उज्जैन : श्रावण के पहले सोमवार पर बाबा महाकाल की सवारी उसी शाही परम्परा के अनुरूप निकाली गई, जिसके लिए वह जानी जाती है। हालांकि महाकाल के भक्त कोरोना संक्रमण के चलते सवारी में प्रत्यक्ष रूप से शिरकत नहीं कर पाए लेकिन टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर बाबा महाकाल की सवारी का सीधा प्रसारण लाखों लोगों ने देखा। इस बार कलेक्टर आशीष सिंह के सवारी मार्ग बदलने के निर्णय से शहर के हजारों लोग सहमत नही थे, लेकिन मार्ग बदलने से जो दुर्लभ संयोग बन गया वह अपने आप में अलौकिक था।
पहली बार हुआ ‘हर और हरसिद्धि’ का मिलन..
दरअसल बाबा महाकाल की सवारी इतिहास में पहली बार अपने पारम्परिक मार्ग से न निकलते हुए मन्दिर के पीछे वाले मार्ग से निकली। समूचे रास्ते में इलेक्ट्रॉनिक आतिशबाजी और रेड कारपेट बिछाया गया था। श्रद्धालु नही थे लिहाजा प्रशासन ने ऐसी व्यवस्था की थी जिसे देख महाकाल प्रसन्न हो जाएं। रास्तेभर रांगोली सजाई गई और आतिशबाजी भी की गई। कुछ जगह पुष्पवर्षा भी हुई लेकिन सबसे अहम रहा “हर”और “हरसिद्धि” का मिलन, जिसे देख सभी भक्तिमय हो गए ।रामघाट से पूजन के बाद बाबा का कारवां रामनुकूट होते हुए हरसिद्धि की पाल से हरसिद्धि मन्दिर के समक्ष पहुंचा, माता सती का यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक है यहां माता सती की कोहनी गिरी थी, हरसिध्दि का यह मंदिर बाबा महाकाल के मन्दिर के पीछे होकर बहुत करीब है, बावजूद इसके बाबा महाकाल आज तक माता हरसिद्धि से मिलने नही गए क्योंकि ऐसी कोई परम्परा नही रही है। हालांकि बाबा महाकाल वर्षभर भ्रमण के दौरान शहर के अनेकों स्थानों और मार्गो से गुजरते है यहां तक की वे दशहरे पर नए शहर फ्रीगंज में भी आते है लेकिन पहली बार वे अपनी अर्द्धांगिनी माता सती के आंगन में पहुंचे। बस फिर क्या था, गाजे बाजे आतिशबाजी, स्वागत, सत्कार और पूजन आरती के बाद हर का हरसिद्धि से मिलन कराया गया। महाकाल को हरसिद्धि माता की और से वस्त्र और पगड़ी भेंट की गई। यहां सांसद अनिल फिरोजिया, मंत्री मोहन यादव, कलेक्टर आशीष सिंह, एसपी मनोज कुमार सिंह सहित मन्दिर के पंडे पुजारी और गणमान्य जन मौजूद रहे। मंदिर के पुजारी राजेश पुरी गोस्वामी ने बताया कि उज्जैन की धरा पर यह दुर्लभ संयोग है जब भगवान महाकाल स्वयं चलकर माता सती के दरबार में पहुंचे। हर और हरसिद्धि का यह मिलन वास्तव में अद्भुत और अलौकिक है इसे जिसने भी देखा वह कलेक्टर के मार्ग बदलने के निर्णय की सराहना करने लगा ।
बता दें की उज्जैन में हर साल हर और हरी का मिलन होता है लेकिन यह पहला अवसर रहा जब हर और हरसिद्धि का मिलन हुआ ।