महाकाल मंदिर समिति क्यों है मौन..?
कम से कम मुख्यमंत्री की साख की तो चिंता करे जिला प्रशासन।
🔹कीर्ति राणा🔹
महाकाल मंदिर में 25 मार्च को होली पर्व पर गर्भगृह में लगी आग में झुलसे 14 लोगों में से एक वयोवृद्ध सेवक सत्यनारायण सोनी को बेहतर उपचार सुविधा के बाद भी नहीं बचाया जा सका। महाकाल भक्त सोनी के परिजनों के साथ ही देश-विदेश के श्रद्धालुओं को यह पूछने का हक है कि सोनी की इस गैर इरादतन हत्या का दोषी कौन? क्या उस पर हत्या का प्रकरण दर्ज होगा?
मुख्यमंत्री मोहन यादव के गृह नगर की यह घटना इसलिए भी जवाब मांग रही है कि दूसरा कोई राजा उज्जैन में रात्रि विश्राम नहीं करता इस धारणा को उन्होंने यह कह कर तोड़ा है कि वो खुद को सीएम नहीं, महाकाल का सेवक मानते हैं।उनके इस निर्णय की खूब सराहना भी हुई है। जिला प्रशासन पर अब यह जिम्मेदारी आ गई है कि महाकाल के प्रिय सेवक-राज्य के मुखिया की साख प्रभावित ना होने दे।अभी जब चुनाव की सरगर्मी चल रही है तो कलेक्टर के लिए यह और भी जरूरी हो जाता है कि विपक्ष इसे मुद्दा बनाने की कोशिश ना कर पाए।खुद मुख्यमंत्री को ही यह तत्परता दिखाना चाहिए कि ब्रह्म हत्या के दोषी पर गैर इरादतन हत्या का प्रकरण दर्ज करने के पुलिस प्रशासन को निर्देश दें।
जहां तक जिला प्रशासन का सवाल है उसने मामले की जांच के लिए समिति गठित करने के साथ मंदिर में व्यवस्था और चाक चौबंद करने का दायित्व पूरा कर लिया है।खानापूर्ति वाली इस रिपोर्ट में यह तथ्य पहले ही दिन से नजरअंदाज कर दिया गया कि गर्भगृह तक प्रेशरगन लेकर जाने वाला दुस्साहसी था कौन? क्विंटलों से रंग गुलाल वहां किसकी मेहरबानी से ले जाने की इजाजत दी गई। जिला प्रशासन को यह याद रखना चाहिए कि महाकाल लोक निर्माण के बाद से महाकाल के भक्तों की आमद में निरंतर इजाफा हो रहा है।खुद मुख्यमंत्री ने श्रद्धालुओं के हित में सख्त निर्णय का फ्री हैंड प्रशासन को दे रखा है।लापरवाही के चलते हुए अग्निकांड के लपेटे में आए महाकाल मंदिर समिति प्रशासक संदीप सोनी को पद से हटा देना ही अंतिम सत्य नहीं है।महाकाल दर्शन की बेहतर व्यवस्था करना तो प्रशासन का दायित्व है ही लेकिन इसका ढिंढोरा पीटने का मतलब यह भी नहीं कि बुजुर्ग सत्यनारायण सोनी की मौत और अन्य 13 लोगों को जख्म देने वालों की शिनाख्त से आंख चुरा ली जाए।ऐसा होने का मतलब है कि इंदौर के बेलेश्वर महादेव बावड़ी कांड में 36 निर्दोषों की मौत और इस अग्निकांड में सरकार पत्थर दिल ही रही है।
मंदिर में कदम कदम पर कैमरे लगे हैं ऐसे में यह संभव ही नहीं कि प्रशासन रंगे-पुते उन चेहरों को अब तक नहीं पहचान पाया हो।यदि जान बूझकर ढिलाई की जा रही है तो मान लिया जाए कि उसी दिन से पूरा प्रशासन बूटी के प्रसाद से मदमस्त है।
एक पखवाड़े पूर्व हुए इस अग्निकांड के बाद भी गर्भगृह में ऐसे हालात बनते रहे हैं कि चाहे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष आए हों या अन्य वीवीआयपी उनके साथ थोकबंद लोग व्यवस्था संभालने वाले कर्मचारियों को डराते-धकियाते गर्भगृह में जबरन घुसते रहे हैं। मुख्यमंत्री उज्जैन से ही हैं इसलिए आए दिन वीवीआयपी को महाकाल दर्शन के लिए लाना उनका दायित्व भी है लेकिन सीएम खुद नहीं चाहेंगे कि गर्भगृह में अव्यवस्था से क्षुब्ध विशिष्ठजन परेशान हों और यह कटु अनुभव लेकर जाएं कि जिला-पुलिस और मंदिर प्रशासन अपना मूल काम भूल कर फोटो सेशन कराने की रस्म निभाने में व्यस्त रहता है। खुद मुख्यमंत्री नहीं चाहेंगे कि महाकाल मंदिर में आए दिन अव्यवस्था फैले और बदनामी का ठीकरा सरकार के माथे फूटे।एयरपोर्ट पर जितनी सख्त व्यवस्था, मंदिर के गर्भगृह में क्यों नहीं हो सकती। मुख्यमंत्री के नाम का लाभ लेने वाले, वीवीआयपी से नजदीकी दर्शाने वाले तो इंदौर एयरपोर्ट और दताना-मताना हवाईपट्टी तक जाने की जुगाड़ में रहते हैं जब वहां उनकी दाल नहीं गलती तो महाकाल में कैसे दादागिरी चल सकती है।
