इंदौर कीर्ति राणा । अपने शहर के पुरातन वैभव और संस्कृति को रंग और रेखा के जरिए सहेजने का काम पूरे देश में सिर्फ उज्जैन में हो रहा है।इस तरह का काम इंदौर के आर्टिस्ट भी शुरु कर सकते हैं।उज्जैन में यह काम भी गैर सरकारी या यूं कहें कि शौकिया तौर पर दो साल पहले अक्षय आमेरिया ने शुरु किया था। पहले वह अकेले थे, अब यह रविवारीय आंदोलन सा बन गया है। आठ दस आर्टिस्ट इकट्ठे होते हैं और सुबह दो-चार घंटे किसी घाट, गली, पौराणिक कथाओं से जुड़े मंदिर-गुफा आदि का लाइव रेखांकन करते देखे जा सकते हैं।
विजुअल आर्टिस्ट के बतौर देश में पहचाने जाने वाले अक्षय आमेरिया बताते हैं डिजिटल माध्यम ने आर्ट के अधिकांश क्षेत्रों में काम आसान कर दिया है। मैंने सोचा उसी पुरानी पेन, पेंसिल वाले ड्राइंग, लाईन स्कैच वाले जमाने में लौटा जाए।ये पारंपरिक माध्यम में हाथ आजमाना वैसे भी अब चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।हर रविवार सुबह स्कैच बुक, पेंसिल, लाल-नीली हरि-काली स्याही वाले पेन लेकर किसी भी घाट, पुरानी गली में निकल जाते और उस जगह का रेखांकन करने लगते हैं।शुरुआत में लोगों को लगा कि स्मार्ट सिटी के तहत कोई सर्वे का काम चल रहा है शायद।
विदेशों में तो अर्बन स्कैचर्स के ग्रुप इस तरह के काम करते रहते हैं। मेले-ठेले में भी स्कैच बनाने वाले कलाकार मिल ही जाते हैं लेकिन किसी शहर की पहचान बन चुके स्थानों के इस तरह स्कैच बनाना-यह अनूठा काम सिर्फ उज्जैन में ही चल रहा है। पहले अकेले अक्षय कर रहे थे।अब उनके साथ नॉन आर्टिस्ट भी जुड़ गए हैं। इसमें हॉउसिंग बोर्ड से रिटायर्ड सुभाष कसेरा, प्रोफेशनल टैक्स जानकार योगेश पोरवाल, होम्योपैथ चिकित्सक डॉ रवि आर्य हैं तो उज्जैन विकास प्राधिकरण के रिटायर्ड इंजीनियर मनोज भटनागर, फाईन आर्ट स्टूडेंट नितेश पांचाल के साथ ही इंदौर फाईन आर्ट कॉलेज से जुड़े राजा खत्री भी हैं जो हर रविवार स्कैचिंग सेशन के लिए ऑन लोकेशन ड्राइंग के लिए रविवार की सुबह उज्जैन पहुंच जाते हैं।इस ग्रुप के साथ जुड़े आचार्य शैलेंद्र पाराशर के जिम्मे नोट बनाने का काम है। अक्षय जिन स्थानों को स्कैच बुक में उतारते हैं पाराशरजी उन स्थानों का ऐतिहासिक-पौराणिक महत्व लिखते जाते हैं। इस तरह स्मार्ट होने के लिए कदमताल कर रहे उज्जैन के इस प्राचीनतम वैभव के दस्तावेजी करण का काम गैरसरकारी और शौकिया तौर पर ये सारे आर्टिस्ट कर रहे हैं, शहर हित के इस महत्वपूर्ण काम से जिला प्रशासन भी फिलहाल तो अनभिज्ञ ही है।
ऑनस्पॉट स्कैच इतना आसान नहीं
विजुअल आर्टिस्ट अक्षय आमेरिया ने चर्चा में माना फोटो को देखकर स्कैच बनाना या स्टूडियो में काम करना आसान है लेकिन ऑन स्पॉट करना चुनौतीपूर्ण होता है। धूप आ रही है, हवा-धूल उड़ रही है, बैठने की व्यवस्थित जगह तक नहीं मिल पाती।कई बार तो लोग झुक झुक कर देखते रहते हैं क्या बना रहे हैं। पीपलीनाका पर रेखांकन देख रहे आटो रिक्शा वाले खुश हो गए तो चाय-नाश्ता करा दिया। सती गेट पर हमारा काम देख रहे एक सज्जन ने तुरंत समीक्षा कर दी कि वो खिड़की तो बंद है, मैंने कहा अभी खोल देते हैं।