दैनिक भास्कर समूह के नेशनल एडिटर रहे कल्पेश याग्निक के सुसाइड मामले में आरोपी है सलोनी अरोरा।
पीके शुक्ला के निधन की खबर भी लापता।
🔺कीर्ति राणा🔺
कभी इंदौर में नईदुनिया का एक तरफा साम्राज्य था, जैसा राजस्थान में राजस्थान पत्रिका का हुआ करता था। इंदौर में दैनिक भास्कर के शुरु होने के बाद नईदुनिया का यही गुरूर 1983 से चूर चूर होना शुरु हुआ, जैसे राजस्थान में जयपुर से दैनिक भास्कर के प्रकाशन के साथ पत्रिका का हुआ ।
आज का दैनिक भास्कर (इंदौर) देख कर लगा कि यह भी नईदुनिया की राह पर चल पड़ा है। इसमें आज दो महत्वपूर्ण खबरें नदारद हैं जो पाठकों की च्वाइस की हैं। एक तो पत्रकार कल्पेश याग्निक को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाली सलोनी अरोरा की फर्जी जमानत मामले में मल्हारगढ़ से गिरफ्तारी और दूसरी खबर शहर के नामचीन वकील पीके शुक्ला के निधन की खबर।
पहले बात सलोनी अरोरा की गिरफ्तारी की।
दैनिक भास्कर में पत्रकार रही सलोनी अरोरा के कथित हनी ट्रेप (सिद्ध होना बाकी है) और मानसिक यंत्रणा के कारण कल्पेश याग्निक (तब दैनिक भास्कर समूह के नेशनल एडिटर थे) को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा था। उनके निधन के समाचार को भी भास्कर ने अपनी लाज बचाते हुए तोड़मरोड़ कर प्रकाशित किया था।
स्व याग्निक की मौत के तीसरे (उठावने) दिन से ही भास्कर ने एक तरह से इस कांड से खुद को अलग कर लिया था। तब से अब तक उनके छोटे भाई नीरज याग्निक अपने बलबूते पर ही कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। इंदौर पुलिस की क्राइम ब्रांच को सलोनी अरोरा को मल्हारगढ़ से गिरफ्तार करने मे जो कामयाबी मिली वह भी नीरज द्वारा दी गई जानकारी पर ही। सलोनी ने अपनी जमानत के लिए दो बार जिन जमानतदारों की मदद ली थी उनमें से एक आदतन जमानतदार होने से कोर्ट ने उस पर रोक लगा रखी थी, फिर भी सलोनी की उसने जमानत दे दी, दूसरी जमानतदार उसकी भाभी थी जिसने कोर्ट में आवेदन देकर सलोनी की जमानत मामले से खुद को अलग कर लिया था।
दोनों जमानत स्वत: रद्द हो जाने पर पुलिस ने तो सलोनी की खोजबीन में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई लेकिन अपने बड़े भाई की असमय मौत और परिवार को न्याय दिलाने के लिए पहले दिन से ही संघर्षरत नीरज ने ही पुलिस को सलोनी के मल्हारगढ़ में होने की खबर दी । इसी आधार पर पुलिस उसे वहां से मंगलवार की रात लेकर आई, कोर्ट में पेश किया और जेल भेज दिया।
मंगलवार की रात से ही सलोनी की गिरफ्तारी से जुड़ी पल पल की खबर, उसे पुलिस कस्टडी में लिए जाने के फोटो सोशल मीडिया पर वॉयरल थे। बुधवार को दैनिक भास्कर के अलावा लगभग सभी दैनिक, सांध्य दैनिक समाचार पत्रों और न्यूज साइट पर यह खबर है। बस दैनिक भास्कर में ही नहीं है । जिसे बोलचाल की भाषा में कहते है भास्कर में क्राइम की हगी-मूती खबरें तो हैं लेकिन सलोनी अरोरा लापता है।शायद इसलिए यह खबर भास्कर में नहीं है कि कल्पेश याग्निक का नाम लिखना पड़ेगा तो पाठकों को भास्कर की याद आएगी।
