अखंड परम धाम सेवा समिति के तत्वावधान में अरोड़वंशीय भवन पर ध्यान एवं योग शिविर का शुभारंभ ।
इंदौर : देह सब कुछ नहीं है। हम सबके अंदर ‘मैं’ मौजूद है। यह ‘मैं’ और ‘मेरा’ ही अहंकार का प्रमुख कारण है। जीव का स्वभाव शांति और मौज में रहने का है, लेकिन जरूरत से अधिक संग्रह की प्रवृत्ति के चलते हम दूसरों को दुख पहुंचाकर ज्यादा से ज्यादा धन संपत्ति के संग्रह में जुटे हुए हैं।यही हमारी अशांति की प्रमुख जड़ है। हम भूल रहे हैं कि दुनिया में किसी को शांति तब तक नहीं मिल सकेगी, जब तक हमारे कर्मों में सेवा का भाव नहीं आएगा।
श्री राम जन्मभूमि न्यास अयोध्या के न्यासी एवं युगपुरुष स्वामी परमानंद गिरि महाराज ने रविवार शाम अखंड परम धाम सेवा समिति के तत्वावधान में पंजाब अरोड़वंशीय भवन पर आयोजित सात दिवसीय 28वें ध्यान एवं योग शिविर का शुभारंभ करते हुए ये प्रेरक विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में साध्वी चैतन्य सिंधु, हरिद्वार से आए महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिर्मयानंद के सान्निध्य में पं. राधेश्याम शर्मा के वैदिक मंत्रोच्चार के बीच आश्रम परिवार की ओर से अध्यक्ष किशनलाल पाहवा, सचिव राजेश रामबाबू अग्रवाल, समन्वयक विजय शादीजा, गोविंद भाई सोनेजा, श्यामलाल मक्कड़, विष्णु कटारिया, बिजासन रोड अखंड धाम के न्यासी हरि अग्रवाल, यशवंत पंजवानी, सीए विजय गोयनका, रघुनाथ गनेरीवाल, योगाचार्य शिवप्रकाश गुप्ता, हेमंत जुनेजा आदि ने दीप प्रज्ज्वलन के साथ युगपुरुष स्वामी परमानंद गिरि महाराज का स्वागत किया । संचालन विजय शादीजा ने किया। गुरुदेव के कार्यक्रम स्थल पहुंचने पर विभिन्न संस्थाओं की ओर से भी उनका गरिमापूर्ण स्वागत किया गया।
आश्रम प्रबंध समिति के अध्यक्ष किशनलाल पाहवा एवं समन्वयक विजय शादीजा ने बताया कि पंजाब अरोड़वंशीय भवन पर 5 से 10 अगस्त तक प्रतिदिन सुबह 7 से 8 बजे तक योगासन, 8 से 9 बजे एवं संध्या को 7 से 9 बजे तक ध्यान एवं प्रवचन का आयोजन होगा। रविवार 11 अगस्त को सुबह 7 से 8 बजे तक योगासन तथा 8 बजे से प्रवचन तथा उसके बाद गुरू पूर्णिमा के उपलक्ष्य में गुरू पूजन के आयोजन होंगे। शिविर एवं अन्य सभी कार्यक्रम निःशुल्क हैं, लेकिन प्रवेश के लिए ‘पहले आएं पहले पाए’ आधार पर ही व्यवस्था रहेगी।
कर्म में सेवा का भाव आ जाए तो भक्ति स्वतः हो जाएगी।
इस मौके पर अपने आशीर्वचन में युग पुरुष स्वामी परमानंदजी ने कहा कि मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान है। कर्म किए बिना किसी भी मनुष्य का अस्तित्व और प्रभाव नहीं हो सकता, लेकिन कर्म में सेवा का भाव आ जाए या कर्म को हम सेवा बना लें तो भक्ति स्वतः हो जाएगी। परमात्मा ने हमें मनुष्य शरीर उत्तम कार्यों के लिए दिया है। संसार के व्यवहार स्वप्न से सार्थक नहीं होते। प्रेम और वात्सल्य का भाव हम सबके मन में भी जागृत होना चाहिए, तभी हमारे द्वारा किए गए सेवा प्रकल्प फलीभूत होंगे।