इंदौर : दिगम्बर जैन समाज के सबसे बड़े संत आचार्यश्री विद्या सागर जी महाराज का कहना है कि बच्चों के संस्कार की पहली पाठशाला उसके घर से शुरू होती है। ब्रह्मचारी सुनील भैया और मीडिया प्रभारी राहुल सेठी ने बताया की आचार्य श्री ने कहा की एक माँ बच्चे को लेकर मंदिर में आती है। पाठशाला शुरू हो जाती है। नमस्तु करती है और बच्चे को अर्थ बताती है की नमस्तु का अर्थ धोक देना होता है बेटा। बच्चा देखता रहता है की माँ नमोक़ार की माला फेरती रहती है। माला पूर्ण होने के बाद जब माँ उठी तो बेटा भी उठ गया। इसे कहते हैं पाठशाला। संस्कार इसे क़हाँ जाता है की जैसा आप करेंगे वो बच्चे करेंगे। विद्यालय की भाषा अलग होती है और माता-पिता की भाषा अलग होती है। उसी से उसके संस्कार सामने आते है। वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार चुके है की माता-पिता से ही बच्चे को संस्कार मिलते हैं।
आचार्यश्री शुक्रवार को उदासीन आश्रम में अपने प्रवचनों से श्रद्धालुओं को लाभान्वित कर रहे थे।
मासिक पत्रिका सन्मति वाणी
का विमोचन।
समाजसेवी प्रदीप गोयल ने बताया की मासिक पत्रिका सन्मतीवाणी का विमोचन इस मौके पर आचार्यश्री ने किया। इस पत्रिका में पिछले दिनो आचार्य श्री के सानिध्य में हुए 13 मंदिर के पंचकल्याणक की पूरी जानकारी के साथ आचार्य श्री का इंदौर प्रवास के दौरान कहां- कहां आहार हुआ उसकी जानकारी दी गयी है।
ब्रह्मचारी सुनील भैया ने बताया कि शहर में शुरू होने जा रहे दो दिवसीय गारमेंट फेयर में हथकरघा से बने वस्त्र भी प्रदर्शित किए जाएंगे। ये कदम आचार्यश्री की प्रेरणा से उठाया गया है।
हाई कोर्ट के वकीलों ने आशीर्वाद लिया।
ब्रह्मचारी सुनील भैया, ट्रस्ट के मनोज बाकलीवाल, संजय मेक्स ने बताया की दोपहर में आचार्य श्री और संघ के दर्शनों के लिए हाई कोर्ट अभिभाषक संघ के पदाधिकारी आए थे। उन्होंने आचार्य श्री को बताया कि हाई कोर्ट में प्रवचन की सभी व्यवस्था की गयी है। सभी उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।