एक झांसेबाज युवती के जाल में फंसकर आत्महत्या करने को मजबूर हुए कल्पेश याग्निक के परिजनों के दर्द का भी लिहाज नहीं किया, सलोनी की गिरफ्तारी से नजरें चुरा ली भास्कर ने और यह भी साबित कर दिया कि ‘सच के साथ’ लिखना और सच का साथ देने में कितना फर्क है। इस खबर का भास्कर में ना होना यह भी साबित कर रहा है कि बस उनके उठावने तक ही भास्कर इस परिवार के साथ था। उसके बाद दूध में से मक्खी की तरह फेंक दिया।
अब बात पीके शुक्ला के निधन की।
वरिष्ठ अधिवक्ता पीके शुक्ला इंदौर ही नहीं मप्र का परिचित नाम थे। जिला बार और हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के 5-6 बार अध्यक्ष रहे। शहर हित से जुडे मामलों में जनहित याचिका लगा कर प्रशासन और सरकार की नाक में दम करते रहे।ऐसा भी वक्त आया की जमीनी आंदोलन किए और पुलिस की लाठियां भी खाई। उनके सिखाए कई जूनियर वकील आज अदालतों में उनका नाम रोशन कर रहे हैं। अधिवक्ता पीके शुक्ला का फोटो और निधन का समाचार भी मंगलवार की रात से ही सोशल मीडिया पर वॉयरल था। बाकी सभी स्थानीय अखबारों में उनके निधन का समाचार प्रमुखता से छपा है लेकिन दैनिक भास्कर में यह समाचार डेश न्यूज में भी नजर नहीं आया। इसमें प्रबंधन और स्थानीय संपादक से ज्यादा सिटी टीम और कोर्ट की बीट देखने वाले पत्रकार दोषी हैं। पीके शुक्ला इतना भी अपरिचित नाम नहीं, जिसके निधन की पुष्टि करना पड़े। यदि इतने संपर्क भी सिटी टीम के नहीं हैं तो अखबार के सोशल कनेक्ट का क्या मतलब। पीके शुक्ला की बेटी अपूर्वा (सुप्रीम कोर्ट वकील) और उनके पति रोहित (पूर्व सीएम एनडी तिवारी के बेटे) से जुड़े मामले को तो भास्कर ने खूब लिखा था-रोहित की मौत का कारण अत्यधिक नशे का सेवन रहा लेकिन अपूर्वा का नाम भी खूब उछाला था। इसलिए ऐसा भी नहीं कि पीके शुक्ला के नाम को भास्कर संपादक और सिटी टीम नहीं जानती हो। शुक्ला की शवयात्रा से लेकर शोक सभा तक में भास्कर की इस चूक की चर्चा रही।लोग यह भी कहते रहे कि पहले शवयात्रा-उठावने आदि निशुल्क छापने वाले अखबार में जब सशुल्क का दबाव हावी हो जाए तो शुक्ला के नाम-काम को भी अखबार नजर अंदाज कर देते हैं । शवयात्रा में शामिल एक वरिष्ठ अभिभाषक ने बताया बीती रात भास्कर सिटी टीम के एक पत्रकार को फोन पर पीके शुरक्ला के निधन की जानकारी भी दी थी, पता नहीं क्यों नहीं छापा।
भास्कर का अपने शुरुआती दौर में जब इंदौर में नईदुनिया से प्रचार युद्ध चल रहा था तब रेत में सिर छुपाए एक शुतुरमुर्ग का विज्ञापन प्रकाशित किया था । इसका आशय यही था कि नईदुनिया अपने आसपास की खबरों से बेखबर रहता है। आज वही विज्ञापन भास्कर पर परफेक्ट साबित होता नजर आता है।
(ये लेखक के अपने निजी विचार हैं।)