रेमचंद गोयल, सत्संग समिति के जे.पी. फड़िया, श्याम अग्रवाल, प्रदीप अग्रवाल, रामकिशोर राठी, अरविंद नागपाल तथा श्री विद्याधाम के न्यासी राजेन्द्र महाजन ने भी जगदगुरू के सान्निध्य में शिक्षा नीति में बदलाव के समर्थन की शपथ ली।