गीता शाश्वत चिन्तन का अनमोल ग्रन्थ है : जगद्गुरू स्वामी राम दयाल महाराज

  
Last Updated:  December 9, 2024 " 12:08 am"

गीता भवन में 67वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव का शुभारंभ।

ट्रस्ट को दान देने वाले भामाशाहों का किया गया सम्मान।

इंदौर : गीता के संदेश कभी पुराने नहीं होते। यह भगवान के श्रीमुख से निकली ऐसी निर्मल गंगा है, जो अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान के प्रकाश से समूचे मानव जीवन को आलोकित करती है। ज्ञान के समान कोई दूसरी मूल्यवान और पवित्र संपत्ति नहीं हो सकती। ज्ञान श्रद्धा से ही मिल सकता है। गीता शाश्वत चिंतन का अनमोल ग्रंथ है। यह भारत भूमि की पावन धरोहर है। जीवन के सारे संशयों के समाधान कहीं ओर मिलें या न मिलें, गीता में अवश्य मिलेंगे। चौतरफा अंधकार से घिरे मनुष्य के लिए गीता किसी प्रकाश पुंज की तरह मार्गदर्शक की भूमिका निभाती है। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का अदभुत समन्वय गीता में है। संसार समस्या है, और गीता समाधान।

ये दिव्य विचार अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य, जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने व्यक्त किए। वे रविवार को गीता भवन में 67वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव का शुभारंभ करते हुए बोल रहे थे।

इनका किया गया सम्मान :-

इस अवसर पर गीता भवन ट्रस्ट को पीडित मानवता की सेवा के लिए खुले मन से आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले समाजसेवी विनोद अग्रवाल, टीकमचंद गर्ग, राजेश गर्ग, प्रेमचंद गोयल, मानकुंवरदेवी भराणी को शाल-श्रीफल एवं कुरूक्षेत्र के मैदान में गीता का संदेश देते हुए भगवान श्रीकृष्ण का रजत मंडित विग्रह भेंट कर सम्मानित किया गया।

जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने इस अवसर पर आगे कहा कि अहिल्या की धरती पर दिव्य और अलौकिक सेवा के प्रकल्प निरंतर चलते रहते हैं। बाबा बालमुकुंद ने गीता भवन को अपनी साधना और तपस्या से स्थापित कर मानवता की सेवा में समर्पित किया। यह अभिनंदनीय प्रसंग है कि इन भामाशाहों ने भी अपने धन को परमार्थ और सदभाव के कार्यों में लगाने के लिए गीता भवन को दान किया है। पीड़ित मानवता की सेवा से बड़ा और कोई पुण्य नहीं हो सकता। हाथों की शोभा कंचन के गहने और सोने की घड़ी पहन लेने से नहीं होती, बल्कि सेवा और धर्म के रास्ते पर चलकर पीड़ित आंखों के आंसू पोंछने से होती है। आज इन भामाशाहों ने यह दान देकर अपने धन को भी सार्थक बनाया है।

प्रारंभ में आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री एवं अन्य विद्वानों द्वारा वैदिक मंगलाचरण व शंख ध्वानि के बीच देशभर से आए प्रमुख संतों के सान्निध्य में दीप प्रज्ज्वलन कर अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने 67वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव का शुभारंभ किया। अतिथि संतों का स्वागत गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, कोषाध्यक्ष मनोहर बाहेती, न्यासी मंडल के महेशचंद्र शास्त्री, दिनेश मित्तल, हरीश माहेश्वरी, पवन सिंघानिया, संजीव कोहली, सत्संग समिति के श्याम मोमबत्ती, प्रदीप अग्रवाल, रामकिशोर राठी, रामस्वरूप धूत, अरविंद नागपाल, त्रिलोकनाथ कपूर, सुभाष झंवर, चंदू गुप्ता, अर्चना ऐरन आदि ने किया। कार्यक्रम में इंदौर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष पं. कृपाशंकर शुक्ला, मनीष सिंघल (दंगल टीवी), दिलीप देव, आनंद केड़िया, निर्मल रामरतन अग्रवाल सहित बड़ी संख्या में शहर के धार्मिक, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। स्वागत उदबोधन राम ऐरन एवं रामविलास राठी ने दिए। गीता भवन अस्पताल समिति के सचिव दिनेश मित्तल ने अस्पताल की प्रगति एवं अन्य सेवा प्रकल्पों का विवरण दिया। उन्होंने कहा कि समाजसेवी विनोद अग्रवाल, टीकमचंद गर्ग, राजेश गर्ग एवं प्रेमचंद गोयल ने अस्पताल के लिए कुल मिलाकर लगभग 20 से 25 करोड़ रुपए खर्च करने का संकल्प किया है। संचालन संजय पटेल ने किया और आभार मनोहर बाहेती ने माना। इस अवसर पर विभिन्न अग्रवाल संगठनों की ओर से सर्वश्री अरुण आष्टावाले, अजय आलूवाले, प्रमोद बिंदल,कैलाश नारायण बंसल, ब्रजकिशोर गोयल आदि ने भी सम्मानित बंधुओं का 51 किलो वजनी पुष्पमाला से स्वागत किया। क्षेत्र के पार्षद विजय लक्ष्मी पति अनिल गौहर का भी सम्मान किया गया।

