🔹कीर्ति राणा 🔹
सोए हुए को तो जगाया जा सकता है, लेकिन जो सोने का नाटक कर रहा हो, उसे नहीं जगाया जा सकता। 36 निर्दोषों की अकाल मृत्यु के बाद से इंदौर नगर निगम, जिला प्रशासन से लेकर पुलिस प्रशासन सोने का नाटक ही कर रहे हैं। हाई कोर्ट ने अपनी नाराजी वाले खौलते पानी की बाल्टी उड़ेल दी, लेकिन हद दर्जे की लापरवाही में भी नंबर वन रहने की तिरपाल ओढ़ चुके स्थानीय प्रशासन पर असर नहीं हुआ है।
हाई कोर्ट ने बेलेश्वर महादेव मंदिर बावड़ी हादसे में किसी एक पर भी कार्रवाई नहीं किए जाने पर जिस लहजे में प्रशासन को लताड़ा है, उससे आमजन को भी लगा है कि कोर्ट सरकार की जेब में नहीं है। दूसरी तरफ नगर निगम और अन्य विभागों ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि हम अपने वाली पर आ जाएं तो न्यायालय को भी आंखें दिखा सकते हैं। यह इसलिए भी अधिक अफसोसजनक है कि नगर के प्रथम नागरिक की कुर्सी का सम्मान बढ़ाने वाले महापौर पहले अतिरिक्त महाधिवक्ता भी रहे हैं।
जिस बावड़ी हादसे में 36 लोगों की जान गईं, उनका जीवन बचाने के लिए तत्कालीन कलेक्टर इलैया राजा टी ने उस वक्त जो तत्परता दिखाई, उसकी सराहना के साथ यह सच्चाई भी उजागर हुई थी कि डिजास्टर मैनेजमेंट मामले में सभी विभाग फेल रहे थे। जिला दंडाधिकारी के रूप में कोर्ट के निर्देशों का पालन तो इलैया राजा भी नहीं करा पाए। विधानसभा चुनाव में हार-जीत के असर से भयभीत सभी वरिष्ठ अधिकारी जांच रिपोर्ट पर ऐसे कुंडली मारकर बैठे रहे, जैसे- पार्टी के पदाधिकारी हों।
बिना अपील-दलील सुने, बुलडोजर दौड़ाने का उत्साह दिखाने और खुद को न्यायप्रिय बताने वाले अधिकारियों की आज तक हिम्मत नहीं हुई कि 36 निर्दोषों के हत्यारे कथित दोषियों के मकान ध्वस्त करने, संपत्ति जब्त करने का साहस दिखा सकें! पूर्व सीएम शिवराजसिंह को अब जिस तरह पार्टी में अनदेखी का शिकार होना पड़ रहा है, उसमें इन 36 मृतकों के परिजन की बद्दुआ का भी असर लगता है। सांसद समर्थक दोषियों पर कार्रवाई में तो तत्परता नहीं दिखाई… उल्टे उसी जगह पर फिर से मंदिर निर्माण की उदारता दिखा दी। बिना नक्शा मंजूरी के निर्माण की शिकायतों पर भी जिला प्रशासन आंख मूंदे रहा।
अब गेंद मुख्यमंत्री मोहन यादव के पाले में है, जो इंदौर के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं। जो नगर निगम अमला मुख्य रूप से दोषी है, उसके मंत्री कैलाश विजयवर्गीय हैं। इंदौर के विकास की योजनाएं तो बनती रहेंगी… नई सरकार को समझना होगा कि निर्दोष बावड़ी के माथे पर ‘हत्यारी’ का कलंक लगाने वाले तत्कालीन निगमायुक्त सहित बड़े अधिकारियों और मंदिर ट्रस्ट से जुड़े उन लोगों को सबक सिखाए, जो पार्टी-सांसद से जुड़े होने का लाभ लेकर ‘शेर’ बनकर घूम रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)