कोरोना का एक और वैरिएंट आया सामने, विशेषज्ञों का दावा टीकाकृत लोगों पर नहीं होगा ज्यादा असर

  
Last Updated:  February 19, 2022 " 06:53 pm"

इंदौर : ओमिक्रोन के साथ आई कोरोना की तीसरी लहर अब उतार पर है लेकिन कोरोना वायरस हमारा पीछा छोड़नेवाला नहीं है। पश्चिमी देशों में कोरोना के एक और नए स्वरूप ने दस्तक देकर वैज्ञानिकों के साथ डॉक्टर्स की भी चिंता बढा दी है।

ओमिक्रोन और डेल्टा का मिलाजुला स्वरूप है नया वैरिएंट।

कोरोना वायरस के नए स्वरूप के सामने आने पर ‘अवर लाइव इंडिया’ ने वरिष्ठ चिकित्सक और एमजीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ. वीपी पांडे से चर्चा की। डॉ. पांडे ने कोरोना वायरस के नए वैरिएंट की पुष्टि करते हुए बताया कि कोरोना वायरस तीन से चार माह में अपना स्वरूप बदलता रहता है। अभी तक कोरोना के अल्फा, बीटा, डेल्टा और ओमिक्रोन जैसे वैरिएंट सामने आ चुके हैं। ओमिक्रोन बेहद संक्रामक था पर उसकी घातकता कम रही। जितनी तेजी से इसने लोगों को संक्रमित किया था, उतनी ही तेजी से इसका प्रभाव खत्म हो रहा है। अब कोरोना का नया वैरिएंट ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में मिला है। इसे डेल्टाक्रोन नाम दिया गया है। यह ओमिक्रोन और डेल्टा का मिलाजुला रूप है। अभी इसके बारे में वैज्ञानिक अध्ययन में जुटे हैं पर ये कहा जा सकता है कि जिन लोगों का टीकाकरण हो चुका है उनमें यह नया वैरिएंट भी ज्यादा घातक सिद्ध नहीं होगा।

ओमिक्रोन से मिली अच्छी एंटीबॉडी।

डॉ. पांडे ने बताया कि जिन लोगों का टीकाकरण हो चुका था, वे ओमिक्रोन से संक्रमित हुए भी तो जल्द ठीक हो गए और उनमें एंटीबॉडी भी अच्छी मात्रा में विकसित हो गई। ओमिक्रोन का ये एक सकारात्मक पहलू देखा गया।

सूंघने वाली वैक्सीन और दवाई।

डॉ. पांडे बताया कि कोरोना की एक और वैक्सीन उपलब्ध होने जा रही है। यह सूंघने वाली वैक्सीन है। नाक के जरिए यह शरीर में जाकर एंटीबॉडी का निर्माण करती है। दूसरे कोरोना के इलाज में नई दवाई ‘नाइट्रस ऑक्साइड’ जल्द उपलब्ध हो जाएगी। इसे सुबह- शाम नाक के जरिए दिया जाता है। इससे कोरोना का वायरस नाक में ही खत्म हो जाता है। संक्रमण आगे नहीं बढ़ पाता।

ज्यादातर मौतों का कारण अधिक उम्र और अन्य गंभीर बीमारियां।

यह पूछे जाने पर की ओमिक्रोन की घातकता कम होने के बावजूद बीते डेढ़ माह में 60 से ज्यादा मौतें होने की क्या वजह रही..? इस पर डॉ. पांडे का कहना था कि कोरोना से होनेवाली हर मौत का डेथ ऑडिट किया जाता है। इसमें यह बात सामने आई कि ज्यादातर मौतों का कारण मरीजों की अधिक उम्र और गंभीर बीमारियों से ग्रसित होना रहा। उम्रदराज लोगों में रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाती है। ऐसे में मल्टी ऑर्गन फेल्योर होना उनकी मौत की वजह बन जाती है। इसके अलावा जिन लोगों को बीपी, शुगर, किडनी, हार्ट और लिवर, कैंसर जैसी बीमारियां पहले से है, वे कोरोना से संक्रमित होते हैं तो उन्हें खतरा अधिक होता है। इस बार कोरोना से जो भी मौतें हुई, उनमें यह दोनों कारण प्रमुख रहे।

मौसम से संक्रमण का कोई सम्बन्ध नहीं।

डॉ. पांडे ने बताया कि बीते दो वर्षों में यह देखा गया है कि मौसम के ठंडा या गर्म होने का कोरोना संक्रमण से कोई लेना-देना नहीं है। वैज्ञानिकों को भी इस बारे में अपने अनुमान बदलने पड़े हैं। दरअसल, जब भी कोरोना वायरस की आधारभूत संरचना में बदलाव होता है, संक्रमण फैलने लगता है।

मास्क और टीकाकरण ही कारगर उपाय।

डॉ. पांडे के मुताबिक ये माना जाता है कि कोरोना का वायरस नाक के रास्ते ही शरीर में प्रवेश करता है, अतः इसे रोकने में मास्क बेहतर तरीका है। इसी के साथ टीकाकरण ही वो ब्रह्मास्त्र है, जिससे कोरोना संक्रमित होने पर भी उसकी घातकता से लोग बचे रहते हैं। ऐसे में मास्क का उपयोग नियमित रूप से करें और जिन लोगों ने अभी तक वैक्सीन नहीं लगवाई है, उन्हें तुरंत लगवा लेना चाहिए।

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