मैथिल समाज की महिलाओं का जितिया महाव्रत, पारण के साथ संपन्न

  
Last Updated:  September 18, 2022 " 08:14 pm"

इंदौर : 36 घंटे के निर्जल उपवास के बाद मैथिल एवं पूर्वोत्तर समाज की व्रती महिलाओं का तीन दिवसीय जितिया महाव्रत रविवार शाम लगभग पोने पांच बजे पारण के साथ समाप्त हुआ। जैसे ही पारण का समय आया, व्रती महिलाओं ने स्नानादि कर माता जितवाहन की पूजा की और उन्हें व चील एवं सियार को खीरा, ओंकरी, पान, मखान, फल एवं मिष्ठान का भोग लगाया। तत्पश्चात व्रती महिलाओं ने अपने साथ तथा दूरस्थ रह रहे संतानों को लम्बी आयु, स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया।

तुलसी नगर निवासी शारदा झा जो पिछले 18 सालों से जितिया पर्व का महाव्रत कर रही हैं, ने पारण के पश्चात अमेरिका में रह रहे अपने पुत्र को वीडियो कॉल के माध्यम से लम्बी आयु एवं खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया।

मैथिल समाज की व्रती महिलाओं के घरों में उनके परिजनों द्वारा विभिन्न तरह के व्यंजन बनाए गए थे, जिसे व्रती महिलाओं ने पारण के पश्चात ग्रहण किया।

मैथिल समाज के वरिष्ठ समाजसेवी के के झा ने बताया कि तीन दिवसीय जितिया महाव्रत की शुरुआत शुक्रवार को नहाय खाय के साथ हुई, जिसमें व्रती महिलाओं ने मरुवा की रोटी, झिमुनि (तुरई ) की सब्जी, नोनी का साग प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। शहर में मैथिल समाज की संस्था मैथिल सामाजिक मंच द्वारा नहाय खाय के दिन व्रती महिलाओं के घर पर मरुआ का आटा एवं झिमनी का पत्ता वितरित किया गया।

मिथिला पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान के दीर्घायु, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए निर्जला व्रत रखकर भगवान की पूजा और प्रार्थना करती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण अगले दिन यानी नवमी को किया जाता है। यह व्रत प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है। खासकर यह मिथिला में बहुत प्रसिद्ध है, जिसे महिलाएं नियम और निष्ठा के साथ करती हैं। एक तरह से यह व्रत कठोर तपस्या के बराबर है। जितिया व्रत के दौरान व्रती महिलाओं द्वारा जीमूतवाहन की कथा सुनी जाती है. इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी।

Facebook Comments

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *