इंदौर : रविवार दोपहर हरिसिद्धि मंदिर के सामने हुई एक दुर्घटना ने सांसद शंकर लालवानी की मानवीय संवेदना को उजागर किया पर सिस्टम को लेकर सवाल खड़े कर गई।
सांसद लालवानी के कॉल करने पर भी समय रहते नहीं आई 108 एम्बुलेंस।
हुआ ये की रविवार दोपहर तेजी से आ रहे बाइक सवार का संतुलन बिगड़ा और वह रास्ते में लगे बेरिकेट्स से जा टकराया।इस दुर्घटना में बाइक सवार युवक को सिर में चोट आई और खून बहने लगा। हरिसिद्धि मन्दिर के सामने ये घटना हुई। उसी दौरान सांसद शंकर लालवानी उधर से गुजरे। उन्होंने युवक को घायल पड़ा देख गाड़ी रुकवाई। युवक की हालत देख श्री लालवानी ने 108 पर कॉल कर शीघ्र एम्बुलेंस भेजने के लिए कहा। सांसद लालवानी ने दुबारा एक निगम अधिकारी के सेट से वायरलेस कॉल भी किया।दो बार कॉल करने के बाद भी जब एबुलेंस समय रहते नहीं पहुंची तो उन्होंने कुछ लोगों की मदद से अपने निजी सचिव विशाल गिदवानी की कार में घायल युवक को रखवाया और एमवाय अस्पताल लेकर गए। सांसद श्री लालवानी ने खड़े रहकर घायल युवक का इलाज शुरू करवाया क्योंकि काफी खून बह जाने से उसकी हालत गंभीर हो गई थी। वक़्त पर इलाज मिलने से युवक की जान बच गई।
व्यवस्था पर खड़े हुए सवाल..?
सांसद शंकर लालवानी की तत्परता और मानवीयता ने घायल युवक की जान बचा ली। इसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं, लेकिन ये घटना सिस्टम पर गम्भीर सवाल खड़े करती है। कुछ दिन पहले भी एक युवक को न तो एम्बुलेंस मिली और न ही इलाज। एम्बुलेंस के अभाव में परिजन स्कूटर पर उसे लेकर एक से दूसरे अस्पताल घूमते रहे लेकिन कहीं भी उसे उपचार नहीं मिल पाया। अंततः वे एमवायएच पहुंचे पर वहां भी लेटलतीफी के चलते युवक को इलाज नहीं मिल पाया और उसकी मौत हो गई।
रविवार की घटना में लॉक डाउन और कर्फ्यू के चलते सड़कें सुनी होने के बावजूद 108 एम्बुलेंस समय पर नहीं पहुंची, वो भी तब, जब सांसद लालवानी ने खुद फोन लगाया था। अगर श्री लालवानी स्वयं घायल युवक को अस्पताल लेकर नहीं जाते तो उसका बचना नामुमकिन था। ऐसे में सवाल यही उठता है कि सांसद के कॉल को भी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है तो आम आदमी का क्या होगा..? तमाम सरकारी दावों के बावजूद सिस्टम लचर बना हुआ है। अगर आम आदमी की वक़्त रहते इलाज नहीं मिल सकता है तो ऐसी एम्बुलेंस और अस्पतालों की उपयोगिता क्या है..? शासन और प्रशासन का पहला दायित्व आम आदमी को वे सब सुविधाएं उपलब्ध कराना है जो उसके सामान्य जीवन जीने में सहायक हों। आम आदमीं गर इनसे वंचित है तो ये शासन- प्रशासन की विफलता ही मानी जाएगी।