आचार्य विनोबा भावे के विचार युवा पीढ़ी तक पहुंचाने की जरूरत- सुश्री लेले

  
Last Updated:  December 28, 2019 " 01:02 pm"

इन्दौर : शहर की 30 प्रमुख धार्मिक–सामाजिक संस्थाओं द्वारा वैशाली नगर के माधव विद्यापीठ में संयुक्त रूप से आयोजित राष्ट्र चेतना व्याख्यानमाला के तहत पहले दिन मुंबई की प्रसिद्ध लेखिका, प्रखर वक्ता, और सूत्र संचालिका धनश्री लेले ने अपने प्रभावी संबोधन में राष्ट्रसंत और सुप्रसिद्ध ग्रंथ गीताई के रचनाकार आचार्य विनोबा भावे के जीवन के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। विदुषी वक्ता ने विनोबा के राजकीय कर्तृत्व की बजाए सामाजिक परिवर्तन के लिए किए गए उनके कार्यों की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि विनोबा के विचार चिरंतन यानी हमेशा प्रासंगिक रहने वाले, सार्वभौम यानी यूनिवर्सल और सर्वसामान्य के लिए हैं। उन्होंने कहा कि आचार्य विनोबा भावे के विराट व्यक्तित्व का राजकीय पक्ष एक बड़ा हिस्सा है,लेकिन उनका मूल्यांकन राजनीति से ऊपर उठकर होना चाहिए। धनश्री लेले ने दु:ख व्यक्त किया कि विनोबा भावे को वैसी मान्यता नहीं मिली जिसके वे हकदार थे। उन्होंने बताया कि विनोबा पर उनकी मां का गहरा प्रभाव था। उन्होंने विश्व कल्याण का मार्ग आत्म कल्याण के जरिए आएगा इस विचार सौंदर्य के साथ अपना जीवन जिया है। विनोबा प्रत्येक मानव मन को स्पर्श करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि विनोबा ने 1940, 1945 और 47 में जो विचार व्यक्त किए वे आज भी प्रासंगिक हैं। हमारी युवा पीढ़ी को उन्हें बताने की जरूरत है। विदुषी वक्ता ने बताया कि विनोबा पर उनकी अनपढ़ लेकिन अत्यंत धार्मिक मां का गहरा प्रभाव था। उन्होंने अपने ग्रंथ को गीताई कहा यानी गीता का जो दर्शन उन्होंने अपनी मां के व्यवहार से सीखा उसे ग्रंथ में पिरो कर गीताई के नाम से लिखा। धनश्री लेले ने कहा कि उनकी मां की सरलता, सहजता के साथ ही उनके संस्कार भी अद्भुत थे। विदुषी वक्ता ने एक उदाहरण दिया, उन्होंने कहा कि जब विनोबा ने निश्चय किया कि वे ब्रह्मचारी रहेंगे तो उनकी मां ने सहजता से स्वीकृति दी। यह अपने आप में विलक्षणकारी घटना थी क्योंकि सामान्यतः प्रत्येक माता-पिता अपनी संतान को यथा समय विवाहित देखना चाहते हैं। कोई भी नहीं चाहता कि उसकी संतान ब्रह्मचारी बने। विनोबा की मां का तर्क था कि विनू विवाह करेगा तो 7 पीढ़ियों का उद्धार होगा, लेकिन यदि वह ब्रह्मचारी रहा तो 14 पीढ़ियां संस्कारित होंगी। धनश्री लेले के अनुसार विनोबा संस्कृति का मर्म समझते थे, इसीलिए उनका मानना था कि संस्कृति टिकेगी तो देश टिकेगा और दुनिया बदलेगी। उन्होंने श्रीमद भगवत गीता के गूढ़ तत्वों को अत्यंत सरलता से समझाया है। जैसे संत ज्ञानेश्वर ने अपने अजर-अमर ग्रंथ ज्ञानेश्वरी के माध्यम से गीता सार को सरलता से समझाया है। वैसे ही आचार्य विनोबा भावे की गीताई ने अत्यंत सरल भाषा में गीता समझाई है।गांधीवादी नेता आचार्य विनोबा भावे का यह 125वां जन्म शताब्दी वर्ष भी है, इस कारण धनश्री लेले के इस अत्यंत प्रभावी उद्बोधन का महत्व और भी बढ़ गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्य अतिथि अण्णा महाराज ने तीन दिवसीय राष्ट्र चेतना व्याख्यानमाला का शुभारंभ किया।
व्याख्यानमाला के संयोजक सुनील धर्माधिकारी, प्रशांत बडवे और मोहन
रेडगांवकर ने बताया कि तीन दिनों के कार्यक्रम को इन्दौर शहर के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता स्व.वसंत बोचरे ,स्व. प्रदीप कुळकर्णी और स्व.चन्द्रशेखर येवतीकर की स्मृति को समर्पित किया जा रहा है। व्याख्यान को सुनने के लिए इंदौर के सभी
क्षेत्र के श्रोता बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम के बाद विनोबा पर हुए व्याख्यान पर आधारित क्विज भी आयोजित की गई। जिसमें बड़ी संख्या में युवाओं ने हिस्सा लिया। इसी दौरान युवाओं को पुस्तिकाएं भी वितरित की गई। आभार प्रदर्शन प्रशांत बड़वे ने किया।

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