बाल नाट्य ‘निम्मा शिम्मा राक्षस’ का प्रभावी मंचन

  
Last Updated:  September 16, 2019 " 01:06 pm"

इंदौर : सांनद न्यास के तत्वावधान में यूनिवर्सिटी ऑडीटोरियम में वरिष्ठ नाटककार रत्नकार मतकरी द्वारा लिखित और और चिन्मय मांडलेकर द्वारा दिग्दर्शित ‘निम्मा,शिम्मा राक्षस’ बाल नाट्य का मंचन किया गया। यह नाटक ना सिर्फ बच्चों को बल्कि उनके पालकों को भी लंबे समय याद रहेगा। दरअसल इस बाल नाट्य का कथानक सात वर्ष के नौनिहालों के मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि पर बुना गया है। दरअसल, इस उम्र के मासूमों का भावविश्व, निरागस और कोमल होता है। उनकी कल्पनाशीलता की सीमा नहीं होती। शायद इसलिए हमारे ऋषियों ने कहा है कि बच्चों में ईश्वर वास करता है। संत ज्ञानेश्वर,समर्थ रामदास, सन्त तुकाराम से लेकर ओशो जैसे आधुनिक विचारकों और दर्शनिकों ने माना है कि बच्चों के शब्दकोष में असंभव, अविश्वसनीय जैसे शब्द नहीं होते हैं। नाटककार रत्नाकर मतक़री का भी मानना है कि बच्चे खेल खेल में कुछ भी कर सकते हैं।
नौनिहालों की इसी निरागसता को अभिव्यक्त करता है बालनाट्य निम्मा शिम्मा राक्षस रत्नाकर मतकरी,चिन्मय मांडलेकर,संदेश बेंद्रे और मयुरेश माडगांवकर की यह अप्रतिम कृति मानी जाएगी। इन चारों का टीम वर्क इतना अभूतपूर्व है कि पूरे समय दर्शक वाह- वाह कर उठते हैं। अलगत्या-बलगत्या जैसा लोकप्रिय बाल नाट्य भी इसी टीम की देन है।
कलाकारों में गायत्री दातार का मराठी रंगभूमी पर यह पदार्पण नाटक है।
गायत्री इसके पहले ज़ी मराठी के धारावाहिक तुला पाहते रे से दर्शकों के दिल में जगह बना चुकी हैं।इसी तरह अनेक मराठी सिनेमा एवं नाटकों म़ें अपने अभिनय शैली की विशिष्ट छाप छोडऩे वाले मयूरेश पेम भी इस नाटक में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। अंकुर वाढ़वे जी मराठी के कॉमेडी शो चला हवा येवू द्या..के लोकप्रिय स्थाई पात्र हैं। उनकी और मयुरेश पेम की टायमिंग देखते ही बनती है। बाल कलाकारों ने तो धूम मचा दी है।
कहानी:हातिम ताई और लोकप्रिय कॉमिक अलाद्दीन के चिराग से प्रेरित है,लेकिन मौलिक प्रस्तुतिकरण और संवादों के कारण पूरी तरह अलग लगती है । इसे आधुनिक काल से जोड़कर पूरी कल्पनाशीलता के साथ निर्देशक चिन्मय मांडलेकर ने प्रस्तुत किया है उन्होंने नाटक के गीत भी लिखे हैं।।अब्दुल्ला बगदाद का एक युवक है,जो मछली का व्यापारी है। वह अपनी जिंदगी से पूरी तरह संतुष्ट है और आनंद में है। प्रत्येक युवा की तरह उसका भी सपना है कि उसका विवाह शाही खानदान की किसी राजकुमारी से हो। एक दिन मछली पकड़ते समय उसे एक कांच की बोतल मिलती है। उसे घिसते ही निम्मा,शिम्मा राक्षस सामने आता है,जो उसकी इच्छा पूछता है। अब्दुुल्ला अपनी इच्छा बताता है। सुल्तान की पुत्री शहजादी हाजिर हो जाती है। अब्दुल्ला उससे शादी की इच्छा जताता है,यहां एक ट्विस्ट है। निकाह कराने से पहले मौलवी अड़ जाता है कि जब तक सुल्तान यानी शहजादी का पिता हां नहीं कहता तब तक विवाह नहीं होगा। अब अब्दुल्ला इच्छा व्यक्त करता है,कि उसे ही सुलतान बना दिया जाए। इसमें हसन हसीना के पात्र भी हैं,जो कथानक की जान हैं। इस कथानक के सहारे यह अत्यंत रोचक और संदेश परक बाल नाटक आगे बढ़ता है। नाटक का क्लाइमैंक्स जबरदस्त है। कुल मिलाकर नाटक बच्चों के बड़ों का भी भरपूर मनोरंजन करता है।

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