महिलाओं को प्राप्त कानूनी संरक्षण का हो रहा दुरुपयोग

  
Last Updated:  August 5, 2023 " 05:08 pm"

लिव इन रिश्ता टूटने पर पार्टनर को झूठे मामले में फंसा देती हैं महिलाएं।

कोर्ट में झूठे केस ज्यादा आ रहे, पुलिस जमीनी हकीकत पर नजर रखें।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी।

इलाहाबाद : हाईकोर्ट ने नाबालिग के साथ शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने के मामले में सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की है।कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को कानूनी संरक्षण प्राप्त है। वह पुरुषों को आसानी से फंसाने में कामयाब हो जाती हैं। कोर्ट में बड़ी संख्या में इस तरह के मामले में आ रहे हैं, जिनमें लड़कियां या महिलाएं आरोपी के साथ लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाने के बाद झूठे आरोपों में फंसा देती हैं। इसके बाद FIR दर्ज करा देती हैं। इसके बाद अनुचित लाभ उठाती हैं।

कोर्ट ने कहा ऐसे मामलों में न्यायिक अधिकारियों को सतर्क रहना चाहिए। वह जमीनी हकीकत पर नजर रखें। इसके बाद सही फैसला लें। यह टिप्पणी जस्टिस सिद्धार्थ ने वाराणसी के ओम नारायण पांडेय की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए की है। कोर्ट ने कहा कि समय आ गया है कि कोर्ट ऐसे जमानत आवदेनों पर विचार करते समय बहुत सतर्क रहें। कानून पुरुषों के प्रति बहुत पक्षपाती है। प्राथमिकी में कोई भी बेबुनियाद आरोप लगाना और किसी को भी ऐसे आरोपों में फंसाना बहुत आसान है।

कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया, फिल्मों, टीवी शो आदि के माध्यम से खुलेपन का फैशन या चलन फैल रहा है। इसका अनुकरण लडके और लड़कियां कर रहे हैं। भारतीय सामाजिक और पारंपरिक मानदंडों के विपरीत लडक़ी के परिवार के सम्मान और लड़की के सम्मान की रक्षा के नाम पर दुर्भावना पूर्ण रूप से झूठी FIR दर्ज की जा रही है।

कोर्ट ने कहा कुछ समय या लंबे समय तक लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद लड़के और लड़की के बीच किसी मुद्दे पर विवाद हो जाता है। पार्टनर का स्वभाव समय के साथ दूसरे पार्टनर के सामने उजागर होता है। जब उन्हें एहसास होता है कि उनका रिश्ता जीवन भर नहीं चल सकता, तो परेशानी शुरू हो जाती है। किशोरों में जागरूकता का स्तर बढ़ाने में सोशल मीडिया, फिल्में आदि का असर और नुकसान अपेक्षाकृत कम उम्र में मासूमियत स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

निर्दोषिता की पारंपरिक धारणा ने मासूमियत के असामयिक नुकसान को जन्म दिया है। जिसके परिणाम स्वरूप किशोरों का अप्रत्याशित विचलित करने वाला व्यवहार सामने आया है। जिस पर कानून ने पहले कभी विचार नहीं किया था। कोर्ट ने कहा कानून एक गतिशील अवधारणा है। ऐसे मामलों पर बहुत गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

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