रिश्तों की उलझन में फंसी औरत के मनोभावों को दर्शाता नाटक ‘अकेली’

  
Last Updated:  August 22, 2021 " 05:18 pm"

इंदौर : साप्ताहिक नाटकों की श्रृंखला में अभिनव कला समाज़ के मंच पर शनिवार को सआदत हसन मंटो का नाटक “अकेली” का मंचन किया गया।

नाटक का कथानक कुछ इसप्रकार था कि नायिका सुशीला अपने प्रेमी मोहन के साथ एक ट्रेन में भाग रही होती है और उसे स्टेशन पर पता चलता है कि मोहन उसके ज़ेवर लेकर उसे प्लेटफॉर्म पर अकेला छोड़ भाग गया है। वहीं प्लेटफॉर्म पर किशवर की मुलाकात सुशीला से होती है। किशवर की अच्छी इंसानियत देख कर सुशीला किशवर के साथ चली आती है।
सुशीला एक उम्दा नर्तकी है, किशवर के साथ दो बरस बिताने के बाद सुशीला को अपने घुंघरुओं की आवाजों के साथ हुजूमों की आवाज़ों की भी चाह उमड़ पडती है। सुशीला इन आवाज़ों को पा तो लेती है लेकिन कुछ समय बाद ही, हुजूमों की आवाज़ों से सुशीला को नफ़रत हो जाती है, इन दो बरस की तन्हाई में सुशीला किशवर से सवाल करती है कि उसने उसे कभी प्यार की नज़रों से क्यूँ न देखा, किशवर के मुताबिक उसे कभी किसी औरत से मोहब्बत नहीं हुई, वो सुशीला को सिर्फ पसंद करता है प्यार नहीं। कुछ समय बाद सुशीला की ज़िंदगी में मोती कदम लेता है और सुशीला को मोती से मोहब्बत हो जाती है।

मोती और सुशीला एक रात भागने का इरादा कर लेते हैं और किशवर सुशीला को भागते हुए देख लेता है उसे बाद में मेहसूस होता है कि उसे तो सुशीला से मोहब्बत थी। सुशीला और मोती एक दूसरे के साथ अच्छे दिन बिता रहे होते हैं कि मोती के घर से तार आता है कि “घर जल्दी आओ” मोती सुशीला को अकेली छोड़ चला जाता है। सुशीला के दरवाजे पर दस्तक होती है और दरवाजे पर खड़ी मोती की मंगेतर चपला होती है। चपला अपने दुःख और दर्द का वास्ता देकर सुशीला से उसका मोती वापस माँग लेती है। सुशीला दिल पर पत्थर रख कर मोती को छोड़ वापस किशवर के पास चली आती है।
किशवर सुशीला की वापसी देख कर खुश हो जाता है। वहीं कुछ दिनों बाद सुशीला से मिलने मोती आता है। वो सवाल करता है कि सुशीला उसे क्यूँ छोड़ चली आयी। सुशीला उसे सच के बजाय ये कह देती है कि किशवर उसके मुकाबले में काफी दौलतमंद इंसान है इसलिए मोती इस बात से ख़फ़ा होकर किशवर का सारी बिजनेस तबाह करने का इरादा कर लेता और शुरू हो जाती है शेयर बाजार की जंग। सुशीला को एक दिन टेलीफोन आता है कि किशवर को ये बता दिया जाए कि उनके मुकाबले में आने वाला मोती है लेकिन सुशीला किशवर को बताती नहीं है, जिसकी वजह से किशवर को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

सुशीला का मन बाहर घूमने को करता है और वो किशवर के साथ बाग की सैर करने निकल पड़ती है। किशवर के सवाल करने पर सुशीला उसे बताती है कि फोन आया था कि आपके मुकाबले में आने वाला मोती है और ये बात मेरे आपको न बताने से अब आपको काफी भारी नुकसान होगा। सुशीला को मोती से मोहब्बत थी इस वजह से उसने किशवर को कुछ नही बताया। किशवर हंसकर सुशीला के साथ बिताए वक़्त के लिए उसका शुक्रिया अदा करता है।इसके बाद सुशीला को महसूस होता है कि वो फिर किसी नए सिरे से अपना सफ़र शुरू कर रही है। वही गाड़ी है। वही प्लेटफार्म है। और सुशीला अकेली है।

मंच पर इन कलाकारों ने निभाए विभिन्न किरदार।

मुस्कान रन्सोरे (सुशीला) पीयूष देडगे (किशवर) सूरज हरियानी (मोती) प्रकृति चौहान (चपला) नीतेश उपाध्याय (कूली)

मंच परिकल्पना- किशान ओझा। संगीत – कुनाल विजयवर्गीय। लाइटस व निर्देशन – नीतेश उपाध्याय। मेकअप – निष्ठा मौर्य

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