त्वरित प्रतिक्रिया देनें से बचें तो हो सकता है कई समस्याओं का निदान- डॉ. सुखदा

  
Last Updated:  January 26, 2020 " 11:02 am"

इंदौर : भागदौड़ भरी जिंदगी में हम धैर्य रखना भूल गए हैं। यहीं कारण है कि हम तत्काल किसी भी बात पर प्रतिक्रिया दे देते हैं। अगर हम थोड़ा सोच समझकर फिर प्रतिक्रिया दे तब ना केवल हम अपने क्रोध पर काबू पा सकते हैं बल्कि इससे कई समस्याओं का समाधान भी हो सकता है।
यह बात पुणे की ख्यात मनोविज्ञानी डॉ. सुखदा अभिराम ने जाल सभागार में आयोजित लक्ष्मीबाई केलकर मौसी जी स्मृति व्याख्यानमाला के प्रथम दिन कही। बड़े ही रोचक तरीके से उन्होंने अपनी बात रखी। विषय था मन रे तू काहे न धीर धरे। उन्होंने कहा कि हमें किन बातों पर प्रतिक्रिया कैसी देनी है यह बात समझ में आ गई तो न क्रोध होगा और ना ही आज के युग में हर घर में होने वाली बीमारियां जैसे बी.पी ,डायबिटिज आदि होंगी।

मां को बच्चें की बात पर प्रतिक्रिया देते समय ध्यान देना होगा।

डॉ.सुखदा अभिराम ने मां और बच्चे का उदाहरण देते हुए बताया कि बच्चा ट्यूशन जाता है पर वह झूठ बोलकर ट्यूशन की जगह कहीं और चला जाता है । यह बात मां को पता चल जाती है और जैसे ही बच्चा घर पर आता है तब मां क्या प्रतिक्रिया देगी ? अधिकांश माताएं बच्चे के घर आने पर उसे डाटेंगी और गुस्से से प्रतिक्रिया देंगी पर अगर थोड़ा रुककर और धैर्य के साथ बच्चे के साथ बात करेंगी तो हो सकता है कि आपको असल समस्या का पता चल सके।

शांत रहना सीखें।

एक अन्य उदाहरण में डॉ. सुखदा ने बताया कि अॉफिस में आपके जूनियर को आपने कुछ काम सौपा और वह काम समय पर नहीं हुआ। वह जूनियर फोन भी नहीं उठा रहा है। इधर डेडलाईन के पहले आपको वह काम करना ही है। ऐसे में आप जूनियर पर गुस्सा करते रहेंगे या फिर अपने लक्ष्य की ओर बढेंगे। आपको शांत रहकर पहले यह देखना है कि आप काम किस प्रकार से पूर्ण कर सकते हैं।

जमाना प्रतिस्पर्धा का है पर हर काम वैसा करे जरुरी नहीं।

डॉ. सुखदा ने कहा कि जमाना प्रतिस्पर्धा का है। इसका असर यह हो गया है कि हम हर बात को प्रतिस्पर्धा की तरह ही लेने लगे हैं। हमारी प्रतिक्रिया भी वैसी ही होने लगी है। जिंदगी में दस कामों में से 2 ही ऐसे होते हैं जिसमें प्रतिक्रिया प्रतिस्पर्धा के अनुरुप होती है पर हम सभी में वैसी ही प्रतिक्रिया देते हैं।

कम बोलो ज्यादा सुनों।

उन्होंने कहा कि हमें दो कान और एक ही मुंह इस कारण दिया है कि हम ज्यादा सुने और कम बोले। व्यक्ति जितना सुनने की आदत डालेगा उतना ही उस पर सकारात्मक असर पडेगा।

पुरानी और नई पीढी दोनों को बदलना होगा।

समय के अनुरुप हमें बदलाव को स्वीकार करना होगा। यह बदलाव युवा और बुजुर्ग दोनों को स्वीकार करना होगा। अगर आप विंडोज 10 को आज भी टाइप राइटर की तरह प्रयोग करते रहे तब आप पिछड़ जाएंगे। जो समय के साथ अपने आप में परिवर्तन करेगा वही आगे जाएगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता रागिनी शिराली ने की। मुख्य अतिथि थी रोमा हीरानी । कार्यक्रम की प्रस्तावना रेणुका पिंगले ने रखी। हर्षिता केसवानी और अंजली जोशी ने गीत की प्रस्तुति दी। स्वागत रक्षा माहेश्वरी,वैशाली वाईकर, इंदिरा पाटीदार ने किया। संचालन अनन्या मिश्रा ने किया।

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