इंदौर : आज की पत्रकारिता में वो तेवर नजर नहीं आते जो स्व. राहुल बारपुते की पत्रकारिता में दिखाई देते थे। वर्तमान दौर में जब अभिव्यक्ति की आजादी सबसे खराब दौर से गुजर रही हो, राहुलजी का दौर याद आता है। राहुल बारपुते नहीं होते तो देश और हिंदी पत्रकारिता को राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी, शरद जोशी जैसे दिग्गज पत्रकार नहीं मिलते। ये बात वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने कही। वे संस्था सूत्रधार और नाट्यभारती के बैनर तले आयोजित राहुल बारपुते जन्म शताब्दी प्रसंग कार्यक्रम में बोल रहे थे। कार्यक्रम रीगल तिराहा स्थित प्रीतमलाल दुआ सभागृह में रखा गया था।
श्री गर्ग ने आगे कहा कि स्व. बारपुते पत्रकारों को गढ़ने का काम करते थे। देश का शायद ही कोई मीडिया संस्थान होगा, जहां उनकी छत्रछाया से निकले पत्रकार की मौजूदगी न रही हो। वे पत्रकारिता और सांस्कृतिक क्षेत्र की धरोहर थे।
गलती नहीं दोहराने पर देते थे जोर।
वरिष्ठ पत्रकार उमेश त्रिवेदी ने स्व. बारपुते को याद करते हुए कहा कि उनका विराट व्यक्तित्व था। गलतियां करने पर वे डांटते नहीं थे लेकिन उन्हें न दोहराने की नसीहत जरूर देते थे।
नाट्य भारती के अरुण डिके ने एक रंगकर्मी के बतौर राहुल बारपुते को याद करते हुए कहा कि स्व. बाबा डिके ने राहुल बारपुते के साथ मिलकर ही 1955 में नाट्य भारती की स्थापना की थी। कई नाटकों में स्व. बारपुते ने अभिनय भी किया।
इसके पूर्व स्व. राहुल बारपुते की 1962 में अमेरिका यात्रा के दौरान वहां लिए गए उनके ऑडियो इंटरव्यू के चुनिंदा अंश उपस्थित श्रोताओं को सुनाए गए।
कार्यक्रम के तीसरे और अंतिम चरण में ख्यात मराठी साहित्यकार पु.ल. देशपांडे लिखित मराठी नाटक ‘तुझ आहे तुझ पाशी’ के राहुल बारपुते द्वारा किए गए हिंदी अनुवाद ‘कस्तूरीमृग’ को स्वराभिनय के जरिए प्रस्तुत किया गया। नाट्य भारती की इस प्रस्तुति को श्रीराम जोग के निर्देशन में दिलीप लोकरे, प्रतीक्षा बेलसरे, श्रुतिका जोग कलमकर, श्रेयस खंडारे, श्रीरंग डिडोलकर और स्वयं श्रीराम जोग ने पेश किया।
कार्यक्रम का संचालन संस्कृतिकर्मी संजय पटेल ने किया।