नई सरकार के सौ दिन तो हो ही चुके हैं। उज्जैन के जिला प्रशासन को यह तो समझ आ ही गया होगा कि वो कौन लोग हैं जो भाजपा या सीएम के खास होने के नाम पर हर बार व्यवस्था में सेंध लगाते रहे हैं।मुख्यमंत्री तो नहीं चाहेंगे कि उनके नाम का लाभ लेकर कोई मंदिर व्यवस्था को ध्वस्त करे।इसके बाद भी यदि जिला-पुलिस प्रशासन के हाथ-पैर फूलते रहते हैं तो सीधे भोपाल से मार्गदर्शन क्यों नहीं प्राप्त कर लेते।
हर बार व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने वालों की हरकतें भी सीसीटीवी में कैद रहती हैं। क्यों नहीं इनके नाम/नंबर और फुटेज सहित सारे प्रमाण डीजीपी और सीएस को सौंप कर अपनी मजबूरी बताने का साहस नहीं दिखाते।राज्य की मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक जब मुख्यमंत्री को हकीकत बताएंगे तो वे खुद मंदिर की छवि बिगाड़ने का हर बार कारण बनने वाले ऐसे उत्पातियों पर सख्ती करने के निर्देश देंगे।मुख्यमंत्री ने भोपाल में अपने परिवारजनों को साथ में नहीं रख कर यह संदेश तो दे ही रखा है कि लोगों को अनावश्यक दबाव-प्रभाव डालने का मौका नहीं मिले।अपने गृह नगर में भी वे नहीं चाहेंगे कि परिवार के सदस्यों से निकटता का लाभ लेने वाले उनकी और राज्य सरकार की परेशानी बढ़ाएं और सरकार के विरोधियों को ऐसे मुद्दे हाथ लगें जिनसे देश-विदेश में फैले महाकाल भक्तों में सरकार की छवि धूमिल हो।पूर्व सीएम शिवराज सिंह भी आए दिन महाकाल दर्शन को आते रहते थे, तब इस तरह व्यवस्था ध्वस्त नहीं होती थी। महाकाल के साथ होली खेलने की परंपरा दशकों से चल रही है, पहले कभी ऐसे हालात नहीं बने। अब यदि यह सब हो रहा है तो इसका मुख्य कारण जिला-पुलिस प्रशासन की आंखों यूपर पट्टी बंधी होना भी है।सक्षम अधिकारी अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल नहीं करे लेकिन उन तत्वों पर तो प्रशासन का खौफ नजर आए जो महाकाल और मुख्यमंत्री की छवि को दागदार करने का दुस्साहस लगातार कर रहे हैं।महाकाल के आशीर्वाद से सत्ता-सिंहासन की राह आसान हो सकती है तो महाकाल का तांडव रूप अपने हिसाब से सब ठीक भी कर सकता है।सेवा में लगे उन कुछ पुजारियों को भी समझना होगा कि वो धर्म को धंधा बनाने से बाज आएं, प्रशासन की व्यवस्था में सहयोग करें न कि दर्शन-अभिषेक को कमाई का जरिया बनाए। महाकाल लोक के दर्शन को आने वालों के साथ होटल व्यवसायियों द्वारा की जाने वाली मनमानी वसूली पर भी प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।
महाकाल मंदिर गर्भगृह में क्या हुआ था 25 मार्च की सुबह।
होली के दिन सुबह पांच बजकर 50 मिनट पर मंदिर के गर्भगृह में आग उस समय लगी प्रेशर गन से छोड़ा गया गुलाल पूजा की थाली पर गिर गया, जिसमें जलता हुआ कपूर था। बाद में यह फर्श पर फैल गया जिससे आग फैल गई। यह घटना मंदिर में लगे सीसीटीवी कैमरों में दर्ज हो गई थी।महाकाल मंदिर के पुजारी आशीष ने बताया था कि होली के अवसर पर एक अनुष्ठान के तहत गुलाल फेंके जाने के बाद आग लगी. इससे पुजारी, सेवक और कर्मचारी झुलस गए। गर्भगृह के सामने नंदी हॉल में घटना के दौरान कुछ वीवीआईपी सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे, लेकिन भक्तों में से कोई हताहत नहीं हुआ था।आग में झुलसे लोगों को अरविंदो हॉस्पिटल इंदौर में भर्ती कराया गया था। बुजुर्ग सेवक सत्यनारायण सोनी के घाव गहरे होने से सुधार ना होने पर नेशनल बर्न यूनिट मुंबई में उपचार के लिए भेजा गया था जहां बुधवार को उनका निधन हो गया।