ओटीटी प्लेटफॉर्म पर मिली अभिव्यक्ति की आजादी का हो सही उपयोग

  
Last Updated:  August 3, 2024 " 12:50 am"

फिल्म टीवी उद्योग का आकार के साथ गुणवत्ता भी बढ़ना ज़रूरी।

भारत के फिल्म फेस्टिवल सरकारी एजेंसियों के दखल के कारण उच्च स्तर पर नहीं पहुंच पाते।

स्टेट प्रेस क्लब,मप्र में मीडिया के साथियों से चर्चा में बोले अभिनेता अनंत महादेवन और अन्य कलाकार।

इंदौर के पहले फिल्म स्कूल का किया उद्घाटन।

इंदौर : फिल्म, टीवी, वेब मीडिया उद्योग का आकार विगत दशकों में बहुत बढ़ा है लेकिन उनमें सब्सटेंस या मूल तत्व का अभाव होता जा रहा है। तकनीकि रूप से बहुत आगे बढ़ने के बाद भी दिल को छूने वाला काम कम हो गया है। स्ट्रीमिंग या ओटीटी प्लेटफॉर्म में सेंसरशिप ना होने से बहुत सी बुराइयां इससे जुड़ गईं हैं, अभिव्यक्ति की इस आज़ादी का सही उपयोग करना जरूरी है।

ये बात सुप्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता एवं निर्देशक अनंत महादेवन ने स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश के तत्वावधान में इंदौर के पहले फिल्म स्कूल के उद्घाटन के मौके पर मीडिया के साथियों से चर्चा में कहीं। OMG 2 के निदेशक अमित राय, कई फिल्म फेस्टिवल से जुड़े फिल्म निर्माता मनोज श्रीवास्तव एवं इंदौर फिल्म स्कूल के निदेशक फिल्म निर्माता कुणाल श्रीवास्तव भी इस दौरान मौजूद रहे।

दिल को छूने वाले होने चाहिए कंटेंट।

अभिनेता अनंत महादेवन ने कहा कि सृजन दिल से निकला होना चाहिए। उन्होंने सदा उन्हीं विषयों पर फिल्में या सीरियल बनाए जो उनके दिल को छूते थे। उन्होंने इंदौर फिल्म स्कूल को फिल्मोद्योग में प्रवेश के इच्छुक प्रतिभाओं के लिए अच्छा अवसर बताते हुए कहा कि पहले के अभिनेताओं को स्वयं के अनुभव से सीखने में लंबा समय लगाना पड़ता था।

रिश्तों में ईमानदार रहें,खुद पर भरोसा रखें।

रोड टू संगम और चर्चित फिल्म ओएमजी टू के निदेशक अमित राय ने कहा कि उनकी कहानियां किसी धार्मिक रूढ़िवादिता पर प्रहार नहीं करती बल्कि वे रिश्तों और कल्चर की गहरी जड़ों को अपनी फिल्मों में उभारने की कोशिश करते हैं। उन्होंने नए विद्यार्थियों को सलाह दी कि परिवार और मित्रों के रिश्तों में ईमानदार रहें ताकि फिल्म के संघर्ष में उनका साथ रहे। दूसरा, यदि मन के मुताबिक काम न मिले तो स्वयं को परमार्जित करते हुए अपनी विचारधारा के अनुकूल काम मिलने का इंतज़ार करें। अपने मन की अभिव्यक्ति में झूठ का सहारा न लें और न साहस खोएं। स्वयं पर अटूट भरोसा रखना इस उद्योग में सफलता की पहली शर्त है।

जरूरत से ज्यादा सरकारी दखल से फिल्म फेस्टिवल की नहीं बन पाती पहचान।

अनेक फिल्म फेस्टिवल के निदेशक रहे फिल्म निर्माता निर्देशक मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि भारत में IFFI के साथ इतनी सरकारी एजेंसियां और उनके अधिकारियों के दिमाग जुड़े होते हैं कि देश का अपना विश्व स्तर का फ़िल्म फेस्टिवल स्थापित कर पाना मुश्किल है। वास्तव में भारत का फिल्म फेस्टिवल सरकारी एजेंसियों की आपसी खींचतान में ही उलझ जाता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इंदौर फ़िल्म स्कूल के विद्यार्थी अगले चार पांच सालों में ही उद्योग के लिए उपयोगी साबित होकर अपना मुकाम बना लेंगे।

फिल्म स्कूल में मिलेगा स्तरीय प्रशिक्षण।

इंदौर फिल्म स्कूल के निदेशक कुणाल श्रीवास्तव ने कहा कि इस संस्थान में विद्यार्थियों को कई वर्षों में मिलने वाली स्किल्स बहुत कम समय में मिल जायेंगी। मप्र शासन द्वारा प्रदेश में फिल्म निर्माण के लिए सब्सिडी देने से प्रदेश में स्कोप बढ़ा है लेकिन उसके प्रशिक्षित लोगों का अभाव है। चूंकि उनका प्रोडक्शन हाउस कई फिल्में और संबंधित निर्माण स्वयं करता है इसलिए विद्यार्थियों को प्रशिक्षण के साथ उद्योग का असल अनुभव भी मिलेगा। वे इस कार्य को फिल्मोद्योग में प्रवेश के लिए तत्पर प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के मक़सद से करना चाहते हैं, पैसा कमाने के उद्देश्य से नहीं।

कार्यक्रम के आरंभ में स्टेट प्रेस क्लब, मप्र के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल, श्रीमती रचना जौहरी, सोनाली यादव, रवि चावला,अभिषेक सिसोदिया और पंकज क्षीरसागर ने अतिथियों का स्वागत किया व स्मृति चिन्ह प्रदान किए। कार्टूनिस्ट गोविन्द लाहोटी ‘कुमार’ ने सभी अतिथियों को उनके द्वारा निर्मित कैरीकेचर भेंट किए। आयोजन में सभी फिल्मी हस्तियों से बेहद रोचक संवाद कर पत्रकार एवं बहुविध संस्कृतिकर्मी आलोक बाजपेयी ने किए। इंदौर फिल्म स्कूल की ओर से अनंत महादेवन,अमित राय एवं मनोज श्रीवास्तव ने प्रवीण खारीवाल, आलोक बाजपेयी, सोनाली यादव एवं बंसी लालवानी को सम्मानित किया।

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