२००८ से चल रही थी रूस,यूक्रेन में युद्ध की तैयारी।
इंदौर। रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत ने कभी भी खुलकर के रूस की निंदा नहीं की और ना रूस को गलत बताया।भारत ने गुट निरपेक्ष नीति को बरकरार रखते हुए अमेरिका का भी साथ नहीं दिया,बस यही कहा कि रूस और यूक्रेन समझौता कर ले ताकि शांति स्थापित हो सके।
ये विचार पूर्व राजदूत मधु भादुड़ी के है, जो उन्होंने अभ्यास मंडल की 61 वी ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला में दूसरे दिन जाल सभागृह में मुख्य वक्ता बतौर व्यक्त किए। विषय था ‘यूक्रेन युद्ध’।
श्रीमती भादुड़ी ने आगे कहा कि यह युद्ध एकाएक या अचानक नही हुआ,इसकी तैयारी वर्ष 2008 में ही हो गई थी। रूस की दो ही प्रमुख मांगे हैं, यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा और पूर्वी रूस के क्षेत्रों पर यूक्रेन हमला नही करेगा।30 वर्ष पूर्व सोवियत संघ ने वरसवा ऑफ पेक्ट को तो समाप्त कर दिया ,लेकिन अमेरिका ने नाटो को समाप्त नहीं किया,पहले नाटो के 15 सदस्य थे जो बढ़कर आज 30 हो गए हैं।
श्रीमती भादुड़ी ने आगे कहा कि बीते तीन दशकों में कई युद्ध हुए और उसमे बड़ी मात्रा में हथियारों का इस्तेमाल हुआ, ये हथियार ज्यादातर अमेरिका में बने हैं, अत अमेरिका चाहता है कि लड़ाई जारी रहे ताकि अमेरिका का बिजनेस चलता रहे।अमेरिका में दो ही बड़ी स्रोत है अनाज का उत्पादन और हथियारों का निर्माण।बीते वर्षों में अमेरिका को अफगानिस्तान में मुंह की खानी पड़ी ना वह तालिबान को हरा सका और न अफगानिस्तान में लोकतंत्र की स्थापना कर सका। इस खीझ को मिटाने के लिए अमेरिका चाहता है कि वह नाटो देशों को रूस के खिलाफ तैयार कर उसे हराए।जबकि नाटो के ही सदस्य जर्मनी ने सबसे अधिक इन्वेस्ट रूस में ही किया है। रूस में जो बड़े बड़े तेल और गैस के प्लांट है,उनमें जर्मनी का पैसा लगा है।एक अनुमान के मुताबिक जर्मनी रोजाना रूस में 116 मिलियन यूरो डॉलर इन्वेस्ट कर रहा है।ये सारी पाइप लाइन यूक्रेन से होकर जाती है और इसका वितरण नाटो देशों को होता है,इसलिए रूस और यूक्रेन दोनो देश इन पाइप लाइनों पे हमले नही कर रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि इस युद्ध का कोई न कोई हल जरूर निकलेगा। भारत ने जो नीति अपनाई वह सही है।
प्रारंभ में अतिथि स्वागत आर के जैन, रवि गुप्ता, आर मुरली खंडेलवाल ने किया।नंदलाल जैन मोगरा ने प्रतिक चिन्ह भेंट किए। संचालन मनीषा गौर ने किया। आभार अजीत सिंह नारंग ने माना।