उड़ीसा के गोटीपुआ, महाराष्ट्र की लावणी और गुजरात के सिद्धि धमाल ने मचाई धमाल

  
Last Updated:  May 14, 2023 " 01:09 pm"

शिल्प मेला में उमड़ रही खरीददारों की भीड़।

कार्यशाला में ट्राइबल ज्वेलरी बनाना सिखाया गया।

इंदौर : जैसे – जैसे दिन बीत रहे हैं, मालवा उत्सव में उत्सवी माहौल परवान चढ़ रहा है। शनिवार को तो लालबाग में चल रहे मालवा उत्सव में भारी भीड़ उमड़ी। लोकनृत्य की प्रस्तुतियों को देखने लोग लालयित नजर आए। उड़ीसा की प्रस्तुति गोटीपुआ ने तो दर्शकों को चकित कर दिया। इस नृत्य में शरीर को जिधर चाहों उधर मोडने और जैसा चाहें वैसा घुमाने की कलाकारों की कूवत लोगों को हैरत में डाल रही थी।ऐसा लगता था जैसे उनका शरीर बगैर हड्डियों का बना हो। सबसे खास बात यह थी कि खूबसूरत परिधान पहनकर नृत्य कर रहे ये सभी कलाकार लड़के थे। पखावज की ताल और लयबद्ध तराने पर उड़ीसा का यह प्रसिद्ध लोक नृत्य जिसमें 9 से अधिक लोक कलाकारों ने भिन्न-भिन्न प्रकार की आकृतियां और पिरामिड बनाएं।

लोक संस्कृति मंच के संयोजक एवं सांसद शंकर लालवानी ने बताया कि मालवा उत्सव में शनिवार को उड़ीसा का नृत्य विशेष तौर पर सराहा गया। जहां शिल्प बाजार में खासी रौनक दिखी, वहीं बीएसएफ द्वारा लगाई गई शस्त्रों की प्रदर्शनी और बीएसएफ बैंड की प्रस्तुति भी आकर्षण का केंद्र रही।

लोक संस्कृति मंच के पवन शर्मा, सतीश शर्मा एवं विशाल गिदवानी नी ने बताया कि कला कार्यशाला में इंदौर के विभिन्न क्षेत्रों से आए प्रतिभागी बच्चों को एकता मेहता के निर्देशन में शीतल ठाकुर द्वारा ट्रायबल ज्वेलरी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया वहीं रात्रि के समय स्काई वाच का भी आयोजन किया गया जिसमें दूरबीन के माध्यम से अंतरिक्ष के ग्रह ,सितारों, नक्षत्रों को निहारा गया।

गुजरात के सिद्धि धमाल ने बटोरी तालियां।

लोक संस्कृति मंच के रितेश पाटनी एवं रितेश पिपलिया ने बताया कि मालवा उत्सव के मंच पर अफ्रीकन आदिवासी समूह जो कि केन्या से 750 वर्ष पूर्व भारत आकर गुजरात में बस गए थे, ऐसे भरूच जिले से आए लोक कलाकारों द्वारा सिद्धि धमाल नृत्य प्रस्तुत किया गया जिसमें अफ्रीकन आदिवासी वेशभूषा में ढोल ,थपकी आदि का उपयोग कर अफ्रीकन भाषा के गीत पर खूबसूरत नृत्य प्रस्तुत किया गया जिसमें हवा में उछाल कर सिर से नारियल फोड़ने की कला का भी प्रदर्शन लोक कलाकारों ने किया और दर्शकों की तालियां बटोरी।

महाराष्ट्र की लावणी ने जमाया रंग।

लावणी महाराष्ट्र का एक पारंपरिक लोकनृत्य है शनिवार को लावणी मे दर्शकों का अभिवादन वंदन मुजरा करके किया गया। उसके बाद बैठकीची लावणी, अदाकारी लावणी के साथ छक्कड लावणी भी प्रस्तुत की गई। जिसमें कलाकारों ने रंग बिरंगी नववारी साड़ी पहनकर चपलता के साथ पैरों में घुंघरू बांधकर ढोलक के ठेके पर नृत्य किया।

द्रुपद डांस अकादमी की प्रस्तुति ने किया सम्मोहित।

डॉ आशीष पिल्लई एवं साथियों द्वारा सुंदर परिधान पहनकर प्रस्तुत शिवा अलंकृत प्रस्तुति में भरतनाट्यम और मोहिनी अट्टम जैसी दक्षिण भारतीय शैली से प्रस्तुत नृत्य में महादेव शिव शंभू के नाद पर शिव की महिमा का बखान किया गया जो नृत्य के माध्यम से एक अद्भुत अनुभव रहा।

बोनालू, राम ढोल, सोराष्ट्र रास, मन्नत गरबा ,गणगौर एवं कृष्ण पर कत्थक भी हुआ प्रस्तुत।

छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल का रम ढोल जोकि ढोल, मजीरा, टीमकी ,शहनाई के माध्यम से प्रस्तुत हुआ । निमाड़ का गणगौर नृत्य “रुनझुन बाजे पैजनिया म्हारी रनु बाई की” पर हरे परिधानों में महिलाओं द्वारा सिर पर गणगौर रखकर किया गया जो निमाड़ की लोक कला का एक खूबसूरत नमूना था। गुजरात के मेहसाणा जिले से आए कलाकारों ने मन्नत गरबा प्रस्तुत किया जिसमें मन्नत पूर्ण होने पर माता की आराधना की जाती है। सिर पर दिए का मंडप एवं माता का मंडप लेकर गरबा किया गया जो कि 12 लड़कियों ने लाल रंग के परिधान चनिया चोली पहन कर प्रस्तुत किया। सौराष्ट्र का रास गरबा भी किया गया। मेघा शर्मा एवं साथियों द्वारा कृष्ण प्रिया रचना पर राधा कृष्ण की कहानी को इमोशन व काल्पनिकता के साथ कत्थक के माध्यम से “कस्तूरी तिलकं ललाट पटले” श्लोक के साथ प्रस्तुत किया गया।

संकल्प वर्मा एवं कपिल जैन ने बताया कि 14 मई को शिल्प मेला शाम 4:00 बजे प्रारंभ होगा वही कला कार्यशाला शाम 5:30 बजे से प्रारंभ होगी। सांस्कृतिक संध्या में नौरता, कोली, गुदुम बाजा ,ठाट्या, पंथी, सिद्धि धमाल ,गणगौर, काठी, रास गरबा ,माता का गरबा एवं स्थानीय प्रस्तुतियां होगी।
कार्यक्रम की व्यवस्थाओं हेतू कंचन गिदवानी ,मुद्रा शास्त्री, दिलीप सारड़ा, निवेश शर्मा, विकास केतले ,मुकेश पांडे, जुगल जोशी जुटे हुए हैं।

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