गीता भवन में चल रहे अ.भा. गीता जयंती महोत्सव में हजारों भक्तों ने किया गीता का सामूहिक पाठ।
इंदौर : भारतीय संस्कृति ज्ञान के साथ विज्ञान सम्मत भी है। गीता जैसे दिव्य ग्रंथ मानव मात्र के लिए हर युग में मार्ग दर्शक हैं। मनुष्य को यदि आत्म निरीक्षण, आत्म कल्याण और आत्म मंथन करना है तो गीता का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि यह वह अदभुत और अनुपम सृजन है जो विज्ञान की कसौटी पर भी खरा उतरा है। तमोगुण की अधिकता से ही विनाश का मार्ग प्रशस्त होता है। वेदों और उपनिषदों का भी निचोड़ है-गीता। गीता मनुष्य को कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े अर्जुन की तरह हर संशय के मौके पर दिव्य दृष्टि प्रदान करती है। गीता के श्रवण, मनन, मंथन और चिंतन से मनुष्य अहंकार मुक्त हो सकता है।
ये दिव्य विचार जगदगुरु शंकराचार्य, पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने व्यक्त किए। वे गीता भवन में चल रहे 67वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव की महती धर्मसभा को संबोथित कर रहे थे।
शंकराचार्यजी के गीता भवन आगमन पर ट्रस्ट मंडल की ओर से वैदिक मंगलाचरण के बीच ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, कोषाध्यक्ष मनोहर बाहेती, ट्रस्ट मंडल के महेशचंद्र शास्त्री, प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, दिनेश मित्तल, हरीश माहेश्वरी, पवन सिंघानिया, राजेश गर्ग केटी, संजीव कोहली, विष्णु बिंदल ने पादुका पूजन किया।
गीता के 18 अध्यायों का सामूहिक पाठ।
इसके पूर्व सुबह मोक्षदा एकादशी के उपलक्ष्य में हजारों भक्तों ने गीता के 18 अध्यायों का जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज की अध्यक्षता में सामूहिक पाठ किया। बड़ी संख्या में भक्तों ने अपने सामर्थ्य के अनुसार दान का पुण्य लाभ भी उठाया। सामूहिक पाठ का समापन गीताजी की महाआरती के साथ हुआ। जोधपुर से आए रामस्नेही संत स्वामी हरिराम शास्त्री ने अपने उदबोधन में गीता की महत्ता बताते हुए कहा कि देश में एकमात्र गीता भवन ही ऐसा धर्म क्षेत्र है, जहां पिछले 66 वर्षों से लगातार गीता के 18 अध्यायों का सामूहिक पाठ देश के सभी प्रमुख संत,विद्वान और भक्त एक जाजम पर बैठकर करते आ रहे हैं।
सत्संग सत्र में गोंडा से आए पं. प्रहलाद मिश्र, हरिद्वार से आए डॉ. स्वामी श्रवण मुनि उदासीन, पानीपत से आई साध्वी ब्रह्मज्योति सरस्वती, गोवर्धन नाथ मंदिर इंदौर के गोस्वामी दिव्येश कुमार, नैमिषारण्य से आए स्वामी पुरुषोत्तमानंद सरस्वती, गोधरा से आई साध्वी परमानंदा सरस्वती, अयोध्या से आई युग तुलसी रामकिंकर महाराज की परम शिष्या दीदी मां मंदाकिनी के प्रवचनों के बाद जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने अपने ओजस्वी उदबोधन में गीता और अन्य धर्मग्रंथों की महत्ता का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। अध्यक्षीय उदबोधन जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने दिया।