इंदौर : वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस याने कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक नवीन तकनीक है जो हेल्थकेयर के क्षेत्र में नई उम्मीदें लेकर आई है। कई एआई एप्लीकेशन इस क्षेत्र में लॉन्च हुई है।बीमारियों का पता लगाने और उनके इलाज में एआई की बड़ी भूमिका है। कोविड काल में टेली मेडिसिन के रूप में इसका खासा उपयोग हुआ है। बावजूद इसके, एआई इंसानी दिमाग और मानवीय संवेदनाओं का स्थान नहीं ले सकता।
ये कहना है दिल्ली के डॉ. रवि गौर का, वे एमजीएम एलुमनी एसोसिएशन द्वारा आईओजीएस के सहयोग से ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, होप ऑर हाइप’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में बोल रहे थे।व्याख्यान का आयोजन सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के सभागार में किया गया था।
गंभीर बीमारियों के इलाज में एआई का अहम रोल।
डॉ. रवि गौर ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इतिहास बहुत पुराना है। 1651में इसका प्रदुर्भाव हुआ। 1920 में रोबोट, फिर मेट्रोपॉलिक, चेस, वोबोट, पेट डॉग, किस्मत रोबोट से होकर आज पर्सनल मेडिसिन तक इसका दायरा बढ़ गया है। डायबिटीज, हार्ट, कैंसर, न्यूरो और संक्रमण संबंधी बीमारियों के कारण, जांच, रोकथाम और उपचार में एआई का उपयोग हो रहा है। रोबोटिक सर्जरी में भी एआई की बड़ी भूमिका है। लाइफ स्टाइल को ठीक करने और भविष्य के दुष्प्रभावों से सचेत करने में भी एआई का अहम योगदान है।
मानवीय संवेदनाओं का स्थान नहीं ले सकता एआई।
डॉ. गौर ने कहा कि प्रिवेंटिव केयर, जेनेटिक्स के आगमन के बाद भी व्यक्तिगत परीक्षण, संप्रेक्षण, पेशेंट से व्यक्तिगत वार्तालाप आज भी पहले सोपान पर है। मशीनें कभी भी मानव के दिमाग और मानवीय संवेदनाओं का स्थान नही ले सकती।
कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में ‘चिकित्सकीय संचार की शक्ति’ विषय पर डॉ पूनम भार्गव ने अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित ने की।स्वागत भाषण डॉ. शेखर राव ने दिया। विषय प्रवर्तन डॉ. विनीता कोठारी और डॉ.भारत रावत ने किया। संचालन डॉ. संजय लोंढे ने किया।
डॉ. अनुरूप दत्ता, डॉ. सुनीता वर्मा, डॉ.एम गुजराल, डॉ.एस नैय्यर, डॉ.रायसिंघानी, डॉ.राकेश गुप्ता, अर्पित कोठरी सहित कई चिकित्सक, नर्सिंग स्टॉफ, मेडिकल के छात्र और अन्य प्रबुद्धजन कार्यक्रम में उपस्थित रहे।