भगवान ने गीता के माध्यम से हम सब के लिए ज्ञान और भक्ति के मार्ग का विस्तार किया

  
Last Updated:  December 27, 2023 " 01:17 am"

गीता भवन में चल रहे 66वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव में जगदगुरू वल्लभाचार्य के प्रेरक आशीर्वचन – शंकराचार्य भी पुनः पधारे।

बुधवार को सात दिवसीय महोत्सव का होगा समापन।

इंदौर : भगवान के प्रति अनन्य भक्ति और शरणागति का भाव होना चाहिए। भगवान को सोने-चांदी के अभूषणों या रत्न मंडित वस्त्रों से नहीं, बल्कि दीनता के भाव से ही प्रसन्नता मिलेगी। ज्ञान में अहंकार नहीं होना चाहिए। भक्ति से अलंकृत ज्ञान ही शोभायमान होता है। गीता को हम सब कर्मयोग का ही ग्रंथ और पर्याय मानते हैं, लेकिन वास्तव में भगवान ने गीता के माध्यम से हम सबके लिए ज्ञान और भक्ति के मार्ग का विस्तार किया है। भगवान ने बिना किसी दुराव-छुपाव के गीता में सारी बातें कहीं है। अर्जुन भले ही कुरूक्षेत्र के मैदान में निमित्त रहा हो, गीता के संदेश मनुष्य मात्र के लिए हैं।

सूरत से पधारे जगदगुरू वल्लभाचार्य, गोस्वामी वल्लभ राय महाराज ने मंगलवार को गीता भवन में चल रहे 66वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव की धर्मसभा में अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज की अध्यक्षता में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए।

प्रारंभ में वैदिक मंगलाचरण के बीच गीता भवन ट्रस्ट की ओर से अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, कोषाध्यक्ष मनोहर बाहेती, संरक्षक ट्रस्टी गोपालदास मित्तल, समाजसेवी विष्णु बिंदल, न्यासी मंडल के प्रेमचंद गोयल, महेशचंद्र शास्त्री, दिनेश मित्तल, टीकमचंद गर्ग, पवन सिंघानिया, हरीश माहेश्वरी, संजीव कोहली आदि ने जगदगुरू वल्लभराय महाराज एवं अन्य सभी प्रमुख संतों का स्वागत किया। सत्संग समिति की ओर से रामकिशोर राठी, अरविंद नागपाल, जे.पी.फड़िया, सुभाष झंवर, प्रदीप अग्रवाल आदि ने भी संतों की अगवानी की। धर्मसभा के बाद हजारों भक्तों ने सनातन धर्म एवं संस्कृति के विस्तार और मजबूती के उद्देश्य से अपने आसपास के मंदिरों में स्वयं नियमित पहुंचकर साफ-सफाई एवं पूजा-अर्चना करने तथा अपने बच्चों और स्वधर्मी बंधुओं को भी इसके लिए प्रेरित करने की शपथ ली।

मंगलवार सुबह हनुमानजी के सामूहिक पूजन, सहस्त्रार्चन एवं राम नाम की माला से हनुमान चालीसा के पाठ के साथ आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री ने महोत्सव की शुरुआत की। दोपहर में डाकोर सेआए स्वामी देवकीनंदन दास, भदौही के पं. सुरेश शरण महाराज, भीकनगांव के पं. पीयूष माहाराज, पानीपत की साध्वी ब्रह्मज्योति सरस्वती वाराणसी के पं. रामेश्वर त्रिपाठी, ऋषिकेश के शंकर चैतन्य महाराज, उज्जैन के स्वामी रामकृष्णाचार्य ने भी गीता एवं जीवन के विभिन्न ज्वलंत विषयों पर अपने प्रेरक विचार व्यक्त किए।

जहां गीता का पाठ होता है, वहां सभी तीर्थ निवास करते हैं।

जगदगुरू वल्लभाचार्य गोस्वामी वल्लभराय महाराज ने कहा कि जहां गीता ग्रंथ विराजित हो और जहां गीता का नियमित पाठ होता हो, वहां सभी तीर्थ निवास करते हैं। भगवान ने भी गीता के में इस तथ्य की पुष्टि की है कि जहां गीता, वहां मैं। भागवत गीता की ही विस्तार है। हमने यदि गीता का पाठ किया, चिंतन भी किया, लेकिन यदि उसे हृदय में स्थिर नहीं किया तो वह पाठ सार्थक नहीं होगा।भगवान ने गीता में गागर में सागर की कहावत को चरितार्थ किया है। विषादग्रस्त अर्जुन को भगवान ने स्वयं समझाया और उसे युद्ध के लिए प्रेरित किया। अर्जुन के शरणागत होने के बाद ही भगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर हम सबके लिए इतने सरल और आसान शब्दों में गीता के संदेश दिए हैं। भगवान के प्रति अपनत्व का भाव होना चाहिए। उन्हें सोनो-चांदी या रत्नजड़ित वस्त्रों से नहीं, दीनता के भाव से ही प्रसन्न किया जा सकता है। नमस्कार से अहंकार का समर्पण होता है।

गीता कर्त्तव्यपरायणता का संदेश देती है।

अध्यक्षीय उदबोधन में जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने कहा कि संसार परिवर्तन में विश्वास रखता है। गीता कर्तव्य परायणता का संदेश देती है। भगवान को अपने प्रत्येक कर्म समर्पित कर दिए जाएं तो उनकी सफलता में कोई संदेह नहीं हो सकता। हम जो कुछ भी करें, भगवान के प्रति समर्पण के भाव से करें – यही भगवान की हमसे अपेक्षा है। गीता ने हमारे जीवन को कृतार्थ बनाया है। संत की दृष्टि कई पापों से मुक्त कर देती है।

मंगलवार को भक्तों के आग्रह पर जगदगुरू शंकराचार्य, पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने भी संध्या को सत्संग में पधारकर भक्तों को भाव विभोर कर दिया। उन्होंने कहा कि गीता भवन के भक्त सौभाग्यशाली हैं, जिन्हें तीन-तीन जगदगुरू संतों का पावन सानिध्य प्राप्त हो रहा है। संचालन देवकीनंदनदास महाराज ने किया।

बुधवार को होगा समापन।

अ.भा. गीता जयंती महोत्सव का समापन बुधवार 27 दिसम्बर को होगा। सुबह 8 बजे गणेशजी के सामूहिक पूजन,अथर्वशीर्ष पाठ एवं सहस्त्रार्चन के बाद दोपहर 12.15 बजे से समापन समारोह प्रारंभ होगा, जिसमें उज्जैन से आए स्वामी परमानंद महाराज, भदौही से आए पं. पीयूष महाराज एवं पं. सुरेश शरण महाराज के प्रवचनों के बाद दोपहर 2 बजे जगदगुरू वल्लभाचार्य गोस्वामी वल्लभ राय महाराज के आशीर्वचन होंगे। तदपश्चात जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज के अध्यक्षीय आशीर्वचन के साथ महोत्सव का समापन होगा। इसके साथ ही आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के सान्निध्य में चल रहे सात दिवसीय विष्णु महायज्ञ की पूर्णाहुति भी दोपहर में होगी।

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