कांग्रेस व बीजेपी दोनों पर जैन समाज के नेताओं की अनदेखी करने का लगाया गया आरोप।
टिकट से वंचित किए जाने से नाराज समग्र जैन समाज बैठक कर तय करेगा रणनीति।
इंदौर : समग्र जैन समाज ने दोनों प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस पर टिकट वितरण में जैन समाज से जुड़े नेताओं को दरकिनार करने का आरोप लगाया है।इस मामले में जैन समाज आगामी दिनों में बैठक कर अपनी रणनीति तय करेगा।
ये बात समग्र जैन समाज के जिनेश्वर जैन, अशोक मेहता, राजेंद्र महाजन, हंसमुख गांधी, जितेंद्र चोपड़ा, सुविधि झवेरी और रितेश कटकानी ने प्रेस वार्ता के जरिए कही। उन्होंने कहा कि दोनों पार्टियों में जैन समाज के काबिल और उच्च शिक्षित नेता होते हुए भी उन्हें टिकट से वंचित रखा गया। यह पूरे जैन समाज के साथ अन्याय है।
इन नेताओं को दिए जाना थे टिकट :-
समग्र जैन समाज के पदाधिकारियों के मुताबिक जैन समाज विकास के लिए सरकार को टैक्स के जरिए संसाधन उपलब्ध कराने में सदैव अग्रणी रहा है। कांग्रेस में समाजसेवी अक्षय कांति बम और शिक्षाविद स्वप्निल कोठारी जैसे मिलनसार, उच्च शिक्षित और युवाओं में गहरी पैठ रखने वाले नेता टिकट के सशक्त दावेदार थे पर उन्हें नजर अंदाज कर अन्य नेताओं को टिकट दे दिए गए। इसी तरह बीजेपी ने भी दीपक जैन टीनू की योग्यता को दरकिनार कर उन्हें टिकट से वंचित रखा जबकि वे पूर्व में पार्षद रहने के साथ अपने वार्ड को आदर्श वार्ड का तमगा दिलाने में भी अग्रणी रहे थे। महापौर के चुनाव के वक्त भी उनके साथ अन्याय किया गया था। इस तरह दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस व बीजेपी ने जैन समाज को इंदौर जिले में प्रतिनिधित्व देने में कोताही बरती है।
10 लाख वोटों की ताकत रखता है जैन समाज।
जिनेश्वर जैन, सुविधि झवेरी और अन्य पदाधिकारियों ने दावा किया कि इंदौर जिले में जैन समाज के दो लाख मतदाता हैं। उनके औद्योगिक और व्यापारिक संस्थानों से संबद्ध मतदाता मिलाकर ये संख्या लगभग 10 लाख हो जाती है। ये मतदाता किसी भी क्षेत्र के परिणाम को निर्धारित करने की क्षमता रखते हैं। यह बात दोनों राजनीतिक दलों को नहीं भूलनी चाहिए।
टिकटों में बदलाव कर समाज को दें प्रतिनिधित्व।
समग्र जैन समाज ने कांग्रेस व बीजेपी नेतृत्व से आग्रह किया है कि वे अभी भी टिकटों में बदलाव कर जैन समाज को उचित प्रतिनिधित्व देने पर विचार करें। अन्यथा जैन समाज चुनावों को लेकर अपनी आगामी रणनीति तय करेगा। इसका खामियाजा दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों को भुगतना पड़ सकता है।