मूल जीएसटी कानून में हो चुके हैं कई संशोधन

  
Last Updated:  August 11, 2023 " 11:34 pm"

जीएसटी सेमिनार में बोले वक्ता।

टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन ने जीएसटी ऑफिसर्स के लिए आयोजित किया सेमिनार।

इंदौर : टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन ने अभिनव सेमिनार का आयोजन किया जिसमें प्रतिभागी, एसोसिएशन के सदस्य नहीं वरन समस्त मध्य प्रदेश से पधारे स्टेट जीएसटी ऑफिसर्स थे। दो सत्रों में हुए इस सेमिनार में रियल एस्टेट पर लागू जीएसटी के प्रावधानों पर चर्चा की गई l

मूल जीएसटी कानून में हो चुके हैं एक हजार संशोधन।

टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सीए शैलेन्द्र सिंह सोलंकी ने बताया कि जीएसटी कानून को 7 वर्ष से अधिक समय हो गया है। इन वर्षों में अभी तक 1000 से अधिक अमेंडमेंटस हो चुके हैं, जिसके कारण आज का जीएसटी कानून मूल जीएसटी कानून से पूर्णतः अलग हो गया है। उन्होंने कहा कि अमेंडमेंटस इतने त्वरित हो रहे हैं कि कर प्रशासन के लिए निरंतर अपडेट रहना आवश्यक है l

कर कानूनों की हो कॉमन अंडरस्टैंडिंग।

स्टेट जीएसटी कमिश्नर लोकेश जाटव ने कहा कि मध्यप्रदेश में कुल पापुलेशन का 72.40% रूरल पापुलेशन है, जबकि 27.60% अर्बन पापुलेशन है l गावों से शहरों की ओर पलायन दिन- प्रतिदिन बढ़ रहा है ऐसे में प्रदेश के अर्बन एरियाज में रियल एस्टेट की डिमांड निश्चित रूप से बढ़ेगीl अभी हमारे ऑफिसर्स के पास अपने कुल अनुभव का 2/3 भाग वैट रिजीम का है। जीएसटी का 1/3 ही है l चूँकि शहरीकरण के कारण रियल एस्टेट की डिमांड आने वाले वर्षों में निश्चित रूप से बढ़ने वाली है अतः रियल एस्टेट से सम्बंधित केसेस भी बढ़ेंगे। जीएसटी में रियल एस्टेट से सम्बंधित प्रावधान थोड़े कॉम्प्लिकेटेड हैं, अतः कर प्रशासक के रूप में विभाग की भी यह जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि कर कानूनों की कॉमन अंडरस्टैंडिंग हो, कम्प्लायंस पूरे प्रदेश में एक सामान हो, इंटरप्रिटेशन समान हो तथा जीएसटी ऑफिसर्स जो भी ऑर्डर्स कर रहे हैं, उनमें पूरे देश के ऑर्डर्स से एकरूपता रहे। इसी को लेकर टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन की पहल पर मप्र के जीएसटी ऑफिसर्स एक छत के नीचे जमा हुए है।

कर कानूनों की सही व्याख्या, कर प्रशासन की मूल जरूरत।

एडिशनल कमिश्नर (एचओ) रजनी सिंह ने कहा कि कर कानूनों की सही व्याख्या, सही कर प्रशासन की मूल जरूरत है l उन्होंने कहा कि इस तरह के सेशंस से निश्चित रूप से विभाग के अधिकारीयों को कर कानूनों के सही विश्लेषण में मदद मिलेगी।

कानूनों की गलत व्याख्या से बढ़ते हैं विवाद।

टीपीए के मानद सचिव सीए अभय शर्मा ने कहा कि बार और बेंच, कर प्रशासन के अभिन्न अंग हैं। दोनों का कॉमन उद्देश्य विधिसम्मत कर जमा करना होता है l उन्होंने कहा कि कानून के गलत इंटरप्रिटेशन से कर विवादों में बढ़ोतरी होती है। इससे करदाता तथा विभाग दोनों का समय व पैसा वेस्ट होता है l एक कॉमन प्लेटफॉर्म पर इस तरह के सेमिनार निश्चित रूप से कर विवादों में कमी में सहायक होंगे l

