*रेणु*
“ताल ये बेताल है..खुद को ढूंढता..तू क्यों बेहाल है।
ऊंचाइयों को छूने की..तुझमें मचलती ये तड़प क्या बेमिसाल है।
ना कोई रोकेगा…ना कोई टोकेगा..भेड़ियों की नस्ल की तरह तू लगाता घात है।
रात भर जागता वो…रटटे भी मारता वो…इक़वेशन की क्वेश्चन ढूंढता ये जनाब है।
रात दिन लगाया…खुद को जलाया…विजयी होगा तू…ये अपने मन को भी समझाया।
आखिर दिन दिन गिन…आया आया वो दिन…मोर्चे को तैयार वो खड़ा हुआ एक दिन।
हौसला न पूछो क्या था…आंखों से दिखता वो तेज और हाथ में कलम…लिखा वो जो मुझे है दिखता…ना डरे.. ना रुके..जो धमकियां तूने मुझे है दी।
समाज क्या और क्या उसकी बातें..न घर से निकल तू..न रात टहल तू।
ये पढ़ाई…ये लिखाई…ना कर तू
ना लड़ तू…भिड़ तू ।
बस कर किस्मत से समझौता..
और बस कर तू…कर तू।
शादी ही सबकुछ…क्यों ऐसा कह तू…बस कह तू..।
अपने हौंसले से ना डर तू…
आज नहीं पर कल यही समाज होगा तेरे साथ..ना डर तू..
बस कर तू…जो तुझे है करना…कर तू।
तू सही…तेरा ये हौसला सही…
बस ना डर तू…बस कर तू…कर तू।