गुरु- शिष्य परंपरा के प्रति जितना सम्मान इंदौर में है, अन्यत्र नहीं- पं. चौरसिया

  
Last Updated:  December 18, 2021 " 09:25 pm"

इंदौर : संगीत में खुदा बसता है, राम बसते हैं। ये कहना गलत है कि शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों में रुचि नहीं है। कलाकार की यह कसौटी है कि वह अपनी प्रस्तुति के जरिए श्रोताओं के दिलों को छुए। इंदौर में गुरु- शिष्य परंपरा के प्रति जितना सम्मान है, वह अन्यत्र नजर नहीं आता, इसीलिए इंदौर में स्वर वेणु गुरुकुल स्थापित करने का निर्णय लिया है।
ये विचार ख्यात बांसुरी वादक पद्मविभूषण पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया और प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका पद्मभूषण परवीन सुलताना ने व्यक्त किए। रविवार 19 दिसम्बर को लाभ मंडपम में आयोजित स्वरवेणु गुरुकुल के कार्यक्रम में भाग लेने इंदौर आए ये दोनों दिग्गज कलाकार शनिवार को प्रीतमलाल दुआ सभागृह में आयोजित प्रेस वार्ता के जरिए पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे।

स्वरवेणु गुरुकुल परम्परा को सहेजने का प्रयास।

पं. हरिप्रसाद चौरसिया ने कहा कि शास्त्रीय संगीत की परंपरा और विरासत को आगे बढाने के लिए ही उन्होंने स्वरवेणु गुरुकुल स्थापित करने की शुरुआत की है। इंदौर संस्कृति और परंपराओं को सहेजने वाला शहर है। यहां के लोग आर्थिक मदद में भी पीछे नहीं रहते, इसीलिए उन्होंने इंदौर से ही गुरुकुल के लिए इंदौर को चुना। उनका प्रयास है कि नई पीढ़ी तक हमारी सांस्कृतिक विरासत गुरु- शिष्य परम्परा के माध्यम से पहुंचे। देश का सबसे अच्छा गुरुकुल इंदौर में होगा यही मेरी कामना है।

स्कूली शिक्षा में भी हो गुरुकुल परंपरा।

एक सवाल के जवाब में पं. चौरसिया ने कहा कि गुरुकुल परंपरा सिर्फ संगीत में ही नहीं अन्य विधाओं और स्कूली शिक्षा का भी अंग होना चाहिए। घर मे ही बच्चों को ऐसे संस्कार मिले की उनमें संस्कृति और परंपरा के प्रति आदरभाव जागृत हो।

फिल्मी संगीत में नकल का बोलबाला।

पं. हरिप्रसाद जी ने कहा कि उन्होंने कई भाषाओं की फिल्मों में संगीत दिया है। अब समय बदल गया है। गीतों का स्तर गिर गया है। हम पश्चिम की नकल करने लगे हैं।

सरकारी व्यवस्था पर कसा तंज।

पण्डितजी ने सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और कलाकारों को प्रोत्साहन देने में सरकारों की भूमिका को लेकर तंज कसते हुए कहा कि मंत्रियों को पहले तानपुरा बजाना सीखना चाहिए, अर्थात उनमें संस्कृति और परंपरा की समझ विकसित करने की जरूरत है, ताकि वे हमारी सांस्कृतिक परंपरा और विरासत को आगे बढाने में रुचि ले सकें।

इंदौर में गुरु- शिष्य परंपरा के लिए बेहतर माहौल।

शास्त्रीय गायिका परवीन सुलताना का कहना था कि इंदौर में गुरु- शिष्य परंपरा और शास्त्रीय संगीत को सहेजने का जो माहौल नजर आता है, वह अन्यत्र नहीं है। ये हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम अपनी परंपरा और विरासत को संजोकर रखें।

श्रोताओं के दिलों को छूना कलाकार के लिए बड़ी चुनौती।

सुश्री सुल्ताना ने कहा कि शास्त्रीय संगीत के कलाकार के समक्ष ये चुनौती होती है कि वह जो भजन या बंदिश गया रहा है, उसके भाव को खुद महसूस करें और उसमें डूबकर गाए। तभी वह श्रोताओं के दिलों में उतर सकता है।

बच्चों को दिग्गज कलाकारों के बारे में बताएं।

पद्मभूषण परवीन सुल्ताना ने कहा हमें हमारे बच्चों को देश के दिग्गज कलाकारों के बारे में बताने, सुनाने की जरूरत है, जिन्होंने अच्छा कलाकार बनने की खातिर अपना सारा जीवन लगा दिया। लता मंगेशकर और पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया जैसे लोग सदियों में एक बार पैदा होते हैं। उनके बारे में बच्चों को बताया जाना चाहिए।

गायत्री देवी से प्रभावित रहीं।

परवीन सुलताना ने कहा की उन्हें सजने- संवरने का शौक रहा है। वे इस मामले में जयपुर की महारानी गायत्री देवी से खासी प्रभावित रहीं हैं। परवीन सुलताना ने कहा कि खूबसूरती वही अच्छी होती है, जो आबरू के साथ हो।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार संजय लुणावत ने की। प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत प्रवीण कुमार खारीवाल, पं. संतोष संत,नवनीत शुक्ला,अभिषेक गावड़े, संजीव गवते, कमल कस्तूरी,विजय पारिख,हर्षवर्धन लिखिते,गगन चतुर्वेदी ने किया। अतिथियों को क्रिस्टल की बांसूरी, स्मृति चिन्ह और स्मारिका भी भेंट की गई।

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