इंदौर:{के.राजेन्द्र} प्रदेश स्तर पर विधानसभा और स्थानीय स्तर पर निगम परिषद की बैठक वो मंच होते हैं जहाँ जनता के हित से जुड़े मुद्दों को उठाया जाता है और उनपर सार्थक चर्चा होती है। सत्तापक्ष जनता के लिए किए गए कार्यों को अपनी उपलब्धि के रूप में पेश करता है वहीं विपक्ष का दायित्व होता है कि वह सत्ता की कमियों- खामियों को उजागर करें। कांग्रेस पार्षद दल और नेता प्रतिपक्ष लगातार मांग करते रहे हैं कि निगम परिषद की बैठक बुलाई जाए। अब जब निगम का बजट सम्मेलन बुलाया गया और महापौर ने 5647 करोड़ का बजट पेश कर दिया था तो विपक्ष की जिम्मेदारी थी कि वह चर्चा में भाग लेकर बजट की कमियों को उजागर करता वहीं जनता की समस्याओं को उठाने के साथ अपने सुझाव भी पेश करता। बजाय अपनी भूमिका सही तरीके से निभाने के कांग्रेसियों ने प्रदर्शन और हंगामा कर सब गुड़गोबर कर दिया। पहले ही पूरे प्रदेश में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार झेलनी पड़ी है। किसान कर्जमाफी सहित तमाम मुद्दों पर वह बुरीतरह घिरी हुई है। फिर भी इंदौर नगर निगम में सार्थक विपक्ष की भूमिका निभाने की बजाए उसके नेता व कार्यकर्ताओं ने निगम सम्मेलन में जबरन घुसकर बीजेपी पार्षदों के साथ जो हरकत की उसे शर्मनाक ही कहा जाएगा। गर्मी में जलसंकट को लेकर प्रदर्शन किया जाए इससे किसी को ऐतराज नहीं है पर वह कहां और किस समय किया जाए इसका ध्यान रखा जाना चाहिए था। अपनी झांकी जमाने के चक्कर में पार्षद पति और उसके समर्थकों ने कांग्रेस के चेहरे पर ही कालिख पोत दी।
अधिकारियों की भूमिका रही लचर।
निगमायुक्त और अन्य निगम अधिकारियों को पहले से पता था कि कांग्रेसी, निगम सम्मेलन स्थल पर पानी को लेकर प्रदर्शन करने वाले हैं। निगम के पास अपने सुरक्षा गार्ड है। बाउंसर्स की सेवाएं भी नगर निगम कई बार ले चुका है। फिर भी सम्मेलन स्थल पर सुरक्षा के इंतजाम नहीं करना निगमायुक्त और संबंधित अधिकारियों की लापरवाही को दर्शाता है। प्रदर्शन के दौरान माहौल को देखते हुए पुलिस को बुलाया जा सकता था पर वो भी नहीं किया गया। हद तो ये हो गई कि सम्मेलन स्थल पर अनाधिकृत प्रवेश कर झूमाझटकी करनेवाले कांग्रेसियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात से भी निगमायुक्त पीछे हट गए। साफ तौर पर लग रहा था कि वे कांग्रेस के दबाव में हैं।
पुलिस भी नहीं थी कार्रवाई के मूड में।
सत्ता जाने के बाद अधिकारियों का बर्ताव किस तरह बदल जाता है इसका अहसास बीजेपी नेताओं और पार्षदों को कल हो गया। निगम बैठक में घुसकर हंगामा और हाथापाई करनेवालों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने के लिए शहर की प्रथम नागरिक तक को धरने पर बैठना पड़ा। यही नहीं सीएसपी ने उनके साथ बदतमीजी से बात करने में भी परहेज नहीं किया। 4 घंटे तक जद्दोजहद करने के बाद वे रिपोर्ट लिखवा पाए। उसमें भी पुलिस ने उन नेताओं को बचा लिया जो कार्यकर्ताओं को उकसाकर सम्मेलन स्थल पर ले गए।
बहरहाल, कांग्रेसी, सत्ता के मद में पुलिस पर दबाव बनाकर भले ही हुड़दंगी नेता और कार्यकर्ताओं को कार्रवाई से बचा ले पर जनता में कॉग्रेस की छवि जो मलिन हुई है उसका खामियाजा उसे आगामी निगम चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।