🔹कीर्ति राणा 🔹
मध्य प्रदेश में भाजपा प्रत्याशियों के नामों की सूची जारी होने के बाद नागदा में विरोध का जो ज्वालामुखी फूटा था उससे दिल्ली तक संगठन हिल गया था।अब भाजपा के सिर्फ 94 नाम ही घोषित होना है उससे पहले पार्टी नेतृत्व ने ऐसे धधकते क्षेत्रों की आग बुझाने का टॉस्क फायर ब्रिगेड दस्ते के प्रभावी नेताओं को सौंप दिया है।मालवा-निमाड़ क्षेत्र की 66 सीटों का दायित्व कैलाश विजयवर्गीय पर होने से वो नागदा में भड़क रहे शोले ठंडे करने के लिए पहुंच गए थे।पहले वो ‘मनोहर वाटिका’ पहुंचे जहां टिकट नहीं मिलने से नाराज पूर्व विधायक दिलीप सिंह शेखावत के साथ उनके करीब डेढ़ हजार समर्थक भी मुंह फुलाए बैठे थे।पार्टी के फैसले के सामने समर्पण की मजबूरी बताते हुए विजयवर्गीय ने यहां भी दोहराया कि मुझे भी ना चाहते हुए चुनाव लड़ना पड़ रहा है।शेखावत से कुछ देर बंद कमरे में चर्चा के बाद वो प्रत्याशी डॉ. तेज बहादुर सिंह चौहान द्वारा आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में पहुंच गए। कुछ देर बाद ही इस सम्मेलन में दिलीप शेखावत भी पहुच गए। विजयवर्गीय ने दोनों को गले मिलाया। शेखावत समर्थन की घोषणा कर के कुछ देर बाद रवाना हो गए।
गले मिलने वाले दृश्य के साक्षी बने दोनों के समर्थक विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि वाकई दिल भी मिल गए हैं।पार्टी के हर सर्वे में जीत वाला नाम होने के बाद भी टिकट कट जाने से हत्प्रभ दिलीप शेखावत ने दस हजार से अधिक कार्यकर्ताओं का सम्मेलन-भोज आयोजित कर पार्टी को अपने इरादों से अवगत कराने के साथ ही तहसील स्तर पर हनुमान चालीसा के सामूहिक पाठ शुरु कर के कार्यकर्ताओं को एकजुट करना भी शुरु कर दिया था।
कांग्रेस की राजनीति में भी 2003 में ऐसे ही हालात बने थे तब पार्टी ने रणछोड़लाल आंजना को कांग्रेस से टिकट दे दिया था।पूर्व विधायक दिलीप गुर्जर ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का साहस किया और परिणाम आए तो आंजना की जमानत जब्त हुई, भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह राणावत दूसरे नंबर पर रहे थे, जीत गुर्जर की हुई थी। इस बार भाजपा ने लगभग वैसा ही किया दिलीप शेखावत के साथ हुए कथित अन्याय सेउनके समर्थक तो नाराज थे लेकिन गुर्जर की तरह शेखावत पार्टी निर्णय के खिलाफ बगावत कर निर्दलीय लड़ने का मन शायद इसलिए नहीं बना पा रहे थे कि कहीं बंधी मुट्ठी खुल ना जाए। विजयवर्गीय ने शेखावत को राजी कर के किसी अन्य निर्दलीय को मैदान में उतारे जाने की प्लॉनिंग भी फेल कर दी है। इस का मतलब यह भी नहीं कि भाजपा प्रत्याशी के लिए जीत आसान हो गई है। शेखावत ने पार्टी से अनुरोध किया है कि यहां कि अपेक्षा उन्हें किसी अन्य क्षेत्र में जिम्मेदारी दे दें।अभी तो वे कुछ दिनों की धार्मिक यात्रा पर जाने वाले हैं।
पार्टी नेतृत्व के सामने परेशानी भी यह है कि डॉ चौहान संगठन, बैठकों के आदमी हैं। नागदा विधानसभा क्षेत्र में सीधा-जमीनी संपर्क शेखावत का है।सवा दो लाख मतदाताओं वाले क्षेत्र में एक लाख ग्रामीण हैं, जिनसे डॉ. चौहान का कोई सीधा संपर्क नहीं है, शेखावत से मुलाकात करने तेज बहादुर तीन बार उनके घर भी गए थे लेकिन वो मिले ही नहीं। ऐसे में अब गले मिलने का उपक्रम पार्टी की जीत में कितना असरकारी रहेगा ये देखना होगा।