‘मैं मीसाबंदी’ आपातकाल का जीवंत दस्तावेज है : अष्ठाना

  
Last Updated:  August 2, 2023 " 11:59 pm"

रमेश गुप्ता लिखित पुस्तक ‘मैं मीसाबंदी’ का विमोचन।

आपातकाल की वास्तविकता का सजीव चित्रण है यह पुस्तक : सुमित्रा ताई।

समाज को जागृत करेगी यह पुस्तक : देशपांडे।

इंदौर : आपात काल में देश के विभिन्न स्थानों पर मीसाबंदी रहे ज़न नायकों को किस प्रकार यातनाएं दी गई और देश के लोकतन्त्र पर किस तरह कुठाराघात किया गया, इन संस्मरणों को संघ के स्वयंसेवक , लेखक व इंजीनियर रमेश गुप्ता ने “मैं मीसाबंदी” नामक पुस्तक में संकलित किया है। आपात काल के दौरान 19 माह तक जेल में रहे रमेश गुप्ता ने अपनी इस पुस्तक में आपात काल मे किए गए अन्याय, अत्याचार और तत्कालीन तानाशाही का सजीव चित्रण किया है।

सुमित्रा ताई व अन्य अतिथियों ने किया विमोचन।

बुधवार को एसजीएसआईटीएस या के सभागार में आयोजित गरिमामय कार्यक्रम में रमेश गुप्ता द्वारा लिखित इस पुस्तक का
विमोचन मुख्य अतिथि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा ताई महाजन, विशेष अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख सुनील देशपांडे और कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण कुमार अष्ठाना ने किया।

पुस्तक के लेखक रमेश गुप्ता ने अपने प्रस्ताविक उद्बोधन में कहा कि यह पुस्तक उस काल की विवेचना के लिए नहीं है, बल्कि राष्ट्र की युवा पीढ़ी इस विभीषिका को समझे कि आपात काल क्यों लागू किया।गया, किस तरह मीसा बंदी नागरिको को यातना दी गई, कैसे महिलाओ और बच्चों ने अभाव में जीवन यापन किया और कैसे गृहिणियों ने मीसाबंदी परिवारों का संरक्षण किया, यही इसका उद्देश्य है।

ये पुस्तक समाज को जागृत करेगी।

पुस्तक विमोचन समारोह के विशेष अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख सुनील देशपांडे ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस पुस्तक का लिखना इसलिए भी आवश्यक है कि आपातकाल के समय तत्कालीन सरकार की जो निरंकुश व दमनकारी प्रवृत्ति थी वह आज की पीढ़ी के संज्ञान में आना चाहिए ताकि उस प्रवृत्ति की पुनरावृत्ति भविष्य में कदापि ना हो ।आपातकाल में मीसाबंदियों ने तो अकल्पनीय कष्ट झेले ही , परंतु उनके परिवार व आश्रितों ने भी असहनीय वेदना का दृढ़ता से सामना किया। उन्होंने कहा कि
यह पुस्तक समाज जागरण का कार्य करेगी, उन्हों ने कहा कि देश को आगे बढ़ाने के लिए सभी समाजों को making india में सम्मिलित होना चाहिए। सम्मान, सत्कार करना आसान है पर त्याग करना बहुत मुश्किल है ।

‘मैं मीसाबंदी’ वास्तविकता का सजीव वर्णन है।

विमोचन समारोह की मुख्य अतिथि श्रीमती सुमित्रा महाजन ने कहा कि यह किताब नहीं स्वयं से संवाद है, वास्तविकता का सजीव वर्णन है। आज के युवा अतीत के त्याग और संघर्ष के बारे में नहीं जानते। तत्कालीन समय के संघर्ष में तानाशाही द्वारा विभाजन के अत्याचार को दोहराया गया। यह भारत हम सब का भारत है, इसके उत्थान में सभी का त्याग है। इसे आज की पीढ़ी समझे। सद्गुणों की उपासना और राष्ट्रवाद का कार्य संगठन के निर्देशन में होता रहा यह सब आज की पीढ़ी जाने और समझे।

यह पुस्तक आपातकाल का जीवंत दस्तावेज है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कृष्ण कुमार अष्ठाना ने कहा कि यह किताब नहीं बल्कि भोगाचर्चा हुआ सत्य है। इस पुस्तक के हर शब्द का मैं साक्षी हू, इस किताब की खासियत है कि यह पुस्तक प्रेरणा दायक संस्मरण से भरी हुई है। यह पुस्तक आपातकाल का एनसाइक्लोपीडिया है।

अंत में विश्व संवाद केन्द्र के प्रांत अध्यक्ष दिनेश गुप्ता ने आभार प्रकट किया।इस अवसर पर बड़ी संख्या में शहर के गण मान्य नागरिक, वरिष्ठ समाज सेवी, युवा व पत्रकार साथी उपस्थित रहे।वंदे मातरम के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ ।

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