मालवा- निमाड़ मतदाताओं का उत्साह या आक्रोश..?

  
Last Updated:  November 4, 2020 " 03:43 pm"

मतदान के कम ज्यादा प्रतिशत से चौकाने वाले परिणाम की उम्मीद

इंदौर ( प्रदीप जोशी ) जिस मालवा निमाड़ ने अपार उत्साह के साथ 2018 में कांग्रेस के लिए सत्ता का मार्ग प्रशस्त किया था। महज डेढ़ साल के भीतर सूबे के सात विधायकों ने भाजपा को सत्ता की चाबी सौप दी। छह माह के भाजपा शासन के बीच 28 सीटों पर हुए उपचुनाव के लिए मंगलवार को मतदान हुए। मालवा- निमाड़ की सात सीटों पर भी मतदाताओं ने संक्रमण से बेखौफ होकर उत्साह के साथ मतदान किया। बावजूद इसके सुवासरा और आगर सीट को छोड़ शेष पांच सीटों पर 2018 के आम चुनाव के मुकाबले वोट प्रतिशत कम रहा है। इनमे मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव की बदनावर और तुलसी सिलावट की सांवेर सीट शामिल है जहां करीब दो प्रतिशत वोट कम  गिरे है। अन्य तीन सीटों पर भी अमुमन इतना ही अंतर रहा है। गौरतलब है कि 6 सीटों पर वही प्रत्याशी मैदान में हैं जिन्होंने 2018 में जीत दर्ज की थी। पार्टी बदल कर उपचुनाव में भाग्य आजमाने वाले इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला तो मतगणना के बाद हो ही जाएंगा। बहरहाल, दो सीटों पर वोट बढ़ना पांच सीटों पर वोट प्रतिशत कम रहना चौकाने वाले परिणामों की और इशारा कर रहा है।

तीन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर

मालवा- निमाड़ में शिवराज मंत्रिमंडल के तीन सदस्यों की प्रतिष्ठा दांव पर है। हालांकि तुलसी सिलावट को तकनीकि आधार पर चलते चुनाव के बीच पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उनके अलावा राजवर्धनसिह दत्तीगांव और हरदीपसिंह डंग भाजपा के टिकट पर दोबारा चुनाव मैदान में है। बात बदनावर सीट की करे तो पिछले चुनाव में राजवर्धनसिंह को त्रिकोणीय संघर्ष में कुल मतदान के 50.40 प्रतिशत वोट मिले थे। वही सिलावट को कुल मतदान के 48.38 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे, जो तत्कालीन भाजपा प्रत्याशी राजेश सोनकर के मुकाबले महज 2 प्रतिशत ही अधिक थे। ऐसे में प्रतिष्ठापूर्ण मुकाबले में फंसी इन दोनों सीटों पर दो फीसदी कम मतदान क्या गुल खिलाएंगा यह देखने वाली बात रहेंगी।

दलबदल पर जनता का तय होगा रूख

कांग्रेस की सरकार गिराने का कारण बनने वालों में हाटपिपलिया के विधायक रहे मनोज चौधरी भी प्रमुख किरदार थे। सरकार गिरने के बाद मांधाता सीट से कांग्रेस विधायक नारायण पटेल और नेपानगर सीट से विधायक रही सुमित्रा कास्डेकर ने भी इस्तीफा देकर पाला बदल लिया। डेढ़ साल में नए चुनाव चिन्ह पर दोबारा जनता का सामना करने पहुंचे इन तीनों प्रत्याशियों की भी अग्नि परीक्षा है। क्योकि तीनों सीटों पर दो से तीन प्रतिशत मतदान कम हुआ है।

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