किस्से, कहानियों और संस्मरणों का रोचक सफर ‘आरसा’

  
Last Updated:  November 10, 2019 " 12:17 pm"

इंदौर : सूत्रधार की भूमिका आमतौर पर किसी भी कार्यक्रम को रोचक ढंग से आगे ले जाने की होती है। कार्यक्रम के मूड के हिसाब वह अपनी तैयारी करता है और एक से दूसरी कड़ियों को जोड़ता है। एक अच्छे सूत्रधार की खासियत ही ये होती है कि शब्दों की जुगलबन्दी में वह पारंगत होता है। ऐसा ही एक नाम है मंगला ताई खाडिलकर। मुम्बई की निवासी मंगला ताई केवल सूत्रधार भर नहीं है। वे अच्छी लेखिका और पत्रकार भी हैं। कई दिग्गज हस्तियों के कार्यक्रमों का सूत्र संचालन करने का मौका उन्हें मिला है। देश- विदेश में हजारों कार्यक्रमों का प्रभावी सूत्र संचालन कर उन्हें सफल बनाने में मंगलाजी की भूमिका रही है। दूरदर्शन और अन्य बड़े टीवी चैनलों पर वे बड़े- बड़े कलाकारों के इंटरव्यू कर चुकी हैं। मराठी, हिंदी और उर्दू सहित अन्य भाषाओं में साधिकार बोलनेवाली मंगला ताई को सुनना एक अलग ही आनंद की अनुभूति देता है। शब्दों से खेलना जैसे उनकी फितरत बन गई है। 37 वर्षों से अनवरत टीवी, स्टेज और अखबार की दुनिया में अपना परचम लहरा रहीं मंगला ताई खाडिलकर के पास किस्से, कहानियां, कथा, कविता, संस्मरण और शायरी का जैसे खजाना भरा पड़ा है। जब वे बोलना शुरू करती हैं तो शब्दों का झरना बह निकलता है और श्रोता उस शब्दरूपी झरने में डुबकियां लगाने लगते हैं।
सुदर्शन व्यक्तित्व की धनी मंगला ताई पहले भी इंदौर आ चुकी हैं। सानंद के एक कार्यक्रम में सूत्रधार की भूमिका में मंगला ताई ने जो छाप छोड़ी थी वो आज रसिकों के यादों में कैद है। बरसों बाद एक बार फिर संस्था ‘मुक्त संवाद’ द्वारा आयोजित 10 वे मराठी साहित्य सम्मेलन में उनका इंदौर आगमन हुआ। साहित्य सम्मेलन के दूसरे दिन शनिवार शाम प्रीतमलाल दुआ सभागार में उनकी प्रस्तुति थी। नियत समय पर वे सभागार पहुंची। एक प्यारी सी मुस्कान के साथ वे सबसे रूबरू हुई। हालांकि इस बार उनकी भूमिका सूत्रधार की नहीं थी। वे अपना एकल कार्यक्रम ‘आरसा’ लेकर आई थीं। इस कार्यक्रम के वे 13 सौ से ज्यादा शो कर चुकी हैं।
बहरहाल, औपचारिक स्वागत के बाद मंगला ताई ने माइक संभाला। सभी श्रोता बेसब्री से इस पल का इंतजार कर रहे थे। स्टैंड वाला माइक उपलब्ध न होने से उन्होंने बैठकर ही अपना कार्यक्रम पेश करने का निर्णय लिया। इसमें माइक से दूरी एक अड़चन बन गई। आखिर पड़ौस के हॉल में मुक्त संवाद द्वारा ही आयोजित दिवाली अंक प्रदर्शनी से दिवाली अंक लाकर माइक के नीचे जमाए गए। जैसे- तैसे माइक और मंगला ताई के बीच तालमेल बना और उन्होंने अपने कार्यक्रम की शुरुआत की। एक बार उन्होंने बोलना शुरू किया उसके बाद उनकी यादों की डायरी में दर्ज 37 साल का सफर जैसे ‘तेजस’ की स्पीड से दौड़ने लगा। लगभग सवा दो घंटे के इस अनवरत सफर में मंगला ताई ने श्रोताओं को कुर्सी से जकड़े रखा। स्वर कोकिला लता मंगेशकर और आशा भोसले के कार्यक्रमों में किया सूत्र संचालन, उसमें आई बाधाएं, दोनों महान गायिकाओं के स्वभाव, उनके साथ बिताए पल, बड़े पर्दे के शहंशाह अमिताभ बच्चन के साथ अपनी पहली मुलाकात, उनके व्यक्तित्व के विराट पहलू आदि का उल्लेख मंगला ताई ने इस खूबी के साथ किया कि ऐसा लगा मानो यह सबकुछ आंखों के सामने ही घटित हो रहा हो। वरिष्ठ गायिका सुमन कल्याणपुर पर लिखी किताब का उल्लेख करते हुए मंगला ताई ने उनके व्यक्तित्व की कमियों, खूबियों का रोचक ढंग से उल्लेख किया ही, एक खुलासा भी किया कि ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ जैसा अमर गीत पहले सुमन कल्याणपुर ने ही गाया था। उन्हीं की आवाज में उसे रिकॉर्ड भी किया गया था पर बाद में उसे लता जी से गवा लिया गया। इस बात से सुमन कल्याणपुर को गहरा धक्का लगा था। मंगला ताई ने इसके अलावा गुलजार, पीएल देशपांडे, नरेंद्र दाभोलकर व अन्य दिग्गज हस्तियों के साथ अपनी मुलाकात के संस्मरणों को भी श्रोताओं के साथ साझा किया। करीब सवा दो घंटे बाद किस्से, कहानियों और संस्मरणों का ये सिलसिला थमा। उसके बाद भी श्रोताओं के चेहरे बता रहे थे कि उनकी सुनने की प्यास अभी अधूरी है।
प्रारम्भ में मंगला ताई खाडिलकर और अतिथि के बतौर मौजूद मिलिंद महाजन का आयोजकों की ओर से स्वागत कर स्मृति चिन्ह भेंट किये गए। आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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