कोरोना ग्रस्त शहर के साथ कैंसर से जूझ रही पत्नी की भी चिंता करते रहे शंकर लालवानी

  
Last Updated:  July 14, 2021 " 05:18 pm"

🔺कीर्ति राणा इंदौर।🔺

ऊनींदी आंखें, बिखरे बाल, उदास चेहरा और सूख चुके आंसुओं की कहानी कहती आंखें, 7 जुलाई के बाद से आज भी सांसद शंकर लालवानी की हालत ऐसी ही है। उनके लिए अपना दुख सबसे बड़ा है लेकिन इंदौर के लाखों लोग उन्हें जब अपने दुख-सुख का साथी मानते हों तो सुबह निवास पर और दोपहर 12 बजे तक ऑफिस में लोगों की परेशानी सुनना, कलेक्टर-एसपी आदि को उनके लिए फोन लगाना, किसी के बीमार बच्चे को बेहतर उपचार के लिए डॉक्टर से कहना, किसी की स्कूली फीस का मसला निपटाना उनकी रोजमर्रा की लाइफ हो गई है।अपनी फरियाद सुनाने, हाथों में आवेदन लेकर आने वालों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पांच दिन पहले उनकी पत्नी अमिता का निधन हो चुका है।हां सांसद के नजदीक जाते हुए इन फरियादियों की बॉडी लैंग्वेज में सकुचाने, धीमे बोलने जैसा क्षणिक बदलाव जरूर आ जाता है।
कौन यकीन करेगा कि कोरोना के कहर वाले इन दो सालों में सांसद लालवानी एक साथ दो मोर्चों पर जूझ रहे थे-शहर को कोरोना से राहत दिलाने के इंतजाम करवाना और रात सीएचएल अस्पताल के आईसीयू रूम में दाखिल पत्नी की देखरेख में सोते-जागते रात गुजारना।पंद्रह साल पहले कैंसर की शिकार हुईं अमिता की बीते साल मार्च से हालत इतनी बिगड़ गई थी कि बोल पाना संभव ही नहीं था लिहाजा दोनों इशारों में ही बात कर लेते या सांसद लिख कर बता देते कल मीटिंग में भोपाल जाना है, शाम तक आ जाऊंगा।
प्रधानमंत्री मोदी से लेकर अमित शाह, ओम बिड़ला सहित अन्य मंत्री, सांसद तो फोन पर शोक व्यक्त कर ही चुके हैं।मनीषपुरी स्थित निवास और सरकारी बंगले पर संवेदना व्यक्त करने वाले स्थानीय-बाहरी लोगों, जनप्रतिनिधियों का तांता लगा रहता है।हर कोई जानना चाहता है कि ये अचानक कैसे हो गया, और जब पति शंकर लालवानी बताना शुरू करते हैं तो रह रह कर अपने आंसू पोंछना भी उनकी मजबूरी हो जाती है। सुनाते-सुनाते वो कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर राकेश तरण, क्रिटिकल केस एक्सपर्ट डॉ संकेत धानुका, डॉ रवि जोशी सहित उनकी टीम का बार बार धन्यवाद करने के साथ ही लोगों को बताते हुए फिर भावुक हो जाते हैं। 36 साल का साथ रहा (1985 में हुई थी शादी), हमने तो घर में भी स्थायी रूप से आईसीयू वार्ड तैयार कर रखा था, वो बेड पर रहती तो भी मुझे हिम्मत रहती, मेरी मीत तो अपने मीत को अकेला छोड़ गई..!
पहले ब्रेस्ट कैंसर हुआ (1985 में), ग्रेटर कैलाश में डॉ दिग्पाल धारकर ने ऑपरेट किया, पांच साल दवाई लेती रही, लगा कि अब सब ठीक हो गया है।दस साल बाद लंग्ज और पसली के बीच दर्द बढ़ने लगा, सीएचएल में तमाम परीक्षण हुए, रिपोर्ट आई कि इन दोनों जगह कैंसर पनप चुका है।कीमो थैरेपी और दवाई भी चलती रही। इस बीच महिला मोर्चे से लेकर मेरी राजनीतिक गतिविधियों में भी भागीदारी करती रहीं।पिछले साल सितंबर में जांच में पता चला अब ब्रेन में कैंसर के लक्षण हैं।डॉक्टरों ने बॉंबे में टाटा मेमोरियल या कोकिलाबेन में दिखाने की सलाह दी, फ्लाइट बंद थीं, कार से ले गए।टाटा हॉस्पिटल में जांच में पता चला ब्रेन के साथ लंग्ज पर भी असर है।परामर्श यह भी था कि ब्रेन की सर्जरी करा लें लेकिन जान भी जा सकती है इससे भी आगाह कर दिया डॉक्टरों ने।6 डॉक्टर रेडिएशन/कीमो तो 4 सर्जरी के पक्ष में थे, अंतत: अक्टूबर से दिसंबर तक कीमो ही करना पड़ी।अब नई प्राब्लम किडनी में यूरीन जमा होने से पस पड़ गया,ऑपरेशन कर पस निकाला किंतु बाद में पूरे शरीर में फैल गया।
अब डॉक्टरों की टीम के सामने चुनौती यह थी कि लगातार कीमो से शरीर बेहद कमजोर हो चुका था, विदेशों के डॉक्टर्स से सलाह और महंगी दवाइयां भी बेअसर होने लगी थी।अंतत: जनवरी से मार्च तक कीमो आदि रोक कर डॉक्टरों ने शरीर को अंदरुनी रूप से कीमो आदि सहन करने लायक बनाने के प्रयास शुरु किए।मार्च से कीमो शुरु हुई, परीक्षण में लीवर और हार्ट के पास कैंसर की गठानें उभर आई थीं।

