धैर्य रखा है मैंने सदियों आगे भी धीरज धर लूँगी मैं “सीता”, हूँ तुम जैसी ही नयन में सपने भर लूँगी।
लंबा वक़्त गुज़ारा मैंने उस रावण की लंका में था अटूट विश्वास प्रभु को नहीं रहे किसी भी शंका में।
बलिदान की बेदी पर मैंने न जाने क्या क्या वारा था छूट गया ये जग मुझसे लेकिन, स्व सम्मान मुझे भी प्यारा था।
कुछ इसी तरह तुझसे भी सब कुछ छीना जाएगा लेकिन, इसी तरह धीरज धरके ही तुझको भी जीना आएगा।
जगत की जननी है तू भी अग्नि में कूदी है तू भी निश्चित ही लंबा युद्ध है ये पर अपमानित न होना, समय परीक्षा ले रहा तू अपना धीरज न खोना, बस तू अपना धीरज न खोना ।।
यह कविता अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर लेखिका (एंकर) कीर्ति सिंह गौड़ ने तमाम महिलाओं को समर्पित की है।