महाराष्ट्र साहित्य सभा के शारदोत्सव के तहत संपन्न हुई तीन दिवसीय व्याख्यानमाला ।
इंदौर : महाराष्ट्र साहित्य सभा के 61वे शरदोत्सव के तहत आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के अंतिम दिन मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति में विट्ठलराव ठोंबरे की स्मृति में ठाणे से पधारे कार्पोरेट कीर्तनकार समीर लिमये का व्याख्यान हुआ। “मर्यादा पुरुषोत्तम ” विषय पर अपने विचार रखे।
समर्थ रामदास स्वामी रचित दास बोध के विभिन्न संदर्भों का हवाला देते हुए श्री लिमये ने प्रभु श्रीराम के अतुलनीय चरित्र पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि समर्थ रामदास स्वामी महाराज ने 14 वर्ष की आयु में वाल्मीकि रामायण का लेखन कर लिया था। उसी दौरान उन्होंने प्रभु श्रीराम को रोल मॉडल बनाकर उसे अंगीकार किया। प्रभु श्रीराम स्थितप्रज्ञ अवस्था में जीते थे, ऐसा ही जीवन समर्थ रामदास स्वामी ने जीया।
वक्ता समीर लिमये ने कहा कि लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को जाने बगैर प्रभु श्रीराम को जानना असंभव है।उन्होंने कहा कि भगवान राम का चरित्र अनुकरणीय है, जबकि श्रीकृष्ण का चरित्र विलोभनीय है। उन्होंने कहा कि अच्छी संगति इंसान में भारी बदलाव ला सकती है प्रभु श्रीराम के समग्र जीवन को रामायण में संकलित करने वाले महर्षि वाल्मीकि इसका अनन्य उदाहरण हैं। श्री लिमये के डेढ़ घंटे के धाराप्रवाह संबोधन में कुछ ऐसा आकर्षण था कि बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोता बार – बार तालियां बजाकर दाद देने पर मजबूर हो गए।
प्रारंभ में मुख्य अतिथि डॉ.मनोज देशपांडे, कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अश्विन पलसीकर, विशेष अतिथि शरद ठोंबरे और उमाकांत ठोंबरे ने दीप प्रज्ज्वलन किया।अतिथि स्वागत संदीप नावलेकर,,हेमंत पनहालकर, पंकज टोकेकर,आकांक्षा कुटुंबले,अश्विन खरे,प्रफुल्ल कस्तूरे,दीपक धनोड़कर ने किया।।।संचालन मनीष खरगोनकर ने किया। आभार मनोरमा ठोंबरे ने माना।