इधर मार्च से ही शहर में गहराते कोरोना की दूसरी लहर का खौफ और अस्पताल के आईसीयू रूम में दाखिल पत्नी।पहली लहर में बेहतर काम के लिए देश के सर्वश्रेष्ठ सांसद घोषित किए गए लालवानी के सामने धर्मसंकट यह भी कि पत्नी की तीमारदारी में अधिक वक्त दें और शहर में कोई परेशानी हो जाए तो किसी को भी कहने का मौका मिल सकता था सांसद शहर से ज्यादा पत्नी की बीमारी में व्यस्त हैं। लिहाजा सुबह से शाम तक शहर की चिंता और रात में आईसीयू के समीप डॉक्टर रूम को अस्थायी निवास बना रखा था।पत्नी से पर्ची पर लिख कर हालचाल पूछ लेते, मीटिंग आदि में जाने की जानकारी दे देते।इस दोहरी चुनौती का सामना कर रहे लालवानी से रोज संपर्क में रहने वाले कई लोगों को भी जानकारी नहीं थी कि अमिता लालवानी को लेकर शंकर किस स्थिति से गुजर रहे हैं।

मार्च से जुलाई के दौरान दो बार मिली बोनस लाइफ।

इधर उनकी पत्नी का मर्ज बढ़ता जा रहा था, एक तरफ के लंग्ज ने काम करना बंद कर दिया, फेफड़ों में जमा कफ निकालने की कोशिश में कफ से नली चोक हो जाने से उनका शरीर निर्जीव होते देख डॉक्टरों ने तुरंत गड़बड़ी को न पकड़ा होता तो तीस सेकंड में ही उनके प्राण पखेरु उड़ जाते।इसी तरह एक बार और उनके हार्ट की गति बेहद धीमी हो गई। घर नहाने आए शंकर उल्टे पैर अस्पताल दौड़े तब तक डॉक्टरों ने शॉक आदि की मदद से उन्हें नार्मल कर दिया था। लिक्विड फूड के लिए गले में नली तो पहले से ही लगी थी, 7 जुलाई को मौत के एक सप्ताह पहले से यूरीन बंद, किडनी डेमेज, डायलिसिस जारी, ब्लड में एसिड बढ़ने की समस्या के बाद बीपी डाउन, लीवर फेल, किडनी फेल, 7 जुलाई को तो डेथ हो गई…!

मीत का मीत गया, मीत अकेला रह गया।

हिंदी साहित्य में यमक अलंकार की अपनी अलग और चमत्कृत कर देने वाली प्रतिष्ठा है-जब एक ही शब्द का एकाधिक बार प्रयोग के बाद भी हर बार उसका अर्थ अलग हो। पति शंकर को अमिता मीत कह कर बुलाती थीं, शंकर भी उन्हें इसी नाम से पुकारते थे।इन दोनों के एक मात्र पुत्र का नाम भी मीत है।अब मीत बिना मां का हो गया है, सांसद शंकर की जो मीत थीं वो अनंत में समा चुकी हैं।

अब कैंसर मरीजों के लिए सुविधा जुटाएंगे।

सांसद लालवानी का कहना था मैं तो जनप्रतिनिधि, पहचान और पहुंच वाला होकर भी कैंसर पीड़ित पत्नी को नहीं बचा सका।कैंसर पीड़ित सामान्य मरीज और परिजनों पर क्या गुजरती होगी।मेरा प्रयास रहेगा कि कैंसर मरीजों के उपचार की जरूरी सुविधाएं, उपकरण आदि इंदौर में उपलब्ध करा सकूं, इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी से लेकर मुख्यमंत्री और सभी समाजों के दानदाताओं से भी मदद मांगूंगा।

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