🔺स्मृति शेष/कीर्ति राणा 🔺
इंदौर: सत्तर का दशक निरंतर होने वाले नाटकों के लिए याद रखा जाता है। तब बाबा डिके अपनी संस्था नाट्य भारती के माध्यम से महीने में एक-दो नाटक तो करते ही थे।उसी दौरान एक और नाट्य संस्था ‘प्रयोग’ का जन्म हुआ था।होल्कर कॉलेज में भौतिकी शास्त्र के प्रोफेसर सतीश मेहता ने प्रयोग के माध्यम से शहर में रंगकर्म और उसमें भी नए प्रयोग की अलख जगाने का काम किया।पिछले चार-पांच साल से वे बीमार थे, रोग लाइलाज होने से देश-विदेश के डॉक्टर भी असहाय साबित हुए।उनके निधन की सूचना से इंदौर के रंगकर्म जगत को भी धक्का लगा है।पत्नी भोपाल में और लड़का, लड़की अमेरिका में रहते हैं।
सतीश मेहता नाटकों में प्रयोग और खासकर नुक्कड़ नाटक के कारण पहचान बना चुके थे।करीब दो दशक पहले उनका तबादला एमवीएम भोपाल हो गया था लेकिन रंगकर्म और वे दोनों पर्याय हो गए थे।इस जोड़ को निरंतर मजबूत मिलती रही तो उसका प्रमुख कारण ज्योत्सना मेहता रहीं जो उनकी प्रेरणा भी रही हैं।
तब ‘प्रयोग’ के साथ ही कवि सरोज कुमार की पहल पर इंदौर थियेटर की स्थापना हुई थी।जिस तरह ‘ ‘प्रयोग’ द्वारा ‘दुलारी बाई’ (मणि मधुकर) के करीब 80 शो हुए। उनके ग्रुप के प्रमुख कलाकार सुशील जौहरी, महेश तिवारी, जयश्री सिक्का, तरल मुंशी, दिनेश चोपड़ा, चंद्रशेखर व्यास, कविता गायकवाड़ आदि थे।इंदौर थियेटर में रायपुर वाले अशोक मिश्र के निर्देशन में ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ के खूब मंचन हुए, इसमें मंत्री का रोल मैंने किया था।
सतीश मेहता को याद करते हुए सरोज कुमार जी कहने लगे इंदौर थियेटर शुरु जरूर किया लेकिन उनसे कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी, मैं तब भी उनके नाटकों की रिहर्सल देखने के साथ जरूरी सुझाव भी देता था।नाटकों को लेकर सतीश ने लिखा भी खूब, वो खुद संगीत विशारद थे तो नाटक भी संगीतमय हुआ करते थे।प्रयोग को भोपाल में भी पूरी ताकत के साथ उन्होंने सक्रिय बनाए रखा।
अभिनेता-रंगकर्मी सुशील जौहरी का कहना था 1976 में जब मेरे मन में रंगकर्म को जानने समझने की इच्छा बलवती हुई तब नगर में प्रोफेसर मेहता साहब की नाट्य संस्था प्रयोग नाट्य कर्म में उल्लेखनीय प्रायोगिक कार्य कर रही थी।
मैं सौभाग्यशाली था कि मेहता साहब ने मुझे अपनी टीम में सम्मिलित कर रंगकर्म की बारहखड़ी सीखने का अवसर प्रदान किया।तब रंगकर्म को
प्रचलित ड्राइंग रुम वाले बाक्स थियेटर से बाहर निकालने के जो प्रयोग देश भर में हो रहे थे, तब इन्दौर में रंगमंच की इस नई लहर के प्रतिनिधि निर्देशक प्रोफेसर सतीश मेहता ही थे।उन्होंने
न्युट्रल प्रोसिनियम मंच पर नाट्य मंचन, रंग दर्शकों के बीच,किसी हॉल में बिना किसी मंच और सेट के नाट्य प्रदर्शन, बगीचों के मुक्ताकाशी मैदानों में प्रेक्षक वृन्द के मध्य नाटक की प्रस्तुति, सड़कों पर नुक्कड नाटकों के स्वरूप में नाटिकाओं के प्रदर्शन आदि प्रयोग किए।उस दौर के अपने सभी रंगस्नेही कलाकारों और प्रेक्षकों की ओर से मेरे आदरणीय गुरुदेव स्वर्गीय सतीश मेहता जी की अनेकानेक प्रेरणादाई स्मृतियों को प्रणाम करता हूं ।
नाटक किए भी और लिखे भी
प्रयोग के माध्यम से करीब 60 नाटकों के 600 से अधिक प्रदर्शन किए, जिनमें अंधों का हाथी, जुलूस, लंगड़ी टांग, आला अफसर, जिन लाहौर नहीं देख्या आदि का निर्देशन किया। उन्होंने जिंदा है सुकरात, दूर देश की गंध, काजल का जादू, अभिनय और बच्चों के लिए चमड़े की नाव नाटक लिखा।