पैरेंट्स के साथ समाज और शिक्षक भी निभाएं अपनी जिम्मेदारी।
संस्कार और संस्कृति का नाइट से कोई लेना – देना नहीं।
इलवा कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज द्वारा आयोजित परिचर्चा में वक्ताओं ने रखे विचार
नाइट कल्चर के नाम पर युवाओं में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति की रोकथाम को लेकर इल्वा कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज में परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में कई शिक्षाविदों और प्रबुद्धजनों ने अपने विचार रखने के साथ युवाओं को नशे से दूर रखने को लेकर सुझाव भी दिए।
इलवा एसोसिएशन के अध्यक्ष आमिर इंजीनीरवाला ने स्वागत भाषण देने के साथ विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि इंदौर में नाइट कल्चर कोई नई बात नहीं है। बरसों से लोग परिवार के साथ सराफा में परिवार सहित स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठाने जाते रहे हैं। राजवाड़ा, टोरी कॉर्नर, छावनी, मालवा मिल चौराहा जैसे ठिए राजनीतिक, सामाजिक बहस के केंद्र के बतौर देर रात तक आबाद रहते आए हैं। लेकिन अब नाइट कल्चर के नाम पर पबों में जिस तरह नशाखोरी और आपत्तिजनक हरकतें की जा रही हैं, वह स्वीकार्य नहीं है।
डेली कॉलेज के प्राचार्य एके सिंह ने कहा कि नाइट कल्चर नशे की प्रवृत्ति बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है। नशा करने के ऐसे ऐसे साधन आ गए हैं, जिन्हें आसानी से पहचाना नहीं जा सकता।
राजेश व्यास ने कहा कि नशे से बच्चों को बचाने के लिए पालकों को जागरूक करने की जरूरत है। संयुक्त परिवारों में बच्चों के बारे में पूरी जानकारी घर के सदस्यों को होती थी पर अब एकल परिवार होने से माता पिता बच्चों पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते,इसी का नतीजा है कि बच्चे बुरी संगत में पड़कर नशे के आदि हो जाते हैं। उन्होंने लड़कियों में भी बढ़ती नशाखोरी पर चिंता जताई।
प्रो.राजीव झालानी ने कहा कि संस्कार और संस्कृति हमारी विरासत है। इसमें नाइट कल्चर का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा कि वेब सीरीज जैसे माध्यमों ने युवाओं को बिगाड़ने का काम किया है। जरूरत युवाओं को नशे से होने वाले नुकसान के बारे में बताने की है।
डॉ. परितोष अवस्थी ने नाइट कल्चर और उससे जुड़ी विकृतियों के लिए कथित स्टेटस की होड़ को जिम्मेदार ठहराया। खुद को स्टेटस के मकड़जाल में उलझाकर हम अपने बच्चों में भी वही जहर घोल रहे हैं। इससे असमानता बढ़ रही है और युवा चकाचौंध में फंसते जा रहे हैं।
प्रो. श्यामसुंदर पलोड ने कहा कि नाइट कल्चर जैसा शब्द नहीं है। नाइट में तो विकृतियां जन्म लेती हैं। संस्कार और संस्कृति का नाइट से कोई लेना देना नहीं होता।नशा करना युवा अपनी शान समझने लगे हैं। उन्हें इससे दूर करने की जरूरत है।
राजीव साहनी ने कहा कि नशाखोरी का नाइट कल्चर से कोई लेना देना नहीं है। नशा दिन में भी किया जाता है। यह एक प्रवृत्ति है। इसकी रोकथाम के लिए हमें आगे आना होगा।
कमल लालवानी ने कहा कि हॉस्टल में रहकर बच्चे पढ़ाई ठीक से कर रहे हैं या नहीं, इसकी निगरानी पैरेंट्स करें। उनकी दिनचर्या पर नजर रखें। स्कूल – कॉलेज के शिक्षकों का भी दायित्व है की वे छात्र – छात्राओं को सही दिशा में जाने के लिए प्रेरित करें।
समाजसेवी श्री चेलानी ने समस्या के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि एकल परिवारों में माता – पिता के पास बच्चों के लिए समय नहीं है। बचपन से ही उनके हाथों में मोबाइल थमा दिया जाता है। युवा अपनी हर समस्या का समाधान दोस्तों में ढूंढते हैं। पैरेंट्स की अपेक्षाओं को पूरा न कर पाने का दबाव उन्हें गलत रास्ते पर ले जाता है। परीक्षा में असफलता, बेरोजगारी उन्हें निराशा की ओर धकेल देती है। ऐसे में वह नशे की ओर बढ़ने लगता है। परिवार और समाज उन्हें संबल दे, निराशा से उबरने में मदद करें तो युवा नशे की ओर प्रवृत्त नहीं होंगे।
राजेश शाह ने बच्चों के साथ पुराने समय की तरह सख्ती बरतने और जरूरत पड़ने पर पिटाई करने का सुझाव दिया।
अतुल डागरिया ने प्रतिस्पर्धा में न टिक पाने से हताशा का शिकार होकर नशे को गले लगाने वाले युवाओं की काउंसलिंग पर जोर दिया। उन्होंने वैदिक संस्कार और संस्कृति से युवाओं को अवगत कराकर उन्हें सन्मार्ग पर ले जाने की जरूरत बताई।
विभोर ऐरन ने बढ़ती नशाखोरी के लिए पारिवारिक मूल्यों के पतन को जिम्मेदार बताया। उन्होंने नशे सहज उपलब्धता की रोकथाम पर जोर देते हुए सरकार से सख्त कदम उठाने की मांग की।
सौरभ पारेख ने कहा कि बच्चों के साथ पैरेंट्स का नियमित संवाद हो। पैरेंट्स के लिए वर्कशॉप आयोजित हो जिनमें बताया जाए कि अपने बच्चों के साथ वे किसतरह पेश आए ताकि बच्चे गलत रास्ते पर न जाएं। उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों के आसपास गुटखा – पाउच की दुकानें नहीं लगने देने पर जोर देते हुए कहा कि प्रशासन को इस बारे में कड़े कदम उठाना चाहिए।
वसुधा राजपूत ने युवाओं की एनर्जी को सकारात्मक कार्यों की ओर मोड़ने की बात कही।जिस तरह रैगिंग के खिलाफ अभियान चलाकर उसे लगभग खत्म किया गया, वैसा ही अभियान नशे के खिलाफ भी चलाया जाना चाहिए। उन्होंने नशे के कारोबार के खिलाफ कड़े कदम उठाने पर बल दिया। पिंकी खंडेलवाल ने भी इस मौके पर अपने विचार रखे। आभार नंदकिशोर पंचोली ने माना।
परिचर्चा में इलवा स्कूल व कॉलेज सहित अन्य शिक्षण संस्थानों के प्राध्यापक, शिक्षक और शहर के प्रबुद्धजन मौजूद रहे।