धर्म के दस लक्षण

  
Last Updated:  December 31, 2016 " 05:03 pm"

धर्म की गति बड़ी सूक्ष्म है । साधारण लोग इसे नही समझ पाते । इसलिए शास्त्र और सन्त जो बतलावे उसे ही ठीक रास्ता समझना चाहिए । भिन्न भिन्न देश और जातियों मे जो जो महात्मा हो गए है उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर रचे हुये अपने ग्रंथों मे जो जो बातें बताये है उन्हीं का हमें यथायोग्य पालन करना चाहिए । धर्म क्या ही अधर्म क्या है इस बात का फैसला वेद करते है । स्मृतियोंमे मनुस्मृति सबसे प्राचीन और अधिक प्रामाणिक मानी जाती है । उसमें मनुजीने धर्म के दस मुख्य अंग बताये है ।

वे कहते है – धृति क्षमा दम अस्तेय शौच इन्द्रियनिग्रह धी विद्या सत्य और अक्रोध ये धर्म के दस लक्षण है ।

वे कहते है – धृति क्षमा दम अस्तेय शौच इन्द्रियनिग्रह धी विद्या सत्य और अक्रोध ये धर्म के दस लक्षण है ।

धैर्य
धारण संतोष अथवा सहनशीलताका नाम धृति है । धैर्यकी ही धर्म नींव है । जिसे धैर्य नही वह धर्म का आचरण कैसे कर सकेगा ? बिना नींव का मकान नहीं होता । इसी प्रकार बिना धैर्य के धर्म नही होता । तुम एकांत मे बैठकर भगवान से प्राथना करो कि हमारी चाहे जो भी दशा हो जाए परन्तु धैर्य न छूटे ।

क्षमा
दूसरा धर्म क्षमा है । अपनेमे पूरी शक्ति होनेपर भी अपना अपकार करनेवालेसे किसी प्रकार का बदला न लेना तथा उस अपकारको प्रसन्नता से सहन करना क्षमा कहलाता है । इसलिए इस जीवन संग्राममे हमें सर्वदा क्षमा का कवच पहने हुए ही सारे काम करने चाहिए ।

दम
तीसरा धर्म दम है । दमका साधारण अर्थ तो इन्द्रियनिग्रह है परंतु यहां दम का अर्थ मनको वश मे करना है । मन को वशमे कर लेने पर सभी इन्द्रियनिग्रह अपने अधिन हो जाती है ।

अस्तेय
अस्तेय चोरी न करनेका नाम ही है । इसका अर्थ बहुत व्यापक है । साधारणतः दुसरेकी चीज को बिना पुछे ले लेना ही चोरी समझी जाती है ।

शौच
अब शौचके विषयमे सुनो । शौचका अर्थ है सफाई या पवित्रता । यह दो प्रकार की होती है बाहरी और भीतरी । आजकल इस बाहरी सफाई के विषय मे बड़ा भ्रम फैला हुआ है ।

इन्द्रियनिग्रह
अच्छा अब इन्द्रियनिग्रह पर आता हू । जीवकी सारी अशान्तिका कारण इन्द्रियोका असंयम ही है । इस शरीर रुप रथका रथी जीव है । बुध्दि सारथी है और मन लगाम है और इन्द्रिया घोड़े है ।जिसके इन्द्रियरुप घोड़े बुद्धि रुप सारथी के अधीन होते है । वही सुख पूर्वक अपने लक्ष्य तक जा सकता है ।

धी
धी बुद्धि को कहते है । मनुष्य के सारे आचार और विचार का रास्ता बुद्धि ही बतलाती है । बुद्धि जिस ओर ले जाती है उसी ओर पुरुष को जाना होता है । जैसा करना चाहती है वैसा ही करता है । इसलिए जीवन मे सफलता प्राप्त करने के लिए सद् बुद्धिकी बहुत बड़ी आवश्यकता है ।

विद्या
विद्या का अर्थ knowledge है । किन्तु सभी प्रकार का knowledge धर्म की कोटि मे नही आ सकता । इसलिए इसे अध्यात्म विद्या ही समझना चाहिए ।

सत्य
सत्य के साधारण स्वरूपसे सभी परिचित है । यही धर्म का वास्तविक स्वरूप है । धर्म का ही नही यदि सूक्ष्मतासे विचारा जाय तो यही स्वयं भगवान का स्वरूप है । वास्तव मे सत्य ही भगवान है ।

अक्रोध
मनुष्यसे जितने पाप बनते है । उनमें से अधिकांश परिणाममे दूषित संस्कार पैदा करने वाले होनेसे भी हेय है । किन्तु यह क्रोध तो आरम्भमे ही उद्वेग पैदा कर देता है । यह पहले जलन पैदा करता है । और पहले उसीको जलाता है जिसे होता है ।

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