सत्संग सत्र में प्रवचन।

शुभारंभ समारोह के बाद डाकोर से आए वेदांताचार्य स्वामी देवकीनंदनदास ने कहा कि गीता के प्रत्येक संदेश में हमारे जीवन को सार्थक बनाने की बातें कही गई है। जीवन की रोजमर्रा की हर छोटी-बड़ी समस्या का हल गीता में मौजूद है।

हरिद्वार से आए डॉ. स्वामी श्रवण मुनि ने कहा कि गीता में भगवान ने कहा है कि जगत के जितने भी जीव हैं वे मेरे अंश हैं। मिट्टी का ढेला आकाश में उछालने पर वह तुरंत पृथ्वी की ओर आ जाता है, विज्ञान का छात्र उसे गुरुत्वाकर्षण का परिणाम बताएगा, लेकिन अध्यात्म से जुड़े लोग कहेंगे कि मिट्टी का ढेला मिट्टी का ही अंश हैं इसलिए मिट्टी की ओर आया है। वर्षा की बूंद समुद्र से उठकर अंत में समुद्र में ही मिल जाती है।

आगरा से आए श्रीहरि योगी ने कहा कि गीता में अध्यात्म, योग, उपासना, ज्ञान और भक्ति का अदभुत समावेश है। मानव जीवन में धर्म और अध्यात्म, ज्ञान व परोपकार और भक्ति जैसे गुणों से ही व्यक्ति का विकास संभव है।आज देश में हिन्दू सनातन धर्म की रक्षा के लिए एक कल्याण कोष स्थापित किया जाना चाहिए। गीता हर युग में प्रासंगिक और सनातन ग्रंथ है।

वृंदावन से आए पं. बालशुक पुंडरिक कृष्ण ने कहा कि हम भी यदि भगवान कृष्ण को अर्जुन की तरह अपने रथ का सार्थी बना लें और अपने जीवन की बागडोर उनके हाथों में सौंप दें तो जीवन रूपी महाभारत के युद्ध में हमारी जीत भी पक्की हो जाएगी।

गोधरा से आई साध्वी परमानंदा सरस्वती ने कहा कि ज्ञान, भक्ति और कर्म का जैसा समन्वय गीता में देखने को मिलता है, वैसा कहीं और नहीं मिलता। गीता भारत भूमि का अदभुत और अनुपम ग्रंथ है। यह शाश्वत चिंतन का ऐसा शास्त्र है, जो मनुष्य को अभयता प्रदान करता है। सत्संग में उज्जैन से आए स्वामी वीतरागानंद महाराज ने भी अपने विचार रखे। मंच का संचालन किया वेदांचार्य स्वामी देवकीनंदन दास महाराज ने।

गीता जयंती महोत्सव में दूसरे दिन शाम 5.45 बजे तक चलने वाले सत्संग सत्र में डाकोर से आए स्वामी देवकीनंदनदास दोपहर 1 बजे से, 1.15 बजे से उज्जैन से आए स्वामी परमानंद महाराज, 1.45 बजे से भदोही से आए पं. सुरेश शरण महाराज, 2.45 बजे से नेमिषारण्य से आए स्वामी पुरुषोत्तमानंद सरस्वती, 3.15 बजे से अयोध्या से आए राम मंदिर न्यास को कोषाध्यक्ष राष्ट्रसंत स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज, 4.15 बजे से पं. विजयशंकर मेहता उज्जैन, 5.15 बजे से पं. बालशुक पुंडरिक महाराज के प्रवचनों के बाद जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज अध्यक्षीय उदबोधन देंगे।

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