प्रेमावतारी संत थे श्री नाना महाराज तराणेकर

  
Last Updated:  July 30, 2022 " 11:23 pm"

स्नेहा शिनखेडे : इंदौर, परमपूजनीय श्री नाना महाराज तराणेकर की कर्मभूमि होने के कारण देश – विदेश में स्थित नाना भक्तों को इस भूमि का बेहद आकर्षण है। दत्तावतारी संत परमहंस परिव्राजकाचार्य श्री टेंबे स्वामी तथा वासुदेवानंद सरस्वती नाना महाराज के सद्गुरू थे। नाना महाराज का जन्म इंदौर के निकट तराना गांव में श्रावण शुद्ध पंचमी दि. 13 अगस्त 1896 को हुआ। उनके पिताश्री वेदमूर्ति शंकर शास्त्री गुरुकृपांकित श्रेष्ठ उपासक, उत्तम वैदिक और याज्ञिक थे। उनकी मातोश्री लक्ष्मीबाई अत्यंत अनुशासन प्रिय सात्विक साधिका थी। नाना महाराज को केवल आठ साल की उम्र में परमहंस परिव्राजकाचार्य टेंबे स्वामी का अनुग्रह प्राप्त हुआ। स्वामी जी ने उन्हे चैतन्यानंद सरस्वती उपाधि प्रदान की। श्री दत्त उपासना और दत्त संप्रदाय के कार्यप्रसार के बारे में मार्गदर्शन भी किया। तराना में नाना महाराज ने दत्त उपासना की। दत्त मंदिर की पूजा – अर्चना का दायित्व उन्हीं का था। वेद पाठशाला का संचालन भी वह करते थे। कर्मठ साधक और उपासक होने के कारण नाना महाराज का जीवन दत्त संकीर्तन में लीन था। नियत काल में विवाह होकर उन्हे पुत्र शंकर और कन्या कुसुम की प्राप्ति हुई पर सिर्फ घर गृहस्थी ही उनके जीवन का उद्देश्य नहीं था। धर्मपत्नी कालवश होने के बाद दोनों बच्चों का पोषण, शिक्षण उन्होंने स्वयं किया।
सद्गुरु के आशीर्वाद से नाना महाराज को योग दीक्षा प्राप्त हुई। उन्हीं के कहने पर नाना महाराज ने अनेक पवित्र तीर्थ स्थानों की यात्राएं की। इन यात्राओं में प्राप्त दिव्य अनुभूतियों से उनका जीवन अधिक तेजोमय और ज्ञान समृद्ध हुआ। प्रत्यक्ष श्री अनसूया माता, श्री दत्तात्रेय, श्रीराम- लक्ष्मण- जानकी, श्री गोपालकृष्ण, नर्मदा मैया, श्रीकृष्ण सखा उद्धवजी के साक्षात दर्शन का लाभ इन्हीं तीर्थ यात्राओं के दौरान नाना महाराज को मिला। उन्होंने अनेक हवन के आयोजन में योगदान देने के साथ उन यज्ञों में आचार्य पद का निर्वाहन भी किया। इंदौर के महाराजा श्रीमंत तुकोजीराव होलकर को नाना महाराज ने अपनी श्रद्धा और सेवा से व्याधिमुक्त किया। होलकर परिवार को नाना महाराज के प्रति खासी आत्मीयता थी। पूरा राजपरिवार उनका बेहद सम्मान करता था।
“अन्न हे पूर्णब्रह्म” इस वचन पर नाना महाराज की दृढ श्रद्धा थी। तराना व इंदौर में उन्होंने कई औचित्यपूर्ण अवसरों पर अन्नदान किया। नाना महाराज को मराठी, हिंदी, संस्कृत, अर्धमगधी आदि भाषाएं अवगत थी। संस्कृत में वे उत्तम संभाषण किया करते थे।

नाना महाराज भक्ताधीन थे। अपनी वाणी तथा आचरण वे शुद्ध रखते थे। किसी को भी अपने वाणी या आचरण से ठेंस ना पहुंचे, इसका वे हमेशा ध्यान रखते थे। क्रोध उनके पास था ही नहीं। उनकी हास्य मुद्रा, स्नेहभाव भक्तों को हर पल आश्वस्त करते थे। उन्होंने कभी भी स्त्री-पुरुष का भेद नही किया। सभी को एकसमान अपने आशीर्वाद से नवाजा। अनेक उत्सवों के आयोजनों में युवा पीढ़ी को साथ लेकर वे भव्य आध्यात्मिक कार्य किया करते थे। उनकी सकारात्मक भावना, आशीर्वाद और प्रसाद रूप से अनेक भक्तों को प्राप्त हुई। भक्तों को कृपादान करते समय नाना महाराज ने कभी भी रिश्तेदारी, जाति या अमीर – गरीब का विचार नहीं किया। सभी के प्रति समभाव आज भी तराणेकर परिवार की विशेषता है। पुरुषों के साथ साथ महिलाओं को भी नाना महाराज ने यज्ञविधी संस्कार के अधिकार बहाल किए। भजन, कीर्तन में महिलाओं का सहभाग बढाया। अनेक स्त्री संतों का उचित सम्मान किया। उन्होंने स्वयं कई महिलाओं को संस्कृत की शिक्षा दी। अपनी बहु प्रेमलता ताई को उन्होने नर्सिंग का कोर्स करने की प्रेरणा देकर नौकरी करने की अनुमति दी। श्री सूक्त, महिम्न, अथर्वशीर्ष, पुरुषसूक्त, गीता भागवत यह सब महिलाओं द्वारा कराने का कार्य किया। नाना महाराज प्रेमावतारी संत थे। हजारों की संख्या मे मौजूद उनका शिष्य परिवार इसी प्रेम के बंधन से जुडा है। गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में दत्त संप्रदाय का प्रसार नाना महाराज का प्रमुख कार्य रहा। कारंजा, नृसिंहवाडी, गरुडेश्वर, गाणगापूर आदी स्थानों पर आज भी नाना महाराज द्वारा किए गए दत्त प्रसार कार्यों का प्रेरक स्मरण किया जाता है। दि. 16 अप्रैल 1993 चैत्र वैद्य दशमी सुबह सात बजकर पंधरह मिनट पर पूजनीय नाना महाराज नागपूर में ब्रह्मलीन हुए। चैतन्यपीठ के मूर्त स्वरूप में प्रेरक ज्योत वहां भक्तों को चिरंतन प्रेरणा प्रवाह का साक्षात्कार प्रदान कर रही है।

ब्रह्मलीन होने के बाद श्री नाना महाराज ने दृष्टांत द्वारा अपनी आध्यात्मिक परंपरा अपने पोते डॉ. प्रदीप उपाख्य बाबा महाराज तराणेकर को दी। डॉ. प्रदीप तराणेकर ख्याति प्राप्त भूगर्भ शास्त्री, पर्यावरण वैज्ञानिक, संगीत तथा संगीतोपचार के ज्ञानी, वास्तुविद और ज्योतिष के विद्वान हैं। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी में लेखन, संशोधन और देश विदेश में व्याख्यानों का उनका दीर्घ अनुभव है।

1992 मे डॉ. प्रदीप तराणेकर ने अखिल भारतीय त्रिपदी परिवार की स्थापना की। इस त्रिपदी परिवार के जरिए उन्होंने नाना महाराज के भक्तों को एकजुट करने के साथ उन्हें अनेक सामाजिक उपक्रमों का हिस्सा बनाया। आरोग्य संजीवनी सेवा प्रकल्प, वैदिक विज्ञान तथा पर्यावरण शोध परिषद पुणे, शांतिपुरुष प्रतिष्ठान नागपुर, श्री नाना महाराज प्रासादिक पारमार्थिक ट्रस्ट गाणगापुर इन संस्थाओं के अतिरिक्त नागपुर में शांतिपुरुष मासिक का प्रकाशन, अकोला में वाचनालय, जलगाव में सहकारी पतपेढी का कार्य भी चल रहे हैं। डॉ. प्रदीप तराणेकर नाना महाराज की आध्यात्मिक विरासत को आधुनिक विज्ञान की मदद से आगे ले जा रहे हैं। खासकर नई पीढ़ी को इस कार्य से जुड़ने के लिए वह प्रेरित करते हैं। उनकी सुविद्य सहचारिणी जयश्री तराणेकर गणमान्य लेखिका, संपादिका हैं। नाना महाराज के चरित्र तथा जीवनी पर आधारित विभिन्न भाषाओं में ग्रंथ प्रकाशित करने का दायित्व वह भली भांति पुरा कर रही हैं। इंदौर तथा नागपुर में भव्य उत्सवों के आयोजन उनके ही कुशल मार्गदर्शन में सफल होते हैं। अपनी अनुशासनप्रियता और स्नेह से वे त्रिपदी परिवार में लोकमान्य हैं। नाना महाराज की 125 वी जन्मतिथि के अवसर पर दि. 1 तथा 2 अगस्त 2022 को इंदौर के बास्केटबॉल स्टेडियम में भव्यतम उत्सव का आयोजन किया गया है। दत्त संप्रदाय के प्रसार तथा सामाजिक सद्भाव का दर्शन इस उत्सव मे निश्चित रूप से होगा। इंदौरवासियों के लिए यह एक शुभ पर्वणी हैं।

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