इंदौर : विक्रम दुबे एंड एसोसिएशटस द्वारा वैचारिक महाकुम्भ राष्ट्र चिंतन का आयोजन स्थानीय अभय प्रशाल में किया गया। कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता थे प्रखर चिंतक, विचारक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ। खचाखच भरे हॉल में हजारों लोग कुलश्रेष्ठ को सुनने आए थे। इनमें शहर के प्रबुद्धजन, नेता, वकील, रिटायर्ड जज पत्रकार, कारोबारी सहित तमाम वर्गों के लोग शामिल थे। सांसद सुमित्रा महाजन, विधायक मालिनी गौड़ और अन्य नेता भी श्रोताओं में बैठे थे। लंबे इंतजार के बाद पुष्पेंद्रजी का आगमन हुआ। औपचारिक दीप प्रज्ज्वलन और स्वागत के बाद पहले कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष हुकुमचंद सांवला ने अपने विचार रखे। बाद में पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने माइक संभाला। लोग उन्हें सुनने के लिए बेसब्र हो रहे थे। कुलश्रेष्ठ बोले और खूब बोले। उनके प्रभावी भाषण के दौरान बार- बार तालियां बजती रहीं। तथ्यों और तर्कों के साथ करीब तीन घंटे तक धाराप्रवाह वे बोलते रहे। इतनी लंबी फ़िल्म देखने में भी लोग बोरियत महसूस करने लगते हैं पर ये कुलश्रेष्ठ की वॉकपटुता का ही कमाल था कि हजारों लोग अंत तक बैठकर उन्हें सुनते रहे।
कुंठा से बाहर निकले और अपने सनातनी होने पर गर्व करें।
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने पौराणिक संदर्भों, परंपराओं, देश का प्राचीन इतिहास और विभिन्न पुस्तकों से लिये तथ्यों के जरिए आजदी के पूर्व से लेकर वर्तमान परिदृश्य पर अपनी बात रखी। उनका कहना था कि सनातनी हिंदुओं के मन झूठे इतिहास को परोसकर इतनी कुंठा भर दी गई है कि वे जातियों में बांटकर अपना अस्तित्व देखने लगे। कुलश्रेष्ठ ने कहा कि 90 करोड़ सनातनी कुंठा से बाहर निकले और अपने प्राचीन गौरवमयी इतिहास, महापुरुषों, आस्था, परंपराओं और सरोकारों पर गर्व करें। अपनी जातिगत पहचान को केवल घर तक सीमित रखें। घर के बाहर वे केवल सनातनी हिन्दू हैं, इसका ध्यान रखें।
देश और राष्ट्र में फर्क होता है।
कुलश्रेष्ठ का कहना था कि देश और राष्ट्र में फर्क होता है। देश सरकारें चलाती हैं। उनका अपना सिस्टम होता है। पर राष्ट्र समाज चलाता है। देश खंडित हो सकता है पर राष्ट्र नहीं। यही कारण है कि कभी भारत राष्ट्र का हिस्सा रहे पाक, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया जैसे देशों में आज भी सनातनी संस्कृति, आस्था और परंपराओं की छाप मिल जाती है। राष्ट्र निर्माण में आस्था, परंपरा और सामाजिक सरोकारों का अहम योगदान होता है।
अपनी ताकत को पहचाने सनातनी।
पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने आह्वान किया कि सनातनी हिन्दू समाज अपनी ताकत को पहचाने। एकजुटता में ही शक्ति निहित होती है। समाज की सामूहिक शक्ति सत्ता को मजबूर करती है कि वह जनता की चौखट पर जाए।
2014 में सत्ता परिवर्तन सोच में आए बदलाव का परिणाम।
पुष्पेंद्रजी ने कहा कि 2014 में हुआ सत्ता परिवर्तन महज राजनीतिक बदलाव नहीं था बल्कि यह सामाजिक बदलाव था। यह लोगों की सोच में आए परिवर्तन की बानगी थी। यह सही मायनों में 70 साल में बनी पहली भारतीय सरकार थी। रही सही कसर सनातनी हिंदुओं की एकजुटता ने 2019 में पूरी कर दी जब प्रचंड बहुमत के साथ मोदी- शाह को दुबारा सत्ता में बिठा दिया। यही कारण है कि राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया। कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हट गई।
बच्चों को अपने प्राचीन वैभव से अवगत कराएं।
कुलश्रेष्ठ ने कहा कि हमने अपने बच्चों को अपने प्राचीन वैभव, ज्ञान, आस्था, परंपरा से कभी अवगत ही नहीं कराया, इसी के चलते वे उसी रास्ते पर चलने लगे जो उन्हें मैकाले की शिक्षा पद्धति पढ़ाती है। कुलश्रेष्ठ ने गुरुकुल पद्धति की अहमियत से भी लोगों को अवगत कराया।
राष्ट्र को चाणक्य की जरूरत।
प्रखर विचारक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने देश के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि राष्ट्र को मजबूत और सर्व शक्तिमान बनाने के लिए एक नहीं कई चाणक्य की जरूरत है, जो चंद्रगुप्त जैसे कई शिष्य तैयार कर सकें।