आर्थिक अपराधों को गंभीर नहीं मानना समझ से परे…!

  
Last Updated:  February 24, 2022 " 05:40 pm"

अभिलाष शुक्ला

अधिकतर नेता मंत्री अपने भाषणों में ये दावा करते नहीं थकते कि उनके शासन में एक भी दंगा नहीं हुआ,उनकी सरकार ने बहुत विकास किया।।ये किया, वो किया वगैरह- वगैरह।यह प्रशंसनीय बात है, परन्तु हम देख रहे हैं कि इस दौरान बैंक फ्रॉड के नये-नये कीर्तिमान स्थापित होते जा रहे हैं। अभी सबसे ताजा बैंक फ्रॉड सामने आया है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह भारत के इतिहास का सबसे बड़ा फ्रॉड है।
गुजरात की एक कंपनी एबीजी शिपयार्ड ने 28 सरकारी तथा गैरसरकारी बैंकों के साथ ₹ 22,847/- करोड़ का फ्रॉड किया है। धोखाधड़ी करने वाले अपराधी अभी देश के बाहर नहीं गये हैं, यहीं हैं। इससे पहले भी बैंकों को तहस-नहस करने वाले अनेक अपराधी देश छोड़कर भाग गये थे। इस बीच सरकार पर आरोप यह भी लगते रहे हैं कि बड़े उद्योगपतियों के हजारों करोड़ रुपये के ऋण सरकार द्वारा माफ किये जा चुके हैं।

आर्थिक अपराधों को गंभीर नहीं मानना समझ से परे।

एक बात समझ से परे है कि बड़े से बड़े आर्थिक अपराधों को सरकार की दृष्टि में उतना गंभीर अपराध नहीं माना जाता और न सत्ता पक्ष का कोई नेता अपने भाषणों में इसका उल्लेख ही करता है। हद से हद यह बता दिया जाता है कि ये फ्रॉड पिछली सरकार के समय हुए थे। हमें इस जानकारी से क्या लेना- देना है? हमें तो इस बात का इंतजार है कि सरकार पूरी मुस्तैदी से यह घोषणा करे कि अब आगे से कोई बड़ा फ्रॉड नहीं होगा और यदि कोई ऐसी घटना होती है तो अपराधी सीखचों के पीछे होंगे। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि लगभग सभी आर्थिक अपराधी एक ही प्रदेश के हैं और इसी सरकार के कार्यकाल में देश से बाहर भागकर गए हैं।
उक्त संदर्भित नवीनतम फ्रॉड की रिपोर्ट एसबीआई द्वारा वर्ष 2019 में सीबीआई को गई थी, जिसे उन्होंने अनसुना कर दिया।

आर्थिक अपराधों को लेकर भी बनें कठोर कानून।

अन्य अपराधों के लिए तो देशद्रोह जैसे कानून बनाए गए हैं परन्तु गंभीर आर्थिक अपराधियों के बारे में पुराने कानूनों से ही काम चलाया जा रहा है, आखिर क्यों? ये सब आम जनता का पैसा है जिसे निर्लज्जता पूर्वक लगातार लूटा जा रहा है। यदि इसमें पिछली सरकार/सरकारों की संलिप्तता है तो उसके जिम्मेदार लोगों को सीखचों के पीछे होना चाहिये या अभी के लोग जिम्मेदार हैं तो उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। आर्थिक अपराधों को लेकर सरकार की उदासीनता समझ से परे है। इससे बैंकें क्रमशः कमजोर होती चली जा रही हैं और फिर इनके बंद होने की नौबत आने वाली है। इससे आम जनता का बैंकों से भरोसा ही उठ जायेगा। हमारी यह जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि इसके लिए नेहरू से लेकर अभी तक कौन-कौन जिम्मेदार है। जिस तरह सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हमारे देश को अँग्रेजों ने लूटा था, यह काम भी कमोबेश वैसा ही है क्योंकि लोग देश का धन लूटकर विदेश भागते जा रहे हैं,यह एक गंभीर विषय है और इस पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए।।

(लेखक अभिलाष शुक्ला,इंदौर के
वरिष्ठ पत्रकार हैं।) 9826611505

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