मुफ्त ऑफर्स, बन सकते हैं मुसीबत।

सीए सुनील पी जैन ने कहा कि आजकल यह सामान्य प्रचलन है कि बिल्डर्स द्वारा मकान के साथ मुफ्त सामान जैसे कार आदि भी दी जाती है।कानून की निगाह से यह मिक्स सप्लाई मानी जाएगी तथा बिल्डर पर 5% के स्थान पर 28% जीएसटी का दायित्व आएगा। ऐसे मुफ्त ऑफर बिल्डर्स के लिए मुसीबत बन सकते हैं l उन्होंने कहा कि इम्मूवेबल प्रॉपर्टी के केस में जिस स्थान पर प्रॉपर्टी स्थित है वहीँ प्लेस ऑफ सप्लाई माना जाएगा। उन्होंने कहा कि जमीन या प्लाट चाहे रॉ याने अन्डेवलप्ड बेचे जाएँ या डेवलप्ड दोनों ही दशाओं में टैक्स नहीं लगेगा।

बेची गई इकाइयों पर टैक्स देय नहीं है।

सेमिनार के मॉडरेटर सीए कृष्ण गर्ग ने कहा कि प्रॉपर्टी कमर्शियल है या रेसिडेंशियल यह रेरा के अनुसार ही तय होता है। किसी भी व्यावसायिक एवं रहवासी बिल्डिंग पर निर्माण कार्य चल रहा हो तभी जीएसटी देना होता है। एक बार कम्पलीशन सर्टिफिकेट प्राप्त करने के बाद बेची गयी इकाइयों पर कोई टैक्स देय नहीं होता क्योंकि ऐसी दशा में वह अचल सम्पति का रूप ले लेती है जो जीएसटी के दायरे से बाहर है ! यदि कोई इकाई कम्पलीशन सर्टिफिकेट आने के पहले बेचीं हो तो कम्पलीशन के बाद पूरे मूल्य पर जीएसटी देना होगा ! जीएसटी की दरों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि व्यवसायिक एवं रहवासी इकाई के मूल्य में से एक तिहाई राशि सरकार द्वारा भूमि के समबन्ध में छूट दी जाती है एवं बचे हुए मूल्य पर ही जीएसटी देय होता है ! व्यावसायिक इकाइयों की दशा में कुल मूल्य पर प्रभावी दर 12% एवं रहवासी की दशा में यह 5% होती है ! एफोर्डेबल हाउसिंग की दशा में 1% की दर से कर देना होगा।

रहवासी इकाई पर कर की दर कम पर इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं।

सी ए गर्ग ने यह भी कहा कि सरकार द्वारा रहवासी इकाई पर कर की दर कम करने के साथ इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने पर रोक लगा दी है। अतः बिल्डर द्वारा चुकाया कर उसके लिए लागत का हिस्सा बन जाती है जिसके कारण उनके द्वारा बेचे जाने वाली यूनिट का मूल्य बढ़ाकर वसूल किया जा रहा है । अतः वास्तव में क्रेता को कर की दर कम करने का कोई फायदा नही मिल पा रहा है। रहवासी बिल्डिंग के निर्माण पर बिल्डर को इनपुट टैक्स क्रेडिट तो नही मिलेगी साथ ही उन्हें कुल निर्माण लागत का 80% माल एवं सेवाएं, रजिस्टर्ड व्यापारी से ही लेना होगी ! इसमें भी सीमेंट एवं कैपिटल गुड्स पूर्णतया रजिस्टर्ड व्यापारी से ही लेने होंगे l इससे कम होने की दशा में बिल्डर को रिवर्स चार्ज में टैक्स की राशि स्वयं भरना होगी l उन्होंने यह भी कहा कि एक यूनिट बेचने के अलावा क्लब हाउस, इलेक्ट्रिक चार्जेज , सोसाइटी मेंटेनेंस चार्जेस वसूलने पर 18 % की दर से कर का भुगतान करना होगा।

सेमिनार का संचालन टीपीए के मानद सचिव सीए अभय शर्मा ने किया l इंदौर सीए शाखा की और से स्वागत चेयरमेन सीए मौसम राठी ने कियाl कार्यक्रम की रुपरेखा एसजीएसटी सचिव सीए मनोज पी गुप्ता ने रखीl इस अवसर पर सीए सोम सिंघल, सीए कीर्ति जोशी, सीए अजय सामरिया, सीए दीपक माहेश्वरी, सीए जे पी सर्राफ, सीए आनंद जैन, सीए रजत धानुका, सीए स्वर्णिम गुप्ता, सीए अतिशय खासगीवाला सहित विभाग की और से एडिशनल कमिश्नर धर्मपाल शर्मा, आरके शर्मा, नरोत्तम मिश्र, इंदु जैन, मनोज चौबे सहित सम्पूर्ण मध्य प्रदेश के जीएसटी कर अधिकारी मौजूद थे।

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