जोबट उपचुनाव –
अंचल में सियासी रंग तो छा गया मगर मतदाताओं की खामौशी कर रही बैचेन
इंदौर, प्रदीप जोशी। शरद ऋतु शुरू हो चुकी है मगर दिन में क्वार की गर्मी का अहसास अभी भी कायम है। इस गर्मी का और ज्यादा अहसास करना हो तो अलीराजपुर जिले के जोबट चले आईये। यहां मौसम और सियासत के बीच गर्मी का मुकाबला चल रहा है। विधायक कलावती भूरिया के निधन के बाद रिक्त हुई जोबट विधानसभा सीट पर खासा सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। खास बात यह है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल अपने ही नेताओं पर अविश्वास से ग्रसित है और इन स्थानीय नेताओं को साधने की जिम्मेदारी बाहरी वरिष्ठ नेताओं पर है। इन नेताओं के प्रयास कितने सफल हुए उसका पता चुनाव परिणाम से लग जाएंगा। बहरहाल दलों के भीतर चल रही उठापटक के साथ एक चिंता मतदाताओं की खामौशी की भी है। वनांचल के भोले भाले और सियासत से दूर रहने वाले मतदाताओं की खामौशी का नेता अपने अपने हिसाब से आंकलन कर रहे है। बहरहाल हालात बता रहे है कि इस सीट पर दोनों ही प्रत्याशियों के लिए चुनाव आसान नहीं है, हालांकि यह आंकलन नामांकन भरे जाने तक का है। नाम वापसी के बाद जोबट उप चुनाव की असल तस्वीर सामने आएंगी।
भाजपा को भीतरघात की आशंका
ताजा ताजा भगवा रंग में रंगी भाजपा प्रत्याशी सुलोचना रावत ने शुक्रवार को अपना नामांकन दाखिल किया था। अंचल के तमाम नेताओं के अलावा पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा, महैंद्र सिंह सिसोदिया, सांसद गुमानसिंह डामोर, बड़वानी सांसद गजेंद्र पटेल, राज्यसभा सदस्य सुमेरसिंह, इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला खास तौर पर उपस्थित रहे। नेताओं का यह लवाजमा स्थानीय कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए तो था ही, खास संदेश उन नेताओं को देना था जिनसे भीतरघात की आशंका पार्टी को है। संगठन की यह कोशिश नामांकन के दिन बहुत सफल रही। सारे स्थानीय नेता मंच पर थे और छाती ठोक कर जीत के दावे करने में भी पीछे नहीं रहे। विजयवर्गीय ने भी कहा कि सुलोचना रावत की जीत के साथ लोगों को माधोसिंह, मुकामसिंह, विशाल रावत, नागरसिंह और रमेश मेंदोला जैसे पांच जनसेवक मिलने वाले हैं। बहरहाल, यह जज्बा मतदान के दिन तक कायम रहे तो भाजपा की नैय्या पार हो जाएगी। पर जानकारों को स्थानीय नेताओं की बातों और इरादों में मेल नजर नहीं आ रहा।
चुनौतियां से घिरी है कांग्रेस –
जोबट जैसी अपनी परम्परागत सीट पर कांग्रेस की राह भी मुश्किलों में घिरी नजर आ रही है। अलीराजपुर सीट छोड़ कांग्रेस के कद्दावर नेता महेश पटेल जोबट में किस्मत आजमाने पहुंच तो गए मगर पहले दिन से चुनौतियों में घिर गए। पहली चुनौती सुलोचना रावत का दल बदलना था ही, कलावती भूरिया के भतीजे दीपक भूरिया ने निर्दलीय नामांकन भर कर दूसरी चुनौती खड़ी कर दी। तीसरी चुनौती कांतीलाल भूरिया, विक्रांत भूरिया सहित अंचल के तमाम स्थानीय नेताओं को साधने की है। हालांकि इस काम के महारथी माने जाने वाले खरगौन विधायक रवि जोशी चुनाव प्रभारी की हैसियत के जोबट में डेरा जमा चुके हैं। बावजूद इसके, हर नेता को सम्मान की अति भूख है जो महेश पटेल के चुनावी अभियान में सबसे बड़ी बाधा बन सकती है। हालांकि नामांकन दाखिल करने के वक्त राष्ट्रीय सचिव और प्रदेश के सह प्रभारी कुलदीप इंदौरा, कांतिलाल भूरिया, डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ, बाला बच्चन, हनी बघेल, प्रताप ग्रेवाल, ग्यारसीलाल रावत जैसे नेता मौजूद थे। वैसे इस सीट की मानिटरिंग खुद कमलनाथ कर रहे है इससे महेश पटेल को राहत बनी रहेंगी।
नेताओं के सामने वजूद बचाने की चिंता –
कांग्रेस और भाजपा के स्थानीय नेताओं के सामने सबसे बड़ी चिंता अपने राजनैतिक वजूद को बचाने की है। पद और टिकट की चाह में तमाम नेताओं ने अंचल में खासी मेहनत की। बाहरी और दल बदल के आने वालों को टिकट दिए जाने के बाद इन नेताओं के सामने नया संकट खड़ा हो गया है। बात जोबट विधानसभा सीट की करें तो यहां शहरी वार्डो से ज्यादा पंचायतों का दखल है। सरपंचों के तेवरों को तो भाजपा ने ताजा ताजा झेला भी है। दरअसल बात सिर्फ विधानसभा चुनाव की नहीं है। आने वाले दिनों में इस चुनाव का असर स्थानीय निकाय और पंचायतों के चुनाव में भी नजर आएंगा। हक अधिकार छीने जाने का जो असर छोटे चुनावों में होगा वह स्थानीय नेताओं के राजनैतिक केरियर के लिए खतरा बन